लॉकडाउन ने लोगों की रचनात्मकता बढ़ा दी है. घर में बैठा कोई लतीफे बना रहा है तो कोई कविताएं रच रहा है. कोई पेंटिंग तो कोई कुछ और. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस मुश्किल हालात में भी कोरोना चुनौती से निपटने में खुद को खपा दे रहे हैं. दिल्ली के दो युवा उत्कर्ष और उदित. दोनों युवा प्रोफेशनल्स लॉकडाउन के दौरान घरों में हैं और अपने शौक के लिए समय निकाल रहे हैं. लेकिन उनके शौक कोरोना वॉरियर्स के काम आ रहे हैं. दोनों अपने घरों में बैठकर कोरोना फाइटर्स के लिए फेस शील्ड बना रहे हैं.
कोरोना पर फुल कवरेज के लिए यहां क्लिक करेंसबसे पहले बात करते हैं वजीराबाद की जलबोर्ड कॉलोनी में रहने वाले रोबॉटिक इंजीनियर उत्कर्ष गुप्ता की. उत्कर्ष को आठ साल की उम्र से ही मशीनों और उपकरणों से खेलने का शौक है. आठवें जन्मदिन पर इंजीनियर पिता ने सोल्डर उपकरण गिफ्ट किया था. तब से हर जन्मदिन पर उत्कर्ष को उपहार में मशीनें ही मिलती हैं.
उत्कर्ष इन दिनों घर के बरामदे में बैठकर लेजर कटिंग मशीन के जरिए फेस शील्ड तैयार कर रहे हैं. उन्होंने अपने ड्राइंग रूम को असेम्बलिंग एरिया के तौर पर डेवलप कर लिया है. कमरे में दाखिल होते ही एक काली पट्टी खींची गई है. इस काली पट्टी के अंदर घुसने के लिए जूते-चप्पल उतारने होते हैं. साथ ही सैनिटाइज भी होना पड़ता है.
लेजर कटिंग के बाद फेस शील्ड के सभी पार्ट्स को पहले डिटर्जेंट के घोल में, फिर गर्म पानी, फिर डेटॉल के घोल में और फिर ओजोन चेंबर में रखा जाता है. ताकि फेस शील्ड पूरी तरह से सुरक्षित रह सके. उत्कर्ष अब तक करीब डेढ़ हजार शील्ड्स (डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मी, फल और सब्जी बेचने वालों को) मुफ्त में बांट चुके हैं.
दूसरे शख्स हैं उदित कक्कड़, जिन्होंने एमबीए किया है. उदित थ्रीडी प्रिंटर के जरिए फेस शील्ड बना रहे हैं. उदित के माता-पिता डॉक्टर हैं. जो दिल्ली के ही एक अस्पताल में कार्यरत हैं. उदित ने पटेल नगर स्थित अपने घर के बेसमेंट में ही वर्कशॉप बना रखी है. उदित के मुताबिक इसका कच्चा माल कॉर्न स्टार्च से बना है यानी बेहद मजबूत और अति उच्च ताप पर पिघलने वाला. यह एक बायोडिग्रेडेबल सामग्री है यानी जैविकीय रूप से ही नष्ट होने वाला है.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...दोनों शख्स कोरोना फाइटर्स की मदद के लिए उन्हें फेस शील्ड भेंट कर रहे हैं. ताकि वो समाज के लिए काम करते हुए भी खुद की सुरक्षा कर सकें.