दिल्ली हिंसा: क्या बारूद के ढेर पर बैठी दिख रही है राजधानी? - ग्राउंड रिपोर्ट

  • फैसल मोहम्मद अली
  • बीबीसी संवाददाता
दिल्ली हिंसा

मंगलवार शाम जब हम उत्तरी दिल्ली के हिंसाग्रस्त इलाक़े में भीड़ से घिरे हुए थे तो कुछ लोग हमारे हाथों से मोबाइल फ़ोन छीनने की कोशिश कर रहे थे.

हमारे फ़ोन में मंगलवार को उत्तरी दिल्ली में घटी हिंसक घटनाओं की रिकॉर्डिंग थी.

हम अपने मोबाइल फ़ोन बचाने की कोशिश ही कर रहे थे कि तभी हमारे पास कुछ पत्थर आकर गिरे. और इसके तुरंत बाद हमने गली से एक व्यक्ति को निकलते देखा जिसके हाथों में एक कपड़ा बंधा हुआ था.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, इस व्यक्ति के हाथ में गोली लगी हुई थी और रोड की दूसरी ओर की एक छत से किसी व्यक्ति ने इस पर गोली चलाई थी.

इस पूरे बवाल के बाद उस गली का रास्ता बंद कर दिया गया जिससे होकर हम मुख्य रास्ते पर आने की कोशिश कर रहे थे.

इस गली बंद होने की वजह से हमें इलाक़े की छोटी-छोटी तंग गलियों से होकर गुज़रना पड़ा ताकि हम उस जगह पर पहुंच सकें जहां पर भीड़ थोड़ी कम आक्रामक और आक्रोशित हो.

लेकिन ये पहला मौका नहीं था जब उत्तरी दिल्ली में फैली हिंसा की रिपोर्टिंग करते हुए हमें इन स्थितियों का सामना का करना पड़ा हो.

दिल्ली को देखते हुए लगता है कि जैसे ये शहर बारूद के एक ढेर पर बैठा हो.

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वीडियो रिकॉर्ड करने से मना करता हुआ एक व्यक्ति

आग के हवाले किया गया बाज़ार

मंगलवार सुबह हम दिल्ली के उन इलाकों में गए जहां धारा 144 लगी हुई थी. इसका मतलब है कि दो या तीन से ज़्यादा लोग एक जगह मौजूद नहीं रह सकते.

इसी इलाके में लोगों के हुजूम ने एक पूरे बाज़ार को आग के हवाले कर दिया.

एक स्थानीय व्यक्ति ने हमें बताया कि इनमें से ज़्यादातर दुकानें मुसलमान समुदाय के लोगों की हैं.

जलते हुए टायरों की दुर्गंध और जलते हुए बाज़ार से उठता धुआं काफ़ी दूर से ही देखा जा सकता था. लेकिन इस पूरे वाकये को कैमरे पर रिकॉर्ड करने के लिए हमें काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

इस क्षेत्र से करीब 500 मीटर दूर कुछ युवा दुकानों पर पत्थर फेंक रहे थे.

जब उन्होंने देखा कि हम उनकी हरकतों को कैमरे पर रिकॉर्ड कर रहे हैं तो उन्होंने हमारी ओर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. हालांकि, हम एक ओवर ब्रिज़ पर मौजूद थे लेकिन हम इन पत्थरों से बाल-बाल बचे और हमें इस इलाके से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा.

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इस दौरान हमें बीच-बीच में जय श्री राम के नारे भी सुनाई दिए.

कई जगहों पर हमें 100 से 200 लोगों की भीड़ नज़र आई. इनमें से कुछ लोगों के हाथों में तिरंगा था, एक-दो लोग भगवा झंडे लिए जय श्री राम, भारत माता की जय, वंदे मातरम जैसे नारे लगा रहे थे. इस भीड़ में कुछ लोग 'देश के गद्दारों को गोली मारो **** को' जैसे नारे भी लगा रहे थे.

वहीं, मुस्लिम मोहल्लों की कुछ गलियों में कुछ लड़के खड़े थे जो हाथों में लोहे के सरिए, डंडे और ऐसे ही दूसरी चीजें अपने हाथों में लिए दिख रहे थे.

दोनों ही ओर के लोगों ने बताया कि वे अपने इलाकों के बाहर लड़कों को तैनात कर रहे हैं ताकि दूसरी ओर से हमला होने पर उससे निपटा जा सके.

इन हिंसक घटनाओं में कई मुसलमानों के मारे जाने की अफवाहें चल रही हैं. कई हिंदुओं के घायल होने और उनके घर जलाए जाने की बातें भी जारी हैं.

लेकिन कोई भी इन बातों का खंडन करने या पुष्टि करने के लिए तैयार नहीं है.

ऑटो ड्राइवर गुलशेर कहते हैं कि "प्रशासन नाम की कोई चीज़ नहीं है. ऐसा लगता है कि सरकार ने हम लोगों को लड़ने और मरने के लिए छोड़ दिया है."

राजीव नगर की रेजिडेंट कमेटी के महासचिव इस्लामुद्दीन कहते हैं कि "कुछ बाहरी लोग हिंदू और मुसलमानों में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं."

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1984 के सिख दंगों से तुलना

इस्लामुद्दीन इन हालातों की तुलना 1984 के सिख दंगों से करते हैं जब पूरी दिल्ली में व्यापक स्तर पर हिंसा देखने को मिली थी.

इस्लामुद्दीन मानते हैं कि जब बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने भड़काऊ बयानबाज़ी की थी तब अगर उनके ख़िलाफ़ सही कदम उठाए गए होते तो चीज़ें हाथ से बाहर नहीं जातीं.

कपिल मिश्रा पहले आम आदमी पार्टी से विधायक थे. लेकिन वे अब बीजेपी के सदस्य हैं और अपनी तीखी बयानबाज़ी के लिए जाने जाते हैं.

हाल में दिल्ली विधानसभा चुनाव को इंडिया बनाम पाकिस्तान के बीच का चुनाव कहने पर चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भी भेजा था.

उन्होंने बीते रविवार पुलिस को अल्टीमेटम दिया था कि अगले तीन दिनों के अंदर जाफराबाद क्षेत्र की एक मुख्य सड़क को खाली कराया जाए.

ये माना जा रहा है कि कथित रूप से मिश्रा का बयान दिल्ली में हिंसा भड़काने के लिए ज़िम्मेदार है.

हालांकि, उत्तरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने कपिल मिश्रा के बयानों से सहमत नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद अब तक कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ पार्टी और पुलिस की ओर से किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

मिश्रा ने अपने भाषण में जो कहा है, भीड़ में कई लोग उसी तरह की बातें कर रहे हैं.

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मंगलवार देर रात कपिल मिश्रा ने एक वीडियो ट्वीट कर लिखा कि, "जाफराबाद खाली हो चुका हैं दिल्ली में दूसरा शाहीन बाग नहीं बनेगा."

इससे कुछ घंटों पहले उन्होंने एक ट्वीट किया था, "मुझे जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही हैं. बंद सड़कों को खुलवाने को कहना कोई गुनाह नहीं. CAA का समर्थन कोई गुनाह नहीं."

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लेकिन कहीं उम्मीद बाकी है

एक रिटेल स्टोर में काम करने वाले रोशन ने मुस्लिम बहुल इलाक़े ख़जूरी कच्ची की ओर इशारा करके हमें बताया कि आने वाले तीन दिनों में ये जगह 'उन लोगों' से खाली करा ली जाएगी.

वहीं, सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक युवा पृथ्वीराज ने लगभग 300 लोगों की भीड़ की ओर इशारा करते हुए हमें बताया कि पुलिस इन लोगों से कुछ नहीं कह रही है क्योंकि ये लोग दंगाई नहीं हैं, ये सब मुसलमान कर रहे हैं.

पुलिस ने ख़जूरी कच्ची की ओर टीयर गैस छोड़कर भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की.

लेकिन हिंसा और डर के इस माहौल में भी राजेंद्र मिश्रा जैसे कुछ लोग हैं जो हिंसाग्रस्त इलाकों में से एक चांदबाग़ में सुरक्षित महसूस करते हैं. चांदबाग़ एक मुस्लिम बहुल इलाक़ा है.

सोमवार रात को मुसलमानों और हिंदुओं ने एक जुट होकर मंदिरों के बाहर पहरा दिया. इससे पहले सोमवार को एक इलाक़े के पीर चांद शाह की मज़ार को कुछ दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था.

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