कोरोना वायरस: भारत में चिकित्सा सामान बनाने में क्यों होती रही देरी?

  • सलमान रावी
  • बीबीसी संवाददाता
चिकित्सा सामान

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भारत में कोरोना वायरस के मामलों से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर 'टेस्टिंग किट' बनाने के अलावा मास्क, वेंटिलेटर और स्वास्थ सेवाओं में लगे लोगों के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट यानी पीपीई बनाने की शुरुआत कर दी गई है.

पीपीई बनाने वाले एक कंपनी के मालिक जी.डी. अग्रवाल ने बीबीसी से कहा कहा कि सरकार ने काफ़ी देर से ही सही, इसका निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि निर्देश आते ही काम शुरू कर दिया गया है.

चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के संगठन असोसिएशन फ़ॉर इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री का कहना है कि सरकार ने इस दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले एन-95 मास्क के उत्पादन के लिए भी रास्ता साफ़ कर दिया है.

संगठनों और सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद 15 लाख एन-95 मास्क के अलावा डाक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के लिए इस्तेमाल में आने वाले सूट यानी - 'हाज़मट' बनाने के लिए भी ऑर्डर दे दिया है.

महिला

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कहां आ सकती हैं दिक़्क़तें

पहले चरण में कुल 7 लाख 25 हज़ार ऐसे सूट के अलावा तीन प्लाई के दस लाख मास्क बनाने का ऑर्डर भी दे दिया गया है.

जी.डी. अग्रवाल बताते हैं कि इसमें एक पेंच सिर्फ ये फँस रहा है कि जो एन-95 के मास्क इस्तेमाल में आएंगे उनके उत्पादन में कई ऐसी चीज़ें हैं जिनका आयात करना होगा.

वैसे सरकार ने पीपीई के उत्पादन के अलावा मास्क के लिए टेक्स्टाइल मंत्रालय की भी मदद मांगी है जो फ़ौरन ही दस लाख के आसपास, टी प्लाई वाले मास्क का उत्पादन कर उन्हें देश के विभिन्न राज्यों को उपलब्ध कराएगा.

इसको लेकर मंत्रालय ने एक नियंत्रण कक्ष के स्थापना की घोषणा की है जो इनके उत्पादन और आपूर्ति की ज़िम्मेदारी संभालेगा.

महिला मास्क के साथ

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सरकार ने अब उत्पादन के काम में निजी कंपनियों को शामिल किया है ताकि आगे हालात बेक़ाबू होने लगे तो ऐसे में चिकित्सा सामानों को लेकर वैसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, जैसी परेशानी अमरीका, इटली, स्पेन और फ़्रांस के चिकित्साकर्मियों को झेलनी पड़ी.

जब इस आपदा की शुरुआत चीन में हुई थी तो भारत ने चीन सरकार को कई चिकित्सा सामान उपलब्ध कराए थे.

लेकिन चिकित्सा सामानों को उपलब्ध कराने वाले संगठन का कहना है कि सरकार की इस पहल में काफ़ी विलंब हुआ क्योंकि सरकारी उपक्रम - एचएलएल लिमिटेड के अलावा इन सामानों की बिक्री का अधिकार किसी निजी कंपनी के पास नहीं था.

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सरकार सामान का कर रही थी निर्यात

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इन कंपनियों का कहना है कि महामारी के लक्षण भारत में दिखने लगे लेकिन सरकार ने इन चिकित्सा सामानों के निर्यात पर कोई रोक नहीं लगाई थी.

मार्च महीने की 24 तारीख़ को ही सरकार ने निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाने का फ़ैसला लिया. इस फ़ैसले में वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों को भी शामिल किया गया है.

'एचएलएल लिमिटेड' ही निजी कंपनियों से ये सामान ख़रीदता था और फिर वो उसे सरकार और दूसरे अस्पतालों को भेजता था. मगर अब निजी कंपनियों की मदद भी ली जा रही है.

लेकिन अभी तक भारत में इस महामारी से पीड़ित लोगों की चिकित्सा में लगे लगे डॉक्टरों ने रह-रहकर सरकार को भयावह होती स्थिति के बारे बाताया. कई डॉक्टरों ने अपने वीडियो भी बनाकर सरकार को स्थिति बताने की कोशिश की. उनका कहना था कि जिस जंग को लड़ने के लिए उन्हें मैदान में उतारा गया है उसके लिए पर्याप्त संसाधन दिए ही नहीं गए हैं.

हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डबलूएचओ का कहना है कि सिर्फ़ लोगों पर प्रतिबन्ध या लॉकडाउन से इस समस्या का समाधान नहीं होगा. इस महामारी से तभी निपटा जा सकता है जब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का परीक्षण हो और उनका इलाज हो.

सरकार ने रक्षा मंत्रालय के अधीन ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री से भी मदद मांगी है जहां कुछ मास्क और दूसरे चिकित्सकीय सामान बन सकें. शाहजहाँपुर की ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री में भी मास्क बनाने का काम शुरू कर दिया गया है इसके अलावा इनके उत्पादन में भारतीय रेल की भी मदद ली जा रही है.

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