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कोरोना से बचने के लिए दो मीटर की दूरी काफी नहीं, MIT शोधकर्ता की चेतावनी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Tanuja Yadav Updated Fri, 03 Apr 2020 02:09 PM IST
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staying two meters away from others is not enough, mit reserchers warns coronavirus may travel eight meters
staying two meters away from others is not enough - फोटो : पीटीआई
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कोरोना से बचने के लिए एक दूसरे से दो मीटर की दूरी बनाए रखना काफी नहीं होगा। एमआईटी के एक शोधकर्ता ने चेतावनी देते हुए कहा कि कोरोना वायरस लगभग आठ मीटर की दूरी तक फैल सकता है। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और सीडीसी (CDC) की तरफ से जारी पुरानी गाइडलाइंस में बदलाव करने की सलाह दी है।



एमआईटी की शोधकर्ता लीडिया बोरोइबा ने सालों तक खांसी और जुकाम के गतिविज्ञान पर शोध किया है। एमआईटी की एसोसिएट प्रोफेसर लीडिया ने अपने शोध में लोगों को कोरोना से बचने के लिए आठ मीटर दूरी रखने की चेतावनी दी है। उनका ये शोध अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन की पत्रिका में छपा है। प्रोफेसर लीडिया ने अपने शोध में जानकारी दी है कि दो मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग 1930 के पुराने मॉडल पर आधारित है।


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प्रोफेसर लीडिया ने अपने शोध में कहा कि हर तरह की छोटी बड़ी ड्रॉपलेट्ल 23-27 फीट यानि की सात से आठ मीटर की दूरी तय कर सकती है। लीडिया के शोध में ये जानकारी मिलती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी पुरानी गाइडलाइंस में ड्रॉपलेट्स को दो वर्गों में बांटा गया है। एक छोटी ड्रॉपलेट और दूसरी बड़ी ड्रॉपलेट। जब एक व्यक्ति छींकता या खांसता है तो उसकी ड्रॉपलेट सेमी-बैलेस्टिक ट्रेजेक्ट्री की तरह सतह पर गिरेंगी जिससे संक्रमण का दायरा और बढ़ सकता है।
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हालांकि संक्रमण के नए मामलों के आधार पर शोधकर्ता लीडिया कहती है कि कोई भी छींक या खांसी हवा भरे बादल की बनी होती है जो किसी व्यक्ति की ड्रॉपलेट्स को लंबी दूरी तक ले जाने का काम करती है। न्यूयॉर्क पोस्ट के मुताबिक लीडिया ने बताया कि चीन की 2020 की रिपोर्ट में ये जानकारी दी गई है कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के वेंटिलेटर पर भी कोरोना के लक्षण देखे जा सकते हैं। 
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सोशल डिस्टेंसिंग की मौजूदा गाइडलाइंस पर चिंता जताते हुए लीडिया कहती हैं कि ये गाइडलाइन कुछ ज्यादा ही सरल है और प्रस्तावित बचाव कार्य के असर को सीमित कर सकती है। प्रोफेसर लीडिया ने डब्ल्यूएचओ और सीडीसी की तरफ से जारी मौजूदा गाइडलाइन में जल्द बदलाव करने की सलाह दी है। वहीं डब्ल्यूएचओ ने प्रोफेसर लीडिया के शोध का स्वागत किया है। 

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