कोरोना वायरस: क्या है पूल टेस्टिंग जो बढ़ा देगी टेस्ट की रफ़्तार

  • कमलेश
  • बीबीसी संवाददाता
कोरोना वायरस टेस्ट

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भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों की संख्या 20 हज़ार के आसपास पहुँच गई है और मरने वालों की संख्या 640 हो गई है.

राजधानी दिल्ली और मुंबई में सबसे ज़्यादा हालत ख़राब है. दिल्ली में हॉटस्पॉट की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

लॉकडाउन-2 के कुछ दिन निकल गए हैं लेकिन संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. हालांकि, इस बीच कुछ राज्यों से अच्छी ख़बरें भी आई हैं.

ऐसे में कोरोना वायरस के मरीज़ों का जल्द से जल्द पता लगाने के लिए सरकार ने पहले के मुकाबले टेस्टिंग बढ़ा दी है.

अब संदिग्ध इलाक़ों में पूल टेस्टिंग और रैपिड टेस्टिंग के ज़रिए कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का पता लगाया जा रहा है.

हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने पूल टेस्टिंग के लिए अनुमति दी है.

अपनी एडवाइजरी में आईसीएमआर ने लिखा है कि जैसे कोविड19 के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में टेस्टिंग बढ़ाना महत्वपूर्ण है. हालांकि, मामले पॉजिटिव आने की दर कम है तो इसमें पूल टेस्टिंग से मदद मिल सकती है.

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कैसे होती है पूल टेस्टिंग

पूल टेस्टिंग यानी एक से ज़्यादा सैंपल को एकसाथ लेकर टेस्ट करना और कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाना.

पूल टेस्टिंग का इस्तेमाल कम संक्रमण वाले इलाक़ों में होता है. जहां संक्रमण के ज़्यादा मामले हैं वहां पर अलग-अलग जांच ही की जाती है.

आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों के मुताबिक़ अधिकतम पांच लोगों की एकसाथ पूल टेस्टिंग की जा सकती है. कुछ लैब तीन सैंपल लेकर भी टेस्टिंग कर रही हैं.

पूल टेस्टिंग के लिए पहले लोगों के गले या नाक से स्वैब का सैंपल लिया जाता है. फिर उसकी टेस्टिंग के ज़रिए कोविड19 की मौजूदगी का पता लगाया जाता है.

पीजीआईएमएस रोहतक में माइक्रोबायोलॉजी लैब के इंचार्ज डॉक्टर परमजीत गिल पूल टेस्टिंग के लिए तीन सैंपल का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे नतीजे अच्छे और पुख्ता आ रहे हैं.

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ज़्यादा सैंपल लेने से वायरस का पकड़ में आना थोड़ा मुश्किल होता है. हालांकि, आईसीएमआर ने पांच सैंपल लेने की भी अनुमति दी है और इसके लिए सभी सैंपल समान मात्रा में इस्तेमाल होंगे.

डॉक्टर परमजीत गिल बताते हैं, “तीन लोगों के सैंपल लेने के बाद उन्हें मिलाया जाता है. उनसे पहले आरएनए निकाला जाता है. फिर रियल टाइम पीसीआर (आरटी-पीसीआर) टेस्ट किया जाता है. इसमें पहले स्क्रीनिंग होती है. स्क्रीनिंग ई-जीन का पता लगाने के लिए की जाती है. ई-जीन से कोरोना वायरस के कॉमन जीन का पता लगता है.”

“कोरोना वायरस की एक पूरी फैमिली है जिसमें कई तरह के कोरोना वायरस है. इन्हीं में से एक वायरस है कोविड19. इनका एक कॉमन ई-जीन होता है. अगर टेस्ट में ये ई-जीन पॉजिटिव आता है तो हमें पता लग जाता है कि इस सैंपल में किसी न किसी तरह का कोरोना वायरस मौजूद है लेकिन ये कोविड19 ही है ये नहीं कह सकते. इसके लिए अगला टेस्ट करना होता है. इसके बाद सिर्फ़ कोविड19 का पता लगाने के लिए टेस्ट किया जाता है.”

अगर किसी पूल के नतीजे निगेटिव आते हैं तो इसका मतलब है कि जिन लोगों से उस पूल के लिए सैंपल लिए गए थे उन्हें कोरोना वायरस नहीं है. जिस पूल के नतीजे पॉजिटिव आते हैं उसमें मौजूद सभी सैंपल की फिर से अलग-अलग टेस्टिंग की जाती है.

डॉक्टर गिल के मुताबिक पूल टेस्टिंग के ज़रिए जहां टेस्टिंग किट बचती हैं वहीं, ज़्यादा टेस्टिंग भी हो सकती है. अगर तीन लोगों का पूल टेस्ट नेगेटिव आता है तो बाक़ी दो के टेस्ट के लिए अलग से किट इस्तेमाल नहीं करनी पड़ेगी.

इसमें लगने वाले समय की बात करें तो डॉक्टर गिल के मुताबिक़ अगर एक सैंपल का टेस्ट करना है तो समय कम लगता है लेकिन पूल टेस्टिंग में समय कुछ घंटे ज़्यादा बढ़ जाता है. हालांकि, इस टेस्ट से संसाधन बचते हैं और टेस्टिंग में तेज़ी आती है.

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किन इलाक़ों में हो सकती है पूल टेस्टिंग

पूल टेस्टिंग से भले ही जल्दी टेस्टिंग बढ़ सकती है और कई टेस्ट किट्स बचाए जा सकते हैं फिर भी इसे हर जगह नहीं किया जा सकता..

- पूल टेस्टिंग उन्हीं जगहों पर हो सकती है जहां पर कोरोना वायरस के मामले 2 प्रतिशत से कम हो.

- जिन जगहों पर पॉजिटिविटी दर 2-5 प्रतिशत है, वहां पर सिर्फ़ कम्युनिटी सर्वे में या एसिम्पटोमैटिक लोगों के लिए इस्तेमाल होगी. लेकिन, संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों और हेल्थ केयर वर्कर्स के लिए इसका इस्तेमाल नहीं होगा. उनकी अलग-अलग जांच ही की जाएगी.

- जिन इलाक़ों में पॉजिटिविटी दर 5 प्रतिशत से ज़्यादा है और वहां पर पूल टेस्टिंग का इस्तेमाल नहीं होगा.

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रेपिड टेस्ट से कितना अलग

रेपिड टेस्ट भी उन इलाक़ों में किया जा रहा है जहां पर कोरोना के संदिग्ध पाए गए हैं. रेपिड टेस्ट में एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है.

शरीर में किसी भी वायरस या बैक्टीरिया के हमला करने पर शरीर उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाता है. अगर शरीर में वायरस आया होगा तो एंटीबॉडी बनी होगी. इस एंटीबॉडी का पता रेपिड टेस्ट में पता चल जाता है.

वहीं, पूल टेस्ट में कोविड19 वायरस का पता लगाया जाता है. ये दोनों टेस्टिंग के अलग-अलग तरीक़े हैं.

आईसीएमआर की अनुमति के बाद कुछ राज्य पूल टेस्टिंग के तरीक़े को अपना रहे हैं. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी इससे टेस्टिंग की जाएगी. हरियाणा में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

हरियाणा में कोरोना वायरस के लिए नोडल ऑफिसर बताते हैं, “ये तरीक़ा अच्छा है. ब्लड बैंक में भी इस तरीक़े का इस्तेमाल होता रहा है. पूल टेस्टिंग से हमारी क्षमता बढ़ी है. पूल टेस्टिंग के ज़रिए हमने क़रीब 494 टेस्ट किए हैं. हम अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं.”

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