क्या कोरोना वायरस से जुड़े पोस्ट लिखने पर सरकार सज़ा दे सकती है?-फ़ैक्ट चेक

  • कीर्ति दुबे
  • बीबीसी संवाददाता
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भारत में कोविड-19 का संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है. मंगलवार को देश में 227 नए पॉज़िटिव केस सामने आए.

इस वक़्त देश में कुल 1600 से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और इससे मरने वालों का आंकड़ा 38 तक जा पहुंचा है.

देश में जारी लॉकडाउन के बीच व्हॉट्सएप पर एक मैसेज तेजी से फैलाया जा रहा है.

मैसेज में दावा किया गया है, "आज रात से देश में आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू हो रहा है. ये पूरे देश में लागू होगा. जिसके मुताबिक़ सरकारी विभागों के अलावा कोई भी आम नागरिक कोरोना वायरस से जुड़े पोस्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ना लिख सकता है ना ही शेयर कर सकता है. ऐसा करने पर सज़ा का प्रावधान है. 1 अप्रैल से कोरोना वायरस से जुड़ा कोई मैसेज या जोक फॉरवर्ड ना करें. ऐसा हुआ तो ग्रुप एडमिन की गिरफ़्तारी सेक्शन 68...140 और 188 के तहत होगी."

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दावों की पड़ताल

हमने इस दावों की पड़ताल शुरू की. हमें गृह मंत्रालय का 24 मार्च, 2020 का एक नोटिफ़िकेशन मिला.

दरअसल 1 अप्रैल से नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा साथ ही आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू कर दिया गया था.

भारत सरकार के इस नोटिफ़िकेशन में कहा गया है, "सेक्शन 6 (2)(I) के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 लगाया जा रहा है. अब भारत सरकार के मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों और अथॉरिटीज़ को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के आदेश का पालन करना होगा ताकि सोशल डिस्टेंसिंग को प्रभावी बना कर कोविड-19 के संक्रमण को रोका जा सके."

क्या इस अधिनियम के लागू होते ही कोई कोरोना वायरस से जुड़ा कुछ भी नहीं लिखा जा सकता? इस दावे की हक़ीकत जानने के लिए ये समझना ज़रूरी है कि आख़िर आपदा प्रबंधन अधिनियम है क्या?

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आपदा प्रबंधन अधिनियम

आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया. ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके.

इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है. इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं.

इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है. इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है.

इस कानून की सबसे खास बात है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन ना करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है.

ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

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ये एपिडेमिक डिज़िज़ एक्ट 1897 से कैसे अलग है?

मार्च महीने की शुरुआत में भारत सरकार ने 123 साल पुराने अंग्रेजी हक़ूमत में बनाए गए एपिडेमिक डिज़िज़ एक्ट 1897 लागू किया था.

इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के बॉम्बे शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था.

इसमें ब्रितानी सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी. इसी कानून का इस्तेमाल साल 2018 में गुजरात में फैले कॉलरा बिमारी के दौरान किया गया था.

चूंकि ये कानून राज्य सरकारों को महामारी की प्रकृति को देखते हुए नए नियम बनाने की सहूलियत देता है ऐसे में ये फैसला राज्य सरकारों को लेना होता है कि वह अपने राज्य में क्या नए नियम-क़ायदे महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए बनाना चाहती है.

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कोरोना वायरस: नई टेक्नॉलॉजी से मिलेगी मदद?

कोविड-19 के संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने 21 दिनों के लॉकडाउन के हीआपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 इसलिए लागू किया ताकि केंद्र सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक प्लान देश भर में लागू करा सके.

ज़ाहिर है कि देश में केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू तो किया है लेकिन मैसेज में किए जा रहे दावे से अलग ये एक अप्रैल से नहीं बल्कि 25 मार्च से लागू है.

और इस कानून का कोई संबंध आम नागरिक के सोशल मीडिया पोस्ट या कोरोना से जुड़े मैसेज फॉर्वर्ड करने से बिलकुल भी नहीं है.

हालांकि एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के कारण कोरोना वायरस महामारी की गंभीरता को देखते हुए कोई भी अप्रमाणिक जानकारी साझा करने से बचना बेहतर होगा.

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