दिल्ली हाईकोर्ट में तीसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस एस मुरलीधर का पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया है। जस्टिस मुरलीधर ने बुधवार (26 फरवरी) को दिल्ली हिंसा मामले पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को जमकर फटकार लगाई थी और  नफरत भरे भाषण देने वाले भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा था, “दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली से मैं हैरान हूं। शहर में बहुत हिंसा हो चुकी है। हम नहीं चाहते कि दिल्ली फिर से 1984 की तरह दंगों का गवाह बने।”

हाईकोर्ट के जज मुरलीधर ने जिस दिन ये बात कही, उसी दिन उनका ट्रांसफर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस मुरलीधरन के ट्रांसफर की सिफारिश 12 फरवरी को ही कर दिया था, जिसे मंजूर कर लिया गया है।

जस्टिस मुरलीधर के ट्रांसफर को लेकर कानून और न्याय मंत्रालय में न्याय विभाग से जारी एक अधिसूचना ने कहा गया, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 222 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करने के बाद, दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर को स्थानांतरित करते हैं। उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपने पद का कार्यभार संभालने का निर्देश दिया जाता है।”

अधिसूचना भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम द्वारा पारित सिफारिश के अनुसार है। न्यायमूर्ति मुरलीधर के स्थानांतरण का विरोध करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने कॉलेजियम से आग्रह किया था कि वह “पुनर्विचार” करें और अपनी सिफारिश को वापस ले। बार एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह के स्थानांतरण “न्यायिक व्यवस्था में आम मुकदमेबाज के विश्वास को समाप्त करते हैं”।

सांप्रदायिक हिंसा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कड़ी टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले जस्टिस मुरलीधर ने हाशिमपुरा का फैसला सुनाया था। इसमें उत्तर प्रदेश पीएसी के कर्मियों को 1987 की सामूहिक हत्याओं के लिए दोषी ठहराया गया। इसके साथ ही उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों में भूमिका के लिए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को भी दोषी ठहराया था। भारत में समलैंगिकता संबंधी निर्णायक फैसला सुनाने वाली पीठ में तत्कालीन चीफ जस्टिस एपी शाह के दो न्यायधीशों में मुरलीधर भी शामिल थे।