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ठीक सैंपल मिलें तो आईआईटी की जांच किट के कदम बढ़ेः रामगोपाल राव

शशिधर पाठक, नई दिल्ली Published by: देव कश्यप Updated Fri, 27 Mar 2020 07:54 AM IST
सार

  • समस्या तकनीक में नहीं एथिकल क्लीयरेंस में है
  • डाइग्नोस्टिक किट तैयार होने में लग सकता है दो सप्ताह का समय
  • सस्ती, सुविधाजनक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप होगी किट

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Ram Gopal Rao says IIT investigation kit steps up after Coronavirus positive samples are found
Coronavirus - फोटो : PTI

विस्तार
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आईआईटी दिल्ली, आईसीएमआर की सलाहकार संस्था है। यह संस्था कोरोना वाइरस की जांच के लिए किट तैयार कर रही है, लेकिन अभी किट की राह में कई रोड़े हैं। आईआईटी दिल्ली के प्रो. डा. वी रामगोपाल राव का कहना है कि इस किट के तैयार हो पाने में अभी कुछ अड़चने हैं। इसमें दो सप्ताह तक का समय लग सकता है। प्रो. वी रामगोपाल राव के साथ-साथ किट तैयार करने वाली फैकल्टी के प्रो. विवेक पेरुमल ने भी माना कि अभी समय लगेगा।


 
सैंपल मिले तब बन तैयार हो पाएगी किट 
प्रो. वी रामगोपाल राव और प्रो. विवेक पेरुमल का कहना है कि उन्होंने डीएनए आधारित डायग्नॉस्टिक किट तैयार करके इसके एक स्तर का परीक्षण कर लिया है, लेकिन इतना भर काफी नहीं है। प्रामाणिक, अमेरिकी या अंतरराष्ट्रीय मानक की किट तैयार करने के लिए संक्रमित व्यक्ति के सैंपल की जरूरत है। दोनों प्रोफेसर का कहना है कि जब तक कोरोना से संक्रमित घोषित हुए लोगों के पर्याप्त संख्या में सैंपल नहीं मिलेंगे, तबतक इस किट को विकसित किया जाना संभव नहीं है। संक्रमित व्यक्ति के नमूने में ही कोविड-19 का सूचक (मेसेंजर)  आरएनए मिलेगा। उसका ही किट पर परीक्षण किया जाना है। इसी आधार पर किट को प्रामाणिक माना जा सकेगा। दोनों प्रोफेसरों का कहना है कि तकनीक की समस्या नहीं है। समस्या एथिकल स्तर पर है। सैंपल नहीं मिल पा रहा है। इसके रास्ते में कई अड़चने हैं और समझा जा रहा है कि आगले एक-दो दिन में यह दूर हो जाएंगी।

 
 
क्या होगी आईआईटी दिल्ली के किट की विशेषता 
पो. वी रामगोपाल राव और प्रो. विवेक पेरुमल का कहना है कि यह डायग्नॉस्टिक किट काफी सस्ती, प्रामाणिक, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप होगी। इसकी जांच प्रक्रिया आईसीएमआर की मौजूदा जांच प्रक्रिया की तरह होगी। किट की कार्यपद्धति (प्रोसीजर) भी उसी तरह की होगी। इतना ही नहीं, एक संक्रमण की संभावना वाले व्यक्ति की जांच में समय भी चार घंटे के करीब ही लगेगा। बस फर्क यह होगा इसे विकसित किए जाने के बाद मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत इसे आसानी से बड़ी संख्या में तैयार किया जा सकता है।
 
बहुत देर तो नहीं हो जाएगी?
आईआईटी दिल्ली की किट देर से विकसित हो पाने को लेकर चिकित्सा विज्ञानियों में परेशानी के भाव देखे जा रहे हैं। आरएमएल के एक फिजिशियन का कहना है कि किट 15 अप्रैल के आस-पास तैयार होगी तो बनने में भी समय लगेगा। आपूर्ति में भी समय लगेगा। तबतक कोरोना के संक्रमित व्यक्तियों से न जाने कितने बड़े समुदाय में इसका संक्रमण फैल जाएगा। प्रो. राम का भी मानना है कि गंभीर रूप से कोरोना के संक्रमित व्यक्ति के इलाज की अभी कोई दवा नहीं है। अभी जो देखने में आ रहा है, उसमें कम गंभीरता के संक्रमित और मजबूत प्रतिरोधकता (इम्यूनिटी) वाले मरीज ही ठीक हो पा रहे हैं। प्रो. डा. राम का कहना है कि उपचार तो मर्ज के ठीक पता चलने (डायग्नोस) होने के बाद शुरू होता है। अभी तो मर्ज की ठीक पहचान (डायग्नोसिस) होने की ही उचित व्यवस्था नहीं है।
 
अभी क्या है डायग्नोसिस के इंतजाम 
चिकित्सक कोरोना संक्रमण की संभावना वाले मरीज की नाक से रूई के माध्यम से फ्ल्यूइड का हिस्सा लेते हैं। उसके गले में रूई को प्रवेश कराकर वहां से रूई के जरिए लिक्विड और म्यूकस (कफ) लेते हैं। एक पतली ट्यूब के माध्यम से गले से फेफड़े तक उसे ले जाकर ब्रोंकोस्कोप के माध्यम से अंदर से फ्ल्यूइड लेते हैं। इस तरह से इस सैंपल का कल्चर किया जाता है। इसकी डीप एनासिसि में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता चल पाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस जांच को करने में कम से कम चार घंटे और सामान्यत: छह घंटे लगते हैं। बताते हैं संक्रमित व्यक्ति का  24 घंटे के भीतर दो बार नमूना लेकर उसकी जांच की जाती है। दोनों नमूनों में निगेटिव पाए जाने पर उसे कोरोना मुक्त माना जाता है और पाजिटिव पाए जाने पर वह कोरोना से संक्रमित मान लिया जाता है। कोरोना संक्रमित व्यक्ति को फिर क्वारंटीन करके आइसोलेटेड वार्ड में उसका इलाज किया जाता है। इसमें 14 दिन तक लगते हैं।

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