कोरोना वायरस: मोदी सरकार भारत को आर्थिक तबाही से बचा पाएगी?

  • ज़ुबैर अहमद
  • बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
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भारत में कोरोनावायरस के मामले

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स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

कोरोना वायरस की महामारी जब ख़त्म होगी, तो दुनिया बदल चुकी होगी- ऐसा कहना था अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का.

किसिंजर के शब्द डराने वाले नहीं थे. उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध से हुई तबाही और इसके बाद के पुनर्निर्माण के दौर को क़रीब से देखा और अनुभव किया है.

आम राय ये है कि कोरोना वायरस से तबाही का सही अंदाज़ा इसके ख़त्म होने के बाद ही चलेगा लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं कि दुनिया के विकसित देश और आर्थिक सुपर पावर एक बड़े संकट का सामना कर रहे होंगे.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन या ILO के अनुसार दुनिया भर में डेढ़ अरब लोग बेरोज़गार हो जाएंगे. ये बड़ी चिंता की बात है.

विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत का भी कुछ ऐसा ही हाल हो सकता है. विशेषज्ञ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि पिछले 30 सालों की आर्थिक कामयाबी धुल जाएगी.

साधारण शब्दों में इसका मतलब ये हुआ कि करोड़ों लोग फिर से ग़रीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे. ग़रीब किसानों और मज़दूरों की जेब में पैसे नहीं होंगे. मध्यम वर्ग के लाखों लोगों की या तो नौकरियां जा चुकी होंगी या उनके वेतन कम हो चुके होंगे.

बड़े व्यापारी बैंकों के क़र्ज़ों के नीचे दबे होंगे और उद्योगपतियों की कंपनियों की क़ीमत काफ़ी गिर चुकी होगी.

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देश के 135 करोड़ जनता के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह सा लग चुका होगा.

ऐसे में "नई विश्व व्यवस्था" में भारत सरकार की भूमिका क्या होगी? क्या मोदी सरकार के पास इस तबाही से बचने की कोई ठोस योजना है?

योजना के बारे में फ़िलहाल किसी को अधिक जानकारी नहीं है. मुंबई में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ विवेक कौल कहते हैं कि मोदी सरकार लोगों से सलाह-मशविरा नहीं कर रही है, उद्योगपतियों और व्यपारियों की राय नहीं ले रही है और पारदर्शिता का अभाव है.

लेकिन संकेत ऐसे मिल रहे हैं कि सरकार कोरोना वायरस से जूझने और इसके बाद इससे होने वाली बर्बादी से निपटने के लिए कई तरह की योजनाएं बना रही है.

नरेंद्र मोदी

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जानकार कहते हैं कि इन योजनाओं की क़ामयाबी इस बात निर्भर करेगी कि भारत सरकार इस बीमारी की तबाही को कंट्रोल करने में कितना कामयाब रहती है और इस बदलती दुनिया के लिए अगर योजनाएं बनाई भी जा रही हैं तो ये कितनी प्रभावी साबित होंगी.

योजनाओं पर अभी चर्चा होगी पर प्रश्न पहले ये है कि इन योजनाओं को पूरा करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त पूँजी है?

क्या सरकार के पास पैसे हैं?

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इसका जवाब हाँ भी है और ना भी. ख़ज़ाने में कितने पैसे हैं और कितना अनाज है?

* 470 अरब डॉलर -- विदेशी मुद्रा रिज़र्व

* 2 लाख करोड़ रुपए -- जो पेट्रोल के दाम में भारी गिरावट के कारण आए हैं

* 5 लाख करोड़ रुपए -बैंकों के पास ये नक़दी जो भारतीय रिजर्व बैंक या आरबीआई के रेट कट और दूसरे क़दमों के कारण आए

* 585 लाख मिट्रिक टन अनाज भंडार - एफ़सीआई के गोदामों में चावल और गेहूं जो ज़रूरत से दो गुना से अधिक है

सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि कोरोना के कारण सरकारी ख़ज़ाने में जीएसटी और दूसरे कर से आने वाले पैसों में भारी गिरावट आएगी.

उदाहरण: सरकार ने साल 2020-21 में विनिवेश से 1. 2 लाख करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखा है जो अब सरकार भी मानती है कि कभी पूरा नहीं होगा.

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आर्थिक विशेषज्ञ विवेक कौल मानते हैं कि सरकार के पास पैसे कम हैं. वो कहते हैं, "अगर आप पिछले वित्त वर्ष में जो कर की वसूली हुई है वो देखें तो बहुत कम है और आने आले साल में और भी कम हो जाएगी. अभी पूरी अर्थव्यवस्था बंद है जिसके कारण लोग ख़र्च नहीं कर रहे हैं."

उनके मुताबिक़ बैंकों की सेहत भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. विवेक कौल के मुताबिक़ बैंकों की हालत पहले से ख़राब है. 2008 के संकट के समय बैंकों ने जो ऋण दिए थे उनमें से कई अब ख़राब ऋण (वो क़र्ज़ जो डूब गए) में बदल चुके हैं जिससे वो अब तक उभर नहीं सके हैं.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

भारत कोरोना वायरस के फैलने से पहले से ही एक आर्थिक संकट की तरफ़ जा रहा था. आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन दास कहते हैं, "कोरोना वायरस से पहले भी हमारी अर्थव्यवस्था नीचे जा रही थी. इसे नीतिगत स्तर पर पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे थे. इस महामारी के शुरू होने से पहले ही मांग में गिरावट आने लगी थी."

लेकिन भारत सरकार ने बीमारी के फैलाव से होने वाले नुक़सान को कम करने के लिए इसने कई छोटे और मंझले साइज़ के क़दम उठाए हैं.

ये क़दम हैं---

* 1.7 लाख करोड़ रुपए की आम लोगों के लिए मदद

* 15000 करोड़ स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार करने के लिए

* भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कई अहम क़दम ताकि बैंकों में क़र्ज़ देने के लिए पैसे आएं

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लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि ये काफ़ी नहीं है. अमरीका ने 2 खरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की है जो इसके सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी का 10 प्रतिशत है.

ब्रिटैन ने भी अपने जीडीपी का 10 प्रतिशत हिस्सा अपने पैकेज में दिया है लेकिन भारत सरकार का 1.7 लाख करोड़ रुपए का पैकेज इसके जीडीपी का केवल 0.8 प्रतिशत है यानी एक प्रतिशत से भी कम.

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के बाद से भारत के व्यापारियों, उद्योगपतियों और आम नागरिकों को एक बड़े आर्थिक पैकेज का इंतज़ार है, ठीक उसी तरह के पैकेज का जैसे अमरीका में आया, जैसे ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आया.

प्रधानमंत्री ने एक आर्थिक टास्क फ़ोर्स का गठन किया है जिसके एक सदस्य ने कहा कि भारत सरकार का इस आपदा से निमटने का तरीक़ा अलग है.

उन्होंने बताया, "पहले मोदी सरकार ने 15000 करोड़ रुपए हेल्थकेयर को मज़बूत करने के लिए मंज़ूरी दी. इसके बाद सरकार की मदद उन लोगों तक पहुंची जिन्हें मदद की सबसे अधिक ज़रूरत थी यानी मज़दूरों और ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए सरकार ने ख़ज़ाना खोल दिया. अब एक बड़े पैकेज पर काम चल रहा है और सही समय पर इसका एलान होगा लेकिन ये पैकेज एक साथ घोषित हो ऐसा ज़रूरी नहीं."

पैकेज के लिए सही समय क्या है?

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समझा ये जा रहा है कि ये पैकेज एक बार में ना आए. जैसे धनुष से तीर अपने निशाने को देख कर बारी-बारी से छोड़ा जाता है उसी तरह से हालात को देखते हुए आर्थिक क़दम बारी-बारी से लिए जाएंगे.

सरकार इस समय बीमारी के फैलाव को रोकने और मौतों को कम करने में ध्यान दे रही है.

इसका समर्थन तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने किया है जिन्होंने कहा है, "अर्थव्यवस्था को तो हम दोबारा ज़िंदा कर सकते हैं लेकिन मरे हुए लोगों को हम दोबारा जीवित नहीं कर सकते."

मुंबई में दलाल स्ट्रीट की एक बड़ी कंपनी चूड़ीवाला सिक्योरिटीज के अलोक चूड़ीवाला इस तर्क से सहमत हैं, "मेरे विचार में इस समय सरकार की प्राथमिकता अर्थव्यवस्था में कम और इस आपदा को रोकने में अधिक है. ज़रा सी भी इसमें चूक होती है तो बहुत भयानक अंजाम हो सकता है."

प्रिय रंजन दास कहते हैं, "हमें ये पता नहीं कि अभी आपदा क्या कोर्स लेगा. इसका आर्थिक और ह्यूमन कॉस्ट कितना बड़ा होगा. इस समय तो हम इससे गुज़र रहे हैं. कोरोना ने एक महासंकट पैदा कर दिया है जहाँ जान बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता हो गई है."

विवेक कौल की राय थोड़ी अलग है. वो कहते हैं कि सरकार अपनी प्राथमिकता ज़रूर तय करे लेकिन अर्थव्यवस्था को दोबारा ज़िंदा करने के लिए आपदा के ख़त्म होने का इंतज़ार ना करे.

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वो आगे कहते हैं, "कोई भी सरकार कोरोना वायरस के ख़त्म होने का इंतज़ार नहीं कर सकती है. लड़ाइयां एक ही मोर्चे पर नहीं लड़ी जा सकतीं हैं. ठीक है आप स्वास्थ्य सिस्टम पर पहले काम शुरू करें जो काफ़ी कमज़ोर है लेकिन अर्थव्यवस्था पर भी अभी ध्यान दें."

इस बात पर सभी विशेषज्ञ सहमत हैं कि इस समय "सभी आज़ाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े संकट से गुज़र रहे हैं. ऐसे अभूतपूर्व समय के लिए अभूतपूर्व एक्शन की ज़रूरत है."

लेकिन सरकारी सूत्रों के मुताबिक़ पीएमओ में इस समय कई सुझाव आए हुए हैं जो उद्योगपतियों, व्यापारियों, बैंकरों, वित्त मामलों के माहिरों और शेयर बाज़ार के लोगों की राय पर आधारित हैं.

प्रिय रंजन दास इस बात से सहमत हैं कि सरकार कुछ बड़ी घोषणा कर सकती है क्योंकि अब तक उठाए गए क़दम इस श्रेणी में नहीं हैं. "ये (1.7 लाख करोड़ रुपए की घोषणा) आर्थिक पैकेज नहीं है. ये एक रिलीफ़ पैकेज है जैसे किसी आपदा के समय तुरंत रिलीफ़ दी जाती है. ये पैकेज भी करोना आपदा से संबंधित एक रिलीफ़ है जिसमें समाज के सबसे कमज़ोर तबक़े के लिए मदद का एलान किया गया है. ये पैकेज उनके लिए है जो कोरोना से मरने से पहले भूख से मरने के ख़तरे में हैं."

इस समय अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र चारों खाने चित हैं. पर्यटन, सेवा क्षेत्र, निर्माण, विमानन और कृषि सभी कठिनाइयों में हैं. इनके इलावा शेयर बाज़ार और वित्त क्षेत्र भी कमज़ोर हैं. प्रिय रंजन दास का तर्क है कि पहले मोदी सरकार को सभी सेक्टर की मदद करनी होगी. दूसरे राउंड में कमज़ोर और बीमार सेक्टर पर अलग-अलग तरीक़े से ध्यान देना होगा.

सरकार के संभव क़दम

डोमेस्टिक मार्किट को मज़बूत करना

भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद दो स्तंभों पर टिकी है. एक विशाल घरेलू मार्किट और दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी.

प्रिय रंजन दास कहते हैं कि वो ये पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था दोबारा बनाने में दूसरे देशों के मुक़ाबले में ज़्यादा समय नहीं लगेगा.

वो कहते हैं, "क्योंकि हमारी कुछ ताक़तें हैं. हमारी ताक़त डेमॉग्राफ़ी है. जवानों की अधिक आबादी है. हम दुनिया के सबसे जवान देशों में हैं. हमारी दूसरी ताक़त ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू डिमांड के आधार पर चलती है, हमारी निर्भरता दुनिया के बाज़ारों पर ज़्यादा नहीं है."

डिमांड को बढ़ाना

सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी देश के अंदर मांग यानी डिमांड को बढ़ाना जो कोरोना वायरस से पहले से ही नीचे गिर रहा था. मांग या डिमांड बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं के पॉकेट में पैसे आने चाहिए.

पैसे कहाँ से आएँगे? सरकार कर में छूट दे सकती है, ग़रीबों के बैंक खातों में अगले छह महीने तक सीधे पैसे भेज सकती है और छोटे बड़े व्यापारियों के लिए सस्ते दर पर बैंकों से क़र्ज़ दिलवा सकती है.

विदेशी निवेश को आकर्षित करना

जब दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं फिर से बनाई जा रही होंगी तो निवेशक चाहेंगे कि वो अपनी पूँजी सुरक्षित देशों में लगाएं. भारत सरकार अगर विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए एक पैकेज तैयार करें तो इससे काफ़ी लोगों को देश में नौकरियां मिल सकती हैं.

केंद्र सरकार को दिए गए सुझाव में विदेशी निवेशकों को लुभाने पर बहुत ज़ोर दिया गया है जिसके लिए सरकारी क़ानून में लचक लाने की ज़रूरत होगी.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस आपदा की ज़िम्मेदारी चीन पर डालते हैं. बहुत सारी अमरीकी कंपनियां चीन से ख़ुश नहीं हैं, उन्हें अब चीन पर भरोसा नहीं रहा.

ये भारत के लिए एक अवसर है. लेकिन क्या भारत सरकार इन नाराज़ उद्योगपतियों की फैक्टरियां को चीन से भारत में लगाने का निमंत्रण देगी? ये तो समय बताएगा लेकिन भारत के लिए एक अच्छा मौक़ा है.

सरकार की निजी कंपनियों में हिस्सेदारी

मिसाल की तौर पर एयरलाइंस इस समय संकट में हैं. उन्हें दोबारा ज़िंदा करने के लिए सरकार इनमें स्टेक ले सकती है और कुछ सालों के बाद जब स्थिति में सुधार आए तो उन्हें बेच सकती है.

लेकिन सब से अहम सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार के पास इच्छा शक्ति है?

क्या सरकार दिल खोल कर, रिस्क लेकर, अर्थव्यवस्था को दोबारा बनाने की हिम्मत करेगी.

या फिर अब तक की तरह फूँक-फूँक कर ही क़दम आगे बढ़ाना पसंद करेगी?

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