कोरोना: मज़दूर महिलाओं के लिए जंग वायरस से ही नहीं, ग़रीबी से भी
- कमलेश
- बीबीसी संवाददाता
“सरकार के बोलने से क्या होता है, हमें पता है कि अगले महीने पैसे नहीं मिलेंगे. अब तो दूसरों के भरोसे जी रहे हैं. खाने के लिए लंबी लाइन में लगते हैं लेकिन फिर भी सबका पेट नहीं भर पाता.”
अपनी लाचारी का अफ़सोस जताती हुईं आयशा कुछ मिनटों की बातचीत में सरकारी आश्वासनों और ज़मीनी हक़ीक़त का अंतर दिखा देती हैं.
21 दिनों के लॉकडाउन के बाद राज्य सरकारों ने अपील की थी कि लोगों की तनख़्वाह ना काटी जाए और किराएदारों से किराया ना लिया जाए. लेकिन, सरकार की बातों पर अमल होगा, इसका फ़ैक्टरियों में काम करने वालीं महिलाओं को उम्मीद नहीं है.
वेतन और ठेकेदार
दिल्ली के मंगोलपुरी की रहने वाली आयशा जूते-चप्पल बनाने वाली फ़ैक्टरी में काम करती हैं. उन्हें फ़रवरी की तनख्वाह तो मिल गई है लेकिन, मार्च का भरोसा नहीं है. उनके पति भी उसी फ़ैक्टरी में काम करते थे लेकिन एक दुर्घटना के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. फ़िलहाल आयशा के घर में पति, दो बच्चे और सास रहती हैं.
आयशा ने बताया, “22 तारीख को हमें बोल दिया गया था कि अब नहीं आना है. हमें नहीं लगता कि वो मार्च के बचे हुए दिनों के पैसे देगा. अप्रैल में तो हमें पैसे ही नहीं मिलेंगे. ठेकेदार कह रहा है कि लॉकडाउन खुलते ही वो अपने घर भाग जाएगा. अगर ठेकेदार ही नहीं रहेगा तो हमें मालिक से पैसे कौन लाकर देगा.”
ठेकेदार को लेकर और भी फ़ैक्टरी कामागार परेशान हैं. फ़ैक्टरी में काम करने वाले मज़दूर दो तरह की व्यवस्था में काम करते हैं.
एक तो वो ठेकेदार के ज़रिए काम पर लगते हैं या दूसरा सीधे कंपनी मालिक से बात होती है. ठेकेदार के मामले में फ़ैक्टरी मालिक वेतन का पैसा ठेकेदार को देता है और फिर वो आगे कामगारों को.
दिल्ली के उद्योग नगर की एक फ़ैक्टरी में काम करने वाली रेखा देवी भी ठेकेदार के ज़रिए काम पर लगी थीं.
उन्होंने बताया कि जो ठेकेदार कहता है फ़ैक्टरी मालिक वही करता है. अभी तो उनकी ठेकेदार से ही बात नहीं हो पा रही है. जब सब ठीक हो जाएगा तभी पता चलेगा कि तनख़्वाह मिलेगी या नहीं. अभी तो ये भी नहीं पता कि काम भी दोबारा मिलेगा या नहीं.
क्या कर रही है सरकार?
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हाल ही में लॉकडाउन के बाद लाखों की संख्या में मज़दूर शहरों से निकलकर अपने घर की तरफ लौट गए थे. उनका कहना था कि यहां काम रुक गया है तो खाएंगे कहां से. लेकिन, कई ऐसे फ़ैक्टरी मज़दूर या दिहाड़ी मज़दूर हैं जो अपने घर नहीं जा सके. अब उनके सामने अलग चुनौतियां हैं.
हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार की ओर से लॉकडाउन से प्रभावित लोगों की मदद के लिए कई क़दम भी उठाए गए हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की घोषणा की थी. इसमें बीपीएल परिवारों को भी राहत देने की घोषणा की गई थी.
इस पैकेज के तहत राशन कार्ड वाले सभी परिवार को पांच किलो अतिरिक्त गेंहू या चावल दिया जाएगा. साथ ही लोगों को एक किलो दाल भी दी जाएगी.
केंद्र सरकार ने ग़रीब परिवारों की मदद के लिए महिलाओं के जनधन खाते में तीन महीने तक 500 रुपए भेजने की घोषणा भी की थी. इसी पहली किश्त तीन अप्रैल को भेज दी गई है.
वहीं, दिल्ली सरकार पूरे राज्य में शेल्टर होम और स्कूलों के ज़रिए जरूरतमंदों को रोज़ खाना उपलब्ध करा रही है. राशन की दुकानों और स्कूलों में भी मुफ्त राशन दिया जा रहा है.
इसके अलवा बुज़ुर्ग, विधवाओं और विक्लांगों की पेंशन में भी वृद्धि की गई है. साथ ही सरकार ने मकान मालिकों से किराया ना लेने और कंपनियों से वेतन ना काटने की अपील भी की है.
भर पेट खाने को नहीं
लेकिन इन सबके बावजूद मज़दूरों की परेशानियाँ कम नहीं हुई हैं. फ़ैक्टरियों में महिला कामगारों को पांच से सात हज़ार रुपए के बीच तनख़्वाह मिलती है. ये लोग अधिकतर किराए पर रहते हैं और महीना ख़त्म होते-होते उनके पैसे भी ख़त्म हो जाते हैं.
आयशा इस वक़्त सरकार की तरफ से मिल रहे खाने के भरोसे हैं. उनके पास घर ख़र्च के पैसे भी ख़त्म होने को हैं.
आयशा ने बताया, "मुझे पांच हज़ार रुपए महीना मिलता है. अब किराया, बिजली-पानी का बिल और इतने लोगों के परिवार में क्या बचत हो पाएगी. ख़र्चे ही पूरे नहीं हो पाते. बिजली-पानी मुफ़्त हुआ भी है तो वो मकान मालिकों के लिए है. हमसे तो सब कुछ लिया जाता है. "
“फ़िलहाल सरकार से मिल रहा खाना खाते हैं लेकिन उससे भी सबका पेट नहीं भर पाता. घर के तीन लोग खाना लेने जाते हैं लेकिन घर में दो बच्चे भी हैं. कोरोना के वजह से बच्चों को खाना लेने आने से मना करते हैं.”
शबाना मंगोलपुरी के बी ब्लॉक में बिजली की एमसी का बनाने वाली फ़ैक्टरी में काम करती हैं.
वह कहती हैं, "औरतों को तो पहले ही फ़ैक्टरियों में कम पैसा मिलता है. बोलते हैं कि तुम भारी काम नहीं कर सकतीं. अब जो पैसा मिलता है वो भी नहीं मिल पाएगा. फिर लोगों को लगता है कि महिलाएं कितना लड़ सकती हैं. हज़ार ज़िम्मेदारियां हैं, वही पूरी करती रह जाती हैं.
शबाना जहां काम करती हैं वो फ़ैक्टरी भी 22 मार्च को बंद हो गई थी. अब उन्हें भी आगे पैसे मिलने के आसार नहीं है.
उन्होंने कहा, “इन फ़ैक्टरियों में देखने कोई नहीं आता कि क्या हो रहा है. अब अगर हम तनख़्वाह मागेंगे तो मालिक कहेगा कि जब लॉकडाउन में मेरा काम नहीं चल रहा था तो तुम्हें पैसे कैसे दूं. फिर हम क्या कर सकते हैं. कोई शिकायत करता नहीं. एक आदमी के शिकायत करने का फायदा नहीं होता.”
“हमें ये भी डर है कि अगर नुक़सान के कारण फ़ैक्टरी ही बंद हो गई तो हम कहां जाएंगे क्योंकि लॉकडाउन तो पता नहीं कब तक चलेगा. कभी-कभी तो लगता है ग़रीब होना ही गुनाह है. जो भी मुश्किल आती है उसमें हमारी रोज़ी-रोटी पहले छिन जाती है. मैं और मेरी पति दोनों का ही काम छूट गया है.”
नहीं है राशन कार्ड
दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन के दौरान मुफ़्त राशन दिए जाने की घोषणा की थी. साथ ही प्रदेश सरकार ने जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं उनके लिए बिना कार्ड राशन की सुविधा देने का ऐलान किया है.
इसका लाभ कई लोगों को मिला भी है लेकिन अब भी ऐसे कई लोग इस सुविधा से महरूम हैं जिनके पास राशन कार्ड नहीं है.
ज़ोया स्क्रू बनाने वाली फ़ैक्टरी में काम करती हैं. उनका छह लोगों का परिवार है लेकिन कमाने वाले सिर्फ़ दो लोग हैं. उनका राशन कार्ड नहीं बना है इसलिए वो सरकारी राशन का फ़ायदा नहीं ले पातीं.
उन्होंने बताया, “हम किराए पर रहते हैं इसलिए हमारा राशन कार्ड नहीं है. हम जहां रहते हैं वहां पर राशन कार्ड है लेकिन वहां जाकर तो राशन ले नहीं सकते. अभी हमें सरकारी राशन नहीं मिल पा रहा है. पहले से जो थोड़े बहुत पैसे बचे हैं उनका इस्तेमाल करके घर चला रहे हैं. बहुत मुश्किल से कुछ पैसे इकट्ठा किए थे अब वो भी ख़त्म हो जाएंगे.''
बिजली के बोर्ड की प्रिंटिंग का काम करने वालीं संगीता के साथ भी ऐसी ही स्थिति है. उनका भी राशन कार्ड नहीं है. उनके पति मुंबई में काम करते हैं लेकिन वहां भी काम बंद पड़ा है.
संगीता ने बताया, “खाने की दिक्कत तो है ही लेकिन किराया भी अपनी जगह है. अब सरकार तो कह देती है कि मकान मालिक किराया ना लें लेकिन ऐसा होता नहीं है. मकान मालिक कह रहे हैं कि अभी पैसे नहीं हैं तो मत दो लेकिन बाद में दे देना. हालांकि, काम उनका भी रुका हुआ है. पर हमें तो बाद में भी तनख़्वाह नहीं मिलेगी तो किराया कैसे देंगे.”
बढ़ सकती है ग़रीबी
लॉकडाउन के कारण पूरा देश एक तरह से थम गया है और जानकार मानते हैं कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना स्वाभाविक है.
जानकारों का मानना है कि इससे नौकरियों पर असर होगा. नुक़सान के कारण कंपनियां बंद हो सकती हैं, कामगारों को निकाला जा सकता है.
इंटरनेशनल लेबर यूनियन की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों की ग़रीबी और बढ़ जाने का ख़तरा है. साथ ही 19 करोड़ 50 लाख नौकरियों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.
ये नुक़सान कितना बड़ा होगा ये इस पर निर्भर करेगा कि कोरोना वायरस को दुनिया कब तक हरा पाती है और देश में लॉकडाउन कब तक बना रहता है.
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