कोरोना वायरस: ममता का आरोप- केंद्र नहीं कर रहा मदद

  • प्रभाकर मणि तिवारी
  • कोलकाता से बीबीसी हिंदी के लिए
कोरोना पश्चिम बंगाल

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भारत में कोरोनावायरस के मामले

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स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

पश्चिम बंगाल में अब कोरोना वायरस की चपेट में आने और इससे मरने वालों के आंकड़ों पर घमासान शुरू हो गया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकार के आंकड़ों में अंतर से आम लोग असमंजस में हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों में जहां राज्य में कोरोना पीड़ितों की तादाद 91 बताई गई है वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके ज़िम्मे स्वास्थ्य मंत्रालय भी है, ने मंगलवार को बताया कि बीते 24 घंटे के दौरान आठ नए मामले सामने आने के बाद राज्य में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों की तादाद बढ़ कर 69 हो गई है.

इसके साथ ही मरने वालों की तादाद बढ़ कर पाँच पहुंच गई है. दो लोगों की मौत के बाद उनकी जाँच रिपोर्ट पाजिटिव आई थी. उन्होंने बताया कि कोरोना की चपेट में आने वाले लोगों में से 99 फीसदी मामले में विदेश से लौटे व्यक्तियों के ज़रिए संक्रमण हुआ.

मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में कोरोना के सात हॉट स्पॉट की पहचान कर ली गई है. वहां विशेष ध्यान दिया जाएगा. राज्य सरकार ने बुधवार से फूलों के बाजार को लॉकडाउन से छूट देने का फैसला किया है.

भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय की ओर से सोमवार को अपने एक ट्वीट में इस पर सवाल उठाया गया था. इससे नाराज़ ममता ने पार्टी का नाम लिए बिना आईटी सेल पर संकट के मौजूदा दौर में आम लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है.

मुख्यमंत्री की दलील है कि कोरोना से मरने वालों की तादाद बंगाल में मलेरिया या डेंगू से मरने वालों के मुक़ाबले बहुत कम है.

शुरुआती दौर में कोरोना के संदिग्ध मरीजों को सिर्फ कोलकाता स्थित संक्रामक बीमारियों के एकमात्र अस्पताल में दाखिल कर वहां जांच की जाती थी. लेकिन बाद में कोलकाता के सरकारी एम.आर.बांगुर अस्पताल को कोरोना अस्पताल में बदल दिया गया.

सरकार ने तमाम जिलों में ऐसे एक-एक अस्पताल की स्थापना का फैसला किया है. एक सप्ताह बाद सिलीगुड़ी स्थित उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज अस्पताल में भी कोरना की जांच शुरू हो गई. इसके बाद अब टाटा मेडिकल सेंटर और अपोलो अस्पताल जैसे दो निजी अस्पतालो में भी कोरोना की जांच शुरू हो गई है.

इस दौरान डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए सुरक्षा उपकरणों की कमी का मुद्दा भी कई बार उठा और इन लोगों ने आधारभूत सुविधाओं की कमी के मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन भी किया.

कई जगह से डाक्टरों को प्लास्टिक के बने रेनकोट और मास्क देने की खबरें और तस्वीरें भी सामने आई थीं. लेकिन अब सरकार तमाम कमियों को दूर करने का दावा कर रही है.

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केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनाव

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इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार की यह तनातनी बीते सप्ताह उस समय सतह पर आई थी ममता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था. यही नहीं, तृणमूल कांग्रेस ने अब बुधवार को इस मुद्दे पर होने वाली सर्वदलीय बैठक में भी हिस्सा लेने से मना कर दिया है.

कोरोना के मरीजों और इससे होने वाली मौतों के आंकड़ों पर घमासान के बीच प्रदेश मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि बंगाल में हालात काबू में हैं.

एक दिन पहले अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता बनर्जी ने कहा, "राज्य में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों की तादाद 61 है. लेकिन संतोष की बात यह है कि इनमें सात परिवारों के ही 55 लोग हैं. यह मरीज़ ऐसे हैं जो या तो हाल में विदेशों से लौटे थे या फिर कोरोना संक्रमित लोगों से मिले थे. राजधानी कोलकाता में ऐसे मरीजों की तादाद 12 है जबकि पड़ोसी हावड़ा में आठ."

मुख्यमंत्री ने दावा किया कि अब तक कोरोना की वजह से राज्य में तीन लोगों की ही मौत हुई है. वैसे, राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी बुलेटिन में पहले यह तादाद सात बताई गई थी. लेकिन मुख्यमंत्री और उनके बाद मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने दावा किया था कि चार लोगों के कोरोना पॉज़िटिव होने के बावजूद उनकी मौत दूसरी बीमारियों से हुई थी.

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 3,749 लोगों को होम क्वारंटीन से छोड़ दिया गया है. इसी तरह 551 सरकारी क्वारंटीन केंद्रों से 4,010 लोगों को घर भेज दिया गया है. फिलहाल 2,879 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया है.

ममता बनर्जी बताती हैं, "अब तक 1301 लोगों के नमूनों की जांच की गई है."

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मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर इस मामले में सहयोग नहीं करने का भी आरोप लगाया है.

उनका कहना है कि वित्तीय तंगी के बावजूद सरकार ने 11 लाख निजी सुरक्षा उपकरणों यानी पीपीई का आर्डर दिया है. केंद्र से पांच लाख पीपीई मांगा गया था. लेकिन केंद्र ने उन्हें महज़ तीन हजार पीपीई ही दिए हैं. इसी तरह पांच लाख एन-95 मास्क मांगे गए थे, लेकिन 10 हज़ार ही मिले हैं. सरकार ने अपने पैसों से 7.92 लाख मास्क का आर्डर दिया है.

केंद्र और राज्य के आंकड़ों में अंतर के बारे में एक सवाल पर वह कहती हैं, "यह समय आंकड़ों को चुनौती देने का नहीं है. यह राजनीति करने का भी समय नहीं है. बावजूद उसके एक पार्टी का आईटी सेल अपने ट्वीट के जरिए लोगों को गुमराह करने में जुटा है."

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भाजपा का आरोप

ध्यान रहे कि भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोमवार को अपने एक ट्वीट में कहा थ कि पश्चिम बंगाल सरकार ने दो, तीन और पांच अप्रैल को कोई मेडिकल बुलेटिन जारी नहीं किया.

उन्होंने मौतों के आंकड़े कम होने को रहस्यमय करार देते हुए सवाल किया था कि आखिर ममता बनर्जी क्या छिपा रही हैं? इससे पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष भी सरकार पर मौतों के आंकड़ों में हेर-फेर करने का आरोप लगा चुके हैं.

लेकिन ममता ने इसके लिए किसी का नाम लिए बिना सफाई दी है कि शुक्रवार को उन्होंने खुद ही ताज़ा स्थिति पर प्रेस कांफ्रेंस की थी जबकि शनिवार को मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने मीडिया से बात की थी.

मुख्यमंत्री का कहना था, "यह ओछी राजनीति का समय नहीं है. हमने इस संकट से निपटने में केंद्र की कमियों पर कभी सवाल नहीं उठाए हैं."

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मौतों के आंकड़ों पर सवाल उठने के बाद सरकार ने एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है जो ऐसे मामलों में 34-सूत्री जांच के बाद ही इस बात की पुष्टि करेगा कि संबंधित व्यक्ति की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण से हुई है या नहीं.

स्वास्थ्य विभाग की ओर जारी दिशानिर्देशों के मुताबिक, संबंधित अस्पताल प्रबंधन को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करते समय इन 34 बिंदुओं का सिलसिलेवार जवाब भी देना होगा.

मुख्यमंत्री का दावा है कि राज्य में मलेरिया और डेंगू से होने वाली मौतों की तुलना में कोरोना से मरने वालों की तादाद औऱ संक्रमण फैलने की दर बहुत कम है. वे आंकड़ों के हवाले बताती हैं, "वर्ष 2005 में मलेरिया से दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी औऱ 1.6 लाख लोग इसकी चपेट थे. इसी तरह वर्ष 2016 में 26,741 लोग डेंगू की चपेट में आए थे जिनमें से 50 लोगों की मौत हो गई थी."

दूसरी ओर, भाजपा इस मुद्दे पर लगातार ममता और उनकी सरकार को कटघरे में खड़ा करने में जुटी है. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष आरोप लगाते हैं, "डेंगू से मौत होने पर राज्य सरकार के निर्देश पर सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर मृत्यु प्रमाणपत्र पर अज्ञात बुखार से मौत लिख देते थे. उसी प्रकार अब कोरोना से मौत होने पर किडनी फेल होने और निमोनिया की वजह से होने वाली मौत बता दिया जा रहा है." घोष ने आरोप लगाया है कि सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए ऐसा कर रही है.

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भाजपा ने प्रधानमंत्री के साथ होने वाली बैठकों में हिस्सा नहीं लेने के लिए भी ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की आलोचना की है.

घोष ने कहा कि कोरोना जैसी महामारी पर आयोजित होने वाली बैठकों पर भी तृणमूल कांग्रेस राजनीति करने में जुटी है. पहले मुख्यमंत्री ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया और अब उनकी पार्टी ने भी सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने से मना कर दिया है.

भाजपा नेता का कहना है कि वैसे तो पहले भी कई मौकों पर तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र और प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई बैठकों में हिस्सा नहीं लिया है. लेकिन संकट के मौजूदा दौर में उसका यह रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

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