कोरोना वायरस: अचानक क्यों बढ़ रही है डायबिटीज़ की दवाओं की बिक्री?
- अनंत प्रकाश
- बीबीसी संवाददाता
कोरोना वायरस के तेज प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन का एलान किया है.
भारतीय रेल मंत्रालय ने भी 31 मार्च तक सभी यात्री ट्रेनों को रद्द करने का ऐलान किया है.
इसके साथ ही देश भर में मेट्रो सेवाओं को अगले कुछ दिनों के लिए रद्द किया गया है.
हालांकि, राशन और मेडिकल स्टोर आदि को खोले जाने की व्यवस्था की गई है.
लेकिन कोरोना वायरस से जुड़ी अनिश्चितताओं के चलते खाने-पीने के सामानों की ज़्यादा ख़रीदारी देखी जा रही है.
लेकिन देश की राजधानी दिल्ली समेत कई जगहों पर लोग दवाएं भी ज़्यादा ख़रीद रहे हैं.
चिंता करने की ज़रूरत
जो लोग कुछ दवाओं को रेग्युलर इस्तेमाल करते हैं, उनमें से बहुत सारे लोग एक साथ कई हफ़्तों का कोर्स ख़रीद रहे हैं. इनमें ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ जैसी समस्याओं के मरीज़ शामिल हैं.
दिल्ली के एम्स अस्पताल के नज़दीक स्थित एक मेडिकल स्टोर के मालिक पद्मेश (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि लॉक डाउन की वजह से लोगों में डर इतना ज़्यादा है कि उन्हें समझाना पड़ रहा है कि दवाओं की पूर्ति में किसी तरह की कमी नहीं आएगी लेकिन इसके बावजूद वे ज़्यादा दवाएं खरीद रहे हैं.
पद्मेश बताते हैं, "हर रोज़ कम से कम पचास ग्राहक ऐसे आते हैं जिन्हें हमें ये समझाना पड़ता है कि उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है और उन्हें उनकी दवाएं मिलती रहेंगी. लेकिन इसके बावजूद जो लोग एक महीने का डोज़ लिया करते थे, वे अब दो महीने का डोज़ ले रहे हैं."
"इन दवाओं में डायबिटीज़ और बुखार की दवाएं शामिल हैं. ये ऐसी दवाएं होती हैं जिनकी लोगों को ख़ास ज़रूरत होती है."
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डर के साए में राजस्थान
वहीं, एक अन्य मेडिकल स्टोर मालिक दीपक अग्रवाल बताते हैं कि ऐसे लोगों की संख्या कम ज़रूर है लेकिन लोग ख़ास दवाइयों की खरीददारी ज़्यादा कर रहे हैं.
अग्रवाल बताते हैं, "हम लोगों को समझा रहे हैं कि चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन लाख समझाने के बाद भी वे कम से कम एक हफ़्ते की अतिरिक्त दवा ले ही रहे हैं."
राजस्थान में कोरोना वायरस की वजह से तीन लोगों की मौत और 24 लोगों के संक्रमित होने के बाद लोगों के बीच एक तरह का डर पनपा हुआ है.
राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी दवाओं की खरीदारी को लेकर कुछ ऐसे ही ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं.
जयपुर से पत्रकार मोहर सिंह मीणा बताते हैं कि जयपुर में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने दो से तीन महीने की दवाइयां इकट्ठी ले लीं.
उन्होंने सवाई मान सिंह अस्पताल मार्किट असोसिएशन के सदस्य अशीष अग्रवाल से बात की.
अशीष अग्रवाल बताते हैं, "लोगों को कहीं न कहीं लॉक डाउन का अंदाज़ा पहले से ही था, ऐसे में दवाइयों का मंथली कोर्स ले रहे लोगों ने दो से तीन महीने का कोर्स अडवांस में ले लिया."
"पिछ्ले तीन दिनों से मास्क और सैनेटाइज़र खरीदने वाले उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ गई. लोगों ने लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए घर के लिए स्टॉक ले लिया है. फडीवर, हाइपरटेंशन सहित ज़रूरी दवाइयां भी पहले ही खरीद ली हैं. रविवार को मार्किट बंद होने के बावजूद लोगों के दवाइयों की मांग को लेकर कॉल आते रहे."
साफ-सफाई के सामान की किल्लत
दवाओं के साथ-साथ साफ सफाई के सामानों की भारी खरीदारी की वजह से देश भर में कई जगहों पर मास्क और हैंड सेनिटाइज़र जैसी चीज़ों का स्टॉक ख़त्म हो चुका है.
ऑनलाइन स्टोर से लेकर आम दुकानों पर मास्क और हेंड सेनिटाइज़र जैसी चीज़ों की किल्लत देखी जा रही थी.
बीती तीन मार्च से ही अमेजन आदि पर मास्क और हेंड सेनिटाइज़र का स्टॉक ख़त्म हो गया था.
डिटॉल जैसी कंपनियों के मास्क और हैंड सेनिटाइज़र अभी भी अमेज़न पर उपलब्ध नहीं है.
वहीं, जिन कंपनियों के मास्क उपलब्ध हैं उनके दाम काफ़ी ज़्यादा हैं.
उदाहरण के लिए, नोयमी नाम की कंपनी के तीन मास्क 1199 रुपये में मौजूद हैं.
एसेंशियल कमॉडिटीज़ ऐक्ट
हैंड सेनिटाइज़र के अलावा साफ-सफाई के दूसरे उत्पादों जैसे कि सामान्य डिटॉल लिक्विड और साबुन आदि की मांग भी बढ़ती नज़र आ रही है.
पद्मेश बताते हैं, "साबुन और हैंड वॉश जैसी चीज़ों की सप्लाई तो पहले से नहीं है. ऐसे में जो भी माल आ रहा है, उसे हम ज़रूरत के हिसाब से ही ग्राहकों को दे रहे हैं."
केंद्र सरकार भी शुक्रवार को मास्क और हैंड सैनिटाइज़र को 100 दिनों के लिए ज़रूरी वस्तु घोषित कर चुका है.
लेकिन इसके बावजूद पूर्ति बढ़ती हुई नज़र नहीं आ रही है.
मास्क और हैंड सैनिटाइज़र को एसेंशियल कमॉडिटीज़ ऐक्ट 1955 के तहत लाया गया है ताकि सरकार इनके उत्पादन, आवंटन और क़ीमतों पर नियंत्रण हासिल कर सके.
हालांकि, ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है कि सरकार आने वाले समय में इन उत्पादों की जमाखोरी और काला बाज़ारी करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई कर सकती है.
दूरस्थ इलाकों तक फैला डर
हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर में एक निजी संस्थान में पढ़ाने वाले डॉक्टर अभिनव बताते हैं कि चीज़ों की क़िल्लत तो महसूस नहीं हो रही मगर कुछ लोग सामान्य से अधिक खरीदारी करने लगे हैं.
वह बताते हैं, "शनिवार शाम को मैंने देखा कि दुकानों की जो शेल्वज़ अमूमन भरी रहती थीं, उनमें से कुछ खाली थीं तो कुछ में असामान्य ढंग से सामान कम था. इसका मतलब यह है कि लोगों ने अचानक से अधिक खरीदारी की है.इसके अलावा कुछ दुकानें ऐसी भी हैं जहां सैनिटाइज़र और मास्क या तो हैं ही नहीं या फिर कुछ दुकानों पर वे सामान्य से अधिक दाम में मिल रहे हैं."
इसके अलावा धर्मशाला के स्थानीय पत्रकार मृत्युंजय पुरी बताते हैं कि जनता कर्फ्यू के दौरान यहां रविवार को सभी दुकानें बंद रहीं मगर इससे पहले भी जरूरी साज़ो सामान या दवाइयों की कमी देखने को नहीं मिली.
हिमाचल प्रदेश का हाल
हिमाचल प्रदेश में कोरोना वायरस के दो मामलों की पुष्टि हुई है और दोनों ही मामले कांगड़ा ज़िले के हैं. धर्मशाला कांगड़ा का ज़िला मुख्यालय है. ज़िले में 31 मार्च तक लॉकडाउन घोषित किया गया है और इस दौरान दूध, ब्रेड, फल,सब्ज़ियां और अनाज की बिक्री होती रहेगी.
मृत्युंजय ने बताया, "जनता कोरोना वायरस को लेकर सजग ज़रूर है मगर ऐसी चिंता नहीं है कि ज़रूरी साज़ो-सामान जमा करने की होड़ लगी हो. दवा विक्रेताओं का भी यह कहना है कि उनके यहां कोई भी असामान्य ढंग से थोक में दवाएं नहीं खरीद रहा."
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को सर्वदलीय बैठक के बाद कहा था कि प्रदेश में ज़रूरी चीज़ों की कमी नहीं है और जो कोई जमाखोरी करेगा, सरकार उससे सख़्ती से निपटेगी.
पैनिक बाइंग से बिगड़ते हालात
दवाओं और साफ-सफाई के सामानों के अलावा देश भर में खाने - पीने के सामान को जमा किए जाने की ख़बरें आ रही हैं.
सोशल मीडिया पर भी कुछ लोगों ने ट्वीट करके पैनिक बाइंग की जानकारियां दी हैं.
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लोग कर्फ्यू जैसे हालात बरकरार रहने की आशंका में घर में ज़रूरी सामान जुटाने लगे हैं.
मुंबई से बीबीसी संवाददाता जाह्नवी मूले बताती हैं, "मुंबई में प्रशासन की ओर से उठाए गए कदमों की वजह से सब्जियों और खाने-पीने के आम सामानों की कमी देखने में नहीं आई है. लेकिन रेडी टू ईट फूड जैसे कि सूप या इंस्टेंट नूडल्स आदि की कमी देखी जा रही है. और लोग पोहा, सूजी, साबूदाना और कैचप जैसी चीजें ज्यादा खरीद रहे हैं."
वहीं, दिल्ली से भी कई जगहों पर ज़्यादा ख़रीददारी की ख़बरें आई हैं.
बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर बताते हैं, "शुक्रवार को दिल्ली की एक सुपरमार्केट में सामान्य से अधिक भीड़ देखी गई. खाने-पीने की चीज़ों वाले सेक्शन में ज़्यादा लोग जमा थे. वे इंस्टेंट फ़ूड, पैकेज्ड मिल्क आदि खरीद रहे थे और रेफ्रिजरेटर वाले हिस्से की शेल्वज़ ख़ाली थीं.
इस तरह से घबराकर की जाने वाली ख़रीददारी को पैनिक बाइंग कहते हैं जिसमें लोग ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें ख़रीदते हैं.
पैनिक बाइंग दिल्ली में ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही हैं और लोग सोशल मीडिया पर भी इस बारे में बात कर रहे हैं.
बहुत से लोगों का कहना है कि पैनिक बाइंग के कारण कुछ लोगों ने इतना सामान खरीद लिया कि बाक़ियों के लिए दुकानों में सामान बचा ही नहीं.
यह सिलसिला कोरोना वायरस के फैलने के कारण पूरी दुनिया में देखने को मिला है.
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