छत्तीसगढ़: क्या शुरू होगा कोयले की अंधाधुंध खुदाई का काम?
- आलोक प्रकाश पुतुल
- रायपुर से बीबीसी हिंदी के लिये
क्या खनिज और कोयला क़ानून में किये गये संशोधन से देश में कोयले की अंधाधुंध खुदाई का नया अध्याय शुरु होने वाला है? कम से कम छत्तीसगढ़ के सामाजिक संगठन तो यही मान कर चल रहे हैं.
इन संगठनों का कहना है कि यह क़ानूनी संशोधन निजी कंपनियों को और अधिक ताक़तवार बनाने वाला साबित होगा. इसके अलावा इस नये क़ानून के बाद राज्य की भूमिका भी सीमित होने की आशंका जताई जा रही है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं, "निजी कंपनियों के मुनाफ़े के लिये जिस तरह के प्रावधान इस संशोधन के जरिये किये गये हैं, वह हज़ारों-लाखों बरसों से संरक्षित वन संपदा और उस पर आश्रित आदिवासियों के लिये विनाशकारी साबित हो सकता है."
असल में इसी महीने की 6 तारीख़ को लोकसभा में और 12 तारीख़ को राज्यसभा में इस क़ानूनी संशोधन को मंजूरी मिली है.
पिछले कुछ सालों से कोयला उत्पादन की कमी का हवाला देते हुये खनन क़ानून में बदलाव पर लगातार चर्चा हो रही थी. खनिज और कोयला क़ानून में संशोधन को लोकसभा में जब कोल व खनिज मंत्री प्रहलाद जोशी ने पेश किया तो उन्होंने भी तर्क देते हुये कहा, "…इतना अधिक कोल रहते हुये भी हम इंपोर्ट कर रहे हैं, इसलिये देशहित में सीएमएसपी एक्ट और एमएमडीआर एक्ट में अमेंडमेंट करना बहुत ज़रुरी है."
इससे पहले इसी क़ानूनी संशोधन पर बहस के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हवाले से कोयला आयात को 'पाप' की संज्ञा दी थी.
'माइंस मिनरल एंड पीपल' के चेयरमैन रहे श्रीधर रामामूर्ति सरकार के इस दावे पर ही सवाल उठाते हैं, जिसमें कोयले की कमी का हवाला देते हुये लगातार अधिक कोल उत्पादन की ज़रुरत जताई जा रही है.
श्रीधर का दावा है कि भारत में जिन कोयला खदानों से अभी उत्पादन हो रहा है, वह अगले 15 वर्षों तक की कोयला आपूर्ति के लिये पर्याप्त हैं.
श्रीधर कहते हैं, "इस क़ानूनी संशोधन का देश में कोयले की ज़रुरत से लेना-देना नहीं है. यह केवल कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन को निजी कंपनियों के हवाले कर देने की एक भयावह कोशिश है."
भारत में कोयला उत्पादन
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर
समाप्त
भारत कोयला भंडार के मामले में दुनिया में चौंथे नंबर पर है.
अप्रैल 2019 के भारत सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 326495.63 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है.
अगर कोयला खनन की बात की जाये तो देश भर में 2013-14 के 565.77 मिलियन टन कोयला खनन का आंकड़ा 2018-19 में 730.35 मिलियन टन हो गया है.
अकेले कोल इंडिया ने 2013-14 के 462.41 मिलियन टन की तुलना में 2018-19 में अपना उत्पादन 606.89 मिलियन टन पहुंचा दिया.
लेकिन इस दौरान मांग में भी बढ़ोत्तरी होती चली गई. 2013-14 में जहां 738.92 मिलियन टन कोयले की मांग थी, वह 2018-19 में 969.47 मिलियन टन पहुंच गई.
इधर कोल इंडिया के 'कोल विज़न 2030' के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि भारत में कुल कोयला की मांग 2020 तक 900 से 1000 मिलियन टन और 2030 तक न्यूनतम 1303 और अधिकतम 1908 मिलियन टन रहने का अनुमान है.
इधर जो वर्तमान में आवंटित कोयला खदान हैं, उनसे ही अभी ही 1570 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया जा सकता है. कोल इंडिया के आंकड़ों पर भरोसा करें तो ऐसी स्थिति में नये कोयला खदानों में खनन की ज़रुरत ही नहीं है.
Alok Putul /BBC
रही बात भारत में कोयला आयात किये जाने की तो यह भी दिलचस्प है कि भारत में बड़ी संख्या में ऐसे संयंत्र लगाये गये हैं, जिनमें आयातित कोयले के आधार पर ही चलाये जाने की तकनीक का उपयोग किया गया है.
इस संबंध में कोयला एवं खान मंत्री प्रल्हाद जोशी का संसद में पिछले महीने की 5 तारीख़ को दिया गया बयान महत्वपूर्ण है.
अपने बयान में जोशी ने कहा, "आयातित कोयले के आधार पर डिजाइन किए गए विद्युत संयंत्रों द्वारा आयातित कोयला एवं ब्लैंडिग प्रयोजन हेतु आवश्यक उच्च ग्रेड के कोयले का देश में आयात किया जाता है क्योंकि इसे घरेलू कोयले से पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता."
प्रल्हाद जोशी के अनुसार कोयले की घरेलू उपलब्धता में वृद्धि से कोयले के आयात में जो वर्ष 2009-10 से 2013-14 के बीच 22.86 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर थी, वह वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच घट कर 1.96 रह गई.
क़ानून में संशोधन
ज़ाहिर है, देश में कोयला उत्पादन लगातार बढ़ा है. लेकिन अब नये कानून से कोयला को खुले बाज़ार में बेचने के दरवाज़े भी खुल गये हैं.
खान और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957 और मोदी सरकार द्वारा ही लाये गये 2015 के कोयला खान विशेष उपबंध अधिनियम में जिस तरह के संशोधन किये गये हैं, उसमें अब कोई भी निजी क्षेत्र की कंपनी कोयला को खुले बाज़ार में बेच सकती है और यहां तक की उसका निर्यात भी कर सकती है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कहते हैं, "कोयला खनन में 100 फीसदी विदेशी निवेश और खुले बाज़ार में कोयला बेचने की अनुमति से देश भर में माइनिंग का दबाव बढ़ेगा क्योंकि यहां अब उपयोगिता नहीं, मुनाफ़ा महत्वपूर्ण होगा. मुनाफ़ा है तो प्रक्रियाओं की अनदेखी भी बढ़ेगी. इसके अलावा देशी-विदेशी निजी कंपनियां देर-सबेर कोल इंडिया जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को हाशिये पर डाल देंगी."
खनिज और कोयला क़ानून में किये गये बदलाव में कोयला या लिग्नाइट के खनन के साथ-साथ ही, किसी खदान में कितना भंडार है, इसके सर्वेक्षण का काम भी निजी कंपनियों को सौंपने का प्रावधान है.
इससे पहले कोयला के मामले में यह काम भारत सरकार का उपक्रम सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीच्यूट करता रहा है. भारत सरकार का यह उपक्रम कोयला भंडार, उसकी खनन की स्थिति, उसकी प्रति वर्ष क्षमता आदि का सर्वेक्षण करता था.
दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता और कोयला खदानों पर शोध करने वाले आईआईएम कोलकाता के प्रियांशु गुप्ता कहते हैं, "कोयला और लौह अयस्क के भंडार की क्षमता और दूसरी जानकारियों के लिये सर्वेक्षण का काम बेहद आसान है."
"अब जब सरकार किसी निजी कंपनी को खदान का आवंटन करेगी तो उसके सर्वेक्षण का काम भी निजी कंपनी को ही साथ-साथ दे दिया जायेगा. ऐसे में कंपनियां कोयला भंडार को लेकर कम आंकलन या भ्रामक आंकलन भी कर सकती हैं."
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला अपने अनुभव के आधार पर एक दूसरी आशंका जताते हैं. वे सरगुजा के केते कोयला खदान का उदाहरण देते हुये बताते हैं कि किसी कोयला खदान को किसी कंपनी को आवंटित करने का मतलब यह नहीं हो जाता कि अब कंपनी वहां खुदाई के लिये स्वतंत्र है. कंपनी को वन विभाग के अलावा आदिवासी बहुल अधिसूचित इलाकों में ग्राम पंचायत की भी मंजूरी लेनी होती है.
आलोक का कहना है कि केते खदान के मामले में शिकायत के लिये जब वे आदिवासियों के साथ राज्य के वन सचिव के पास पहुंचे तो उन्होंने खदान आवंटन का हवाला देते हुये इसमें हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया. लेकिन जब उन्हें समझ में आया कि आवंटित हो जाने भर से किसी को खुदाई का अधिकार नहीं मिल जाता.
आलोक शुक्ला कहते हैं-"आप तय जानिये कि सर्वेक्षण और खनन की अनुमति मिलने के बाद सर्वेक्षण के दौरान ही मान लिया जायेगा कि खदान का अधिकार कंपनी को मिल गया है. कंपनियां इसमें भ्रम का वातावरण बनायेंगी और आदिवासी इसे अंतिम सरकारी मंजूरी मान कर विरोध भी नहीं कर पायेंगे."
लेकिन नये क़ानून में कई और पेंच भी हैं.
हाशिये पर राज्य
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंध एवं योजना प्राधिकरण यानी कैंपा की कार्यकारिणी की सदस्य और वन्यजीव बोर्ड की सदस्य मीतू गुप्ता का कहना है मूल अधिनियम की धारा 17क की उपधारा 2क में नीलामी से पूर्व राज्य सरकार से सहमति का प्रावधान था. लेकिन नये क़ानूनी संशोधन के बाद अब खदानों के सर्वेक्षण सह आवंटन से पूर्व राज्य सरकार से अनुमति लेने का प्रावधान ख़त्म कर दिया गया है.
मीतू गुप्ता का कहना है कि वन-पर्यावरण व स्थानीय समुदाय पर होने वाले प्रभाव का आकलन राज्य सरकार ही कर सकती थी. लेकिन नये क़ानून के बाद राज्य सरकार के लिये अब कोई जगह ही नहीं है.
वे कहती हैं, "जब केंद्र सरकार किसी कंपनी को सर्वेक्षण सह खनन के लिये खदान का आवंटन कर देती है तो स्वाभाविक रुप से तमाम तरह की स्वीकृतियों के लिये दबाव बढ़ जाता है. आवंटन से पूर्व तो इसे रोक पाने की संभावना होती थी लेकिन आवंटन के बाद तो यह लगभग असंभव है."
उनका कहना है कि मूल क़ानून में खदानों के लिये एमडीओ यानी 'माइन डेवलपर कम ऑपरेटर' जैसे गुप्त समझौते का प्रावधान नहीं था. लेकिन बाद में सर्कुलर ला कर एमडीओ लागू कर दिया गया. कंपनियों और सरकारों के बीच खदानों को लेकर क्या समझौता हुआ है, इसे सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी गई.
नये क़ानून में भी धारा 4 क के बाद धारा 4 ख जोड़ दिया गया है, जिसमें उत्पादन जारी रखने के नाम पर केंद्र को कोई भी नये नियम बनाने का अधिकार है. यानी केंद्र सरकार एमडीओ की तर्ज़ पर कोई भी सर्कुलर ला कर किसी भी क़ानूनी प्रावधान को जोड़ने-घटाने का काम कर सकती है.
कोयला खदान के इलाकों में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले मज़दूर नेता नंद कश्यप को नये क़ानून में एक बड़ी खामी नज़र आती है.
नये क़ानूनी संशोधन में एक हिस्सा 8बी जोड़ा गया है. इसके अनुसार खनन करने वाली कोई कंपनी अगर अपने खनन का लीज किसी अन्य कंपनी को दे देती है तो नई कंपनी को वन स्वीकृति, ग्राम सभा की स्वीकृति जैसे लगभग 20 तरह की अलग-अलग किस्म की अनापत्तियों की प्रक्रिया पूरी करने के लिये 2 साल का वक़्त दिया गया है. लेकिन इस दौरान कंपनी खनिज का उत्खनन जारी रख सकती है.
नंद कश्यप कहते हैं, "नई कंपनी दो साल तक एक भी प्रक्रिया पूरी किये बिना खनन करती रहेगी, करोड़ों का मुनाफ़ा कमायेगी और फिर वह जब चाहे, हाथ खड़े कर सकती है. यह हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा जैसा हाल होगा."
- कोरोना मरीज़ की सलाह -कोरोना वायरस: दिल्ली के पहले मरीज़ की सलाह सुन लीजिए
- लक्षण और बचाव - कोरोना वायरस के क्या हैं लक्षण और कैसे कर सकते हैं बचाव
- संक्रमण कैसे रोकें - कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के पांच सबसे कारगर उपाय
- मास्क पहनें या नहीं -कोरोना वायरस: मास्क पहनना चाहिए या नहीं?
- किस जगह कितनी देर ठहराता है वायरस - कोरोना वायरस: किसी जगह पर कितनी देर तक टिक सकता है यह वायरस
- आर्थिक असर -कोरोना वायरस का असर आपकी जेब पर होगा?
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)