कोरोना: झारखंड के मज़दूरों का दर्द- घर आ तो गए, अब खाएंगे कैसे

  • रवि प्रकाश
  • रांची से, बीबीसी हिंदी के लिए
कोरोना वायरस, छत्तीसगढ़

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गढ़वा जिले के रमना इलाके के माधव चौधरी (बदला हुआ नाम) बुधवार की सुबह अपने गांव पहुंचे. लॉकडाउन के कारण अपनी तीन रातें उन्हें बाहर गुज़ारनी पड़ीं. उन्हें और उनके साथियों को अब अपने-अपने घरों में क्वारंटीन कर दिया गया है.

मतलब, अगले 14 दिनों तक उन्हें घर में भी सबसे अलग रहना होगा. इसके बाद भी वे लॉकडाउन का पालन करेंगे. अब उन्हें कब काम (रोजगार) मिलेगा, इसकी फ़िलहाल कोई गारंटी नहीं है. लिहाजा, वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

माधव उन दर्जनों मज़दूरों में से एक हैं, जो केरल से झारखंड आने के क्रम में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में फंस गए थे. झारखंड और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के हस्तक्षेप के बाद वे अपने गांव लौट पाए. कुछ मज़दूर अभी भी रास्ते में हैं.

माधव चौधरी ने बीबीसी से कहा, "रोड कंस्ट्रक्शन की एक कंपनी के लिए काम करता हूं. कोरोना वायरस के फैलने के बाद हमारा काम बंद करा दिया गया. हमें घर लौटने की जल्दी थी. हमने आनन-फानन में ट्रेन का टिकट लिया. हमारा बिलासपुर तक का टिकट था. वहां से झारखंड की ट्रेन पकड़नी थी लेकिन जनता कर्फ्यू के कारण ट्रेन कैंसिल कर दी गई."

उन्होंने यह भी कहा, "हमलोग स्टेशन पर फंस गए. मेरे साथ मेरे ही गांव के 23 और लोग थे. स्टेशन पर झारखंड के बहुत मज़दूर थे. कुछ लोग केरल, तो कुछ दूसरे लोग महाराष्ट्र से आए थे. वहां कोई ट्रेन नहीं थी. हमारे खाने का इंतजाम भी नहीं था. होटल बंद था. तब कुछ लोगों ने हमारे खाने का इंतजाम कराया. फिर प्रशासन के लोग आए. हमारे आने का इंतजाम कराया."

बकौल माधव, "कल शाम हम लोग गढ़वा बोर्डर पर पहुंचे. यहां प्रशासन ने हमारे लिए गाड़ी का इंतजाम किया था. कल रात हमारा मेडिकल जांच (चेकअप) हुआ. आज सुबह हमें गांव आने दिया गया. अब यहां आ तो गए हैं लेकिन कब काम मिलेगा और मार्च में किए गए काम का पैसा कब मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है. अगर लंबे समय तक काम नहीं मिलेगा, तो कोरोना से मरें न मरें, भूख से मर जाएंगे."

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ऐसे हुई वापसी

बीबीसी के छत्तीसगढ़ स्थित सहयोगी पत्रकार आलोक पुतुल की पहल पर सरकार ने उन्हें उनके गांवों तक पहुंचाने में मदद की. हालांकि, अभी भी पश्चिम बगाल, बिहार, मध्य प्रदेश और असम के 100 से अधिक मजदूर वहां फंसे हुए हैं.

आलोक कहते हैं, "छत्तीसगढ़ में पहले से ही लाकडाउन था. रेलगाड़ी बंद थी और राज्य से बाहर आने जाने वाले बसों पर भी रोक थी. ऐसे में अलग-अलग राज्यों से अपने घर लौट रहे मज़दूर बिलासपुर में फंस गए थे. सोमवार की रात वहां की सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका शुक्ला से मुझे यह ख़बर मिली, तो मैंने इन मज़दूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की कोशिश की."

"मैंने रात को एक ट्वीट किया. उसमें झारखंड और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को टैग किया. सुबह होते-होते झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हमारे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ट्वीट कर मदद की अपील की. फिर 139 मजदूरों को बसों से झारखंड रवाना किया जा सका."

आलोक पुतुल का ट्वीट

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सभी मज़दूरों की जांच हुई

बिलासपुर में फंसे झारखंड के मज़दूरों में अधिकतर लोग गढ़वा जिले के थे. इसके अलावा जामताड़ा, गिरिडीह और कुछ दूसरे जिलों के मजदूरों को भी छत्तीसगढ़ सरकार ने गढ़वा जिले की सीमा तक पहुंचवाया था. वहां से झारखंड के प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें रिसिव कर उनके घरों तक भेजा.

गढ़वा के उपायुक्त (डीसी) हर्ष मंगला ने बीबीसी को बताया कि मज़दूरों के दो ग्रुप छत्तीसगढ़ से हमारी सीमा तक पहुंचाए गए थे. सबको उनके घरों के लिए रवाना कर दिया गया है.

उन्होंने कहा, "देखिए, यह कोई रेस्क्यू कराने जैसा मामला नहीं है. सभी मज़दूर अपने-अपने घरों के लिए निकले थे. लॉकडाउन के कारण जगह-जगह चेक नाका लगा हुआ था. इस कारण वे रास्ते में ही फंस गए. इसकी जानकारी मिलते ही उन्हें लाने की व्यवस्था करायी गई. यहां उनकी उनकी थर्मल स्क्रीनिंग हुई. किसी भी मज़दूर में कोरोना के लक्षण नहीं मिले हैं. उन्हें होम क्वारंटीन रहने के लिए कहा गया है, ताकि कोई रिस्क नहीं रहे."

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ट्वीट

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इन मज़दूरों की सकुशल वापसी के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आभार व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट कर छत्तीसगढ़ सरकार की प्रशंसा की है.

हेमंत सोरेन ने कहा, "नंबर 181 जारी किया गया है. यह चौबीस घंटे काम कर रहा है. किसी भी तरह की दिक्कत में लोग इस नंबर पर फोन कर अपनी समस्या बता सकते हैं. लेकिन, अब जो जहां है वहीं रहे. कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए यह जरुरी है. हम लोग अपने सभी नागरिकों को उनके प्रवास वाले राज्य में ही वहां की सरकारों की मदद से सहायता करेंगे."

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

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क्या सच में मदद कर पा रही है सरकार

गढ़वा जिले के ही डंडा प्रखंड प्रमुख और बीरेन्द्र चौधरी ऐसा नहीं मानते. उन्होंने कहा कि झारखंड के सैकड़ों मज़दूर अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं. यहां की सरकार उनकी मदद नहीं कर पा रही है.

बीरेंद्र चौधरी ने बीबीसी से कहा, "मैंने नागपुर महाराष्ट्र में फंसे गढ़वा जिले के 60 मज़दूरों की सूची मुख्यमंत्री तक पहुंचायी लेकिन उन्होंने इस ट्वीट का कोई संज्ञान नहीं लिया. मैंने उन मज़दूरों का पता और फोन नंबर भी उपलब्ध कराया है."

"वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. वे सब लोग नागपुर में निर्माणाधीन मेट्रो प्रोजेक्ट में काम करते थे. वहां काम बंद कराया जा चुका है. इसके अलावा मेरे ही प्रखंड के दो दर्जन मज़दूर छत्तीसगढ़ के ही बस्तर जिले में फंसे हुए हैं. उनकी कोई सुध नहीं ले रहा है."

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बाबूलाल मरांडी का तर्क

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी ने भी कहा है झारखंड में कोरोना को लेकर की गई घोषणाएं धरातल पर उतरती नहीं दिख रही हैं.

उन्होंने कहा कि स्थिति भयावह हो सकती है और मुख्यमंत्री सिर्फ ट्विटर-ट्विटर खेल रहे हैं. उन्हें धरातल की समझ नहीं है.

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