कोरोना से लड़ने का जज्बा:कोटा में 40 हजार छात्र हॉस्टल-पीजी से बाहर न निकलकर वायरस को हरा रहे, अब तक कोई पॉजिटिव नहीं

कोटा4 वर्ष पहले
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कोटा में 40 से 45 हजार छात्र अभी भी मौजूद हैं। - Dainik Bhaskar
कोटा में 40 से 45 हजार छात्र अभी भी मौजूद हैं।
  • सूरज की किरणें भी कमरों तक नहीं पहुंच सकतीं, इसके बावजूद छात्र चार दीवारी में बंद हैं
  • परिवार वाले चिंता न करें, इसके लिए उनसे वे रोजाना फोन पर संपर्क में रहते हैं

जयपुर (दीपक आनंद). कोरोना के कहर के बीच हजारों लाेग अपने गांव-ढाणी जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं। मजबूरी में लॉकडाउन तोड़ने वाले ये लोग देश को खतरे में डाल रहे हैं। ऐसे में देश की कोचिंग कैपिटल और राजस्थान के कोटा में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स ने बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। कोटा में अभी एक भी कोरोना पाॅजिटिव नहीं मिला है।
इसमें सबसे अहम भूमिका इन छात्रों की है, जो अनुशासन के साथ अपने हॉस्टल-पीजी के कमरों में ही रह रहे हैं। वहीं, छात्राएं भी अपने घर जाने की जिद न करके यहां अनुशासन के साथ रह रही हैं। कोरोना का एपिसेंटर बन चुके भीलवाड़ा से कोटा शहर की दूरी 160 किमी से भी कम है। इसके बावजूद अब भी 35 से 40 हजार छात्रों ने कोराेना को हराने के लिए अपनी जिंदगी को हॉस्टल के रूम से लेकर मैस तक सीमित करके रख दिया है।

चुनौतियां कम नहीं- 

  • न्यू राजीव गांधी नगर, राजीव गांधी नगर, तलवंडी और जवाहरनगर समेत अन्य जगह हॉस्टलों के कई कमरों में क्रॉस वेंटिलेशन भी नहीं।
  • सूरज की किरणें भी कमरों तक नहीं पहुंच सकतीं। इसके बावजूद छात्र अपने कमरों में ही रह रहे हैं।
  • परिवार वाले चिंता न करें, इसके लिए वे प्रतिदिन फोन के जरिए संपर्क में रहते हैं।
  • जिला प्रशासन, कोचिंग संचालक और हाॅस्टल संचालक सपोर्ट कर रहे हैं, लेकिन छात्र अपनी इच्छाशक्ति से इस अनुशासन को बना पा रहे हैं।

खतरा इसलिए ज्यादा
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की 2017 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार कोटा विश्व के सात सबसे अधिक घनत्व वाले शहरों में है। मुंबई सूची में दूसरे स्थान पर था। कोटा में प्रति वर्ग मीटर 12 हजार 100 लोग रहते थे। मुंबई में 31 हजार 700 लोग थे। इसे देखते हुए कोटा बेहद संवेदनशील शहर है। यहां कम्युनिटी संक्रमण सबसे घातक हो सकता है। 

यूं गुजार रहे वक्त

  • छात्रों की कोचिंग बंद होने और लॉकडाउन के बाद उनका पूरा दिन हॉस्टल में ही बीतता है।
  • कोटा के अधिकांश हॉस्टल मध्यमवर्गीय परिवारों को देखते हुए बनाए गए हैं। ज्यादातर हॉस्टल में मनोरंजन की बहुत सुविधाएं नहीं हैं।
  • किताबें-इंटरनेट ही फिलहाल इनके साथी हैं।
  • सुबह करीब नौ से दस बजे तक ब्रेकफास्ट खत्म करने के बाद ये बच्चे कमरों में चले जाते हैं।
  • पढ़ाई के बाद लंच करने मेस जाते हैं और फिर से अपने रूम में आकर आइसोलेशन का वक्त बिताते हैं।

सकारात्मक नजरिया- छात्र इस समय को भी पॉजिटिव रूप में ले रहे हैं। वे मानते हैं कि जेईई मेन और नीट की तारीख आगे बढ़ने के कारण अब इन्हें पढ़ाई के लिए अधिक समय मिलेगा। 

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