कांग्रेस एक अध्यक्ष क्यों नहीं चुन पा रही?
- कमलेश
- बीबीसी संवाददाता
कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की क़रारी हार के बाद रणनीति को लेकर उठा विरोध अब नए अध्यक्ष की मांग तक पहुंच गया है. पार्टी नेता दो धड़ों में बँटे दिख रहे हैं.
कांग्रेस से वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने मांग की है कि कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष के पद को भरने के लिए चुनाव होना चाहिए. इससे पहले उन्होंने कहा था कि कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने के लिए और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व का चुनाव कराए.
वहीं, एक और वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि संगठनात्मक सुस्ती को ख़त्म करने के लिए चिंतन बैठक होनी चाहिए.
इससे पहले दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर सवाल उठाते हुए कहा था कि कांग्रेस के कई बड़े नेता डरते हैं, यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष की तलाश नहीं हो पाई है. डर की वजह है कि कौन बिल्ली के गले में घंटी बांधे.
दिल्ली चुनाव के बाद बँटे नेता
कांग्रेस में इस विवाद की शुरुआत दिल्ली का चुनाव हारने के बाद हुई थी.
तब कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयराम रमेश ने पार्टी में विचारधारा बदलने और पुनरावोलकन करने की सलाह दी थी.
वहीं, वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने जब आम आदमी पार्टी की जीत और बीजेपी की हार पर ख़ुशी जताई तो पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने उनका कड़ा विरोध किया था.
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उन्होंने चिदंबरम से सवाल किया था कि क्या कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से बीजेपी को हराने का काम करना शुरू कर दिया है. क्या कांग्रेस को अपनी दुकान बंद कर लेनी चाहिए?
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इसी तरह मिलिंद देवरा और अजय मकान के बीच भी ट्विटर पर लड़ाई छिड़ गई थी. जब मिलिंद देवड़ा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल की तारीफ़ की तो अजय माकन ने उन्हें पार्टी बदलने की सलाह दे डाली.
इस पर देवरा ने माकन के लिए कहा कि उन्होंने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन पर ज़ोर नहीं दिया होता तो कांग्रेस सत्ता में होती.
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कांग्रेस में काफ़ी समय तक मंथन के बाद सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष चुनी गई थीं लेकिन पार्टी के लिए एक स्थायी अध्यक्ष अब भी नहीं चुना गया है.
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लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद से समय-समय पर नए अध्यक्ष की मांग उठती रही है. इस बार तो कई बड़े नेताओं ने इस नेतृत्व की मांग की है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनवा में देरी क्यों हो रही है.
देरी की वजह
इस पर वरिष्ठ पत्रकार जतिन गांधी कहते हैं, ''लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने जल्दबाजी में इस्तीफ़ा दे दिया था. राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव हारा था और उनके पूरी तरह प्रचार में शामिल न रहने पर भी पार्टी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया. अब दोबारा से उन्हें लाने के लिए कांग्रेस को कुछ न कुछ तो ठोस कारण देना होगा. पार्टी को उनकी ही ज़रूरत है ये दिखाना होगा. इसलिए अध्यक्ष के चुनाव में समय लग रहा है.''
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अर्पणा द्विवेदी कहती हैं कि कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो गांधी परिवार से आगे सोच ही नहीं सकती. गांधी परिवार ही कांग्रेस की एकजुटता का बड़ा कारण है. जब गांधी परिवार में कोई सही विकल्प नहीं मिलता तो कांग्रेस भटकती रह जाती है. हालांकि, राहुल गांधी ही मौजूद विकल्प हैं लेकिन सही समय और कारण ज़रूरी होगा.
राहुल गांधी ही क्यों
सोनिया गांधी ने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली है. भले ही अध्यक्ष कोई भी रहे लेकिन पार्टी में हमेशा उनका कद उतना ही बड़ा है.
उसी तरह प्रियंका गांधी भी पूरे जोश के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी थीं. पार्टी के लोगों के बीच भी उनकी ख़ासी लोकप्रियता है और अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नाम चर्चा में आता है. फिर भी राहुल गांधी ही अंतिम विकल्प क्यों बन जाते हैं?
अर्पणा द्विवेदी कहती हैं, ''सोनिया गांधी लंबे समय से बीमार चल रही हैं. उन्हें बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. ऐसे में कोई चाहिए जो हर समय पार्टी के लिए मौजूद रहे और मजबूत फ़ैसले ले.''
''वहीं, प्रियंका गांधी को देखें तो वो कई सालों तक पार्टी से दूर रही हैं तो अब अचानक अध्यक्ष पद संभालना मुमकिन नहीं है. पार्टी में हमेशा राहुल गांधी को ही नेतृत्व के तौर पर उभारा गया है. फिर उनका परिवार भी प्रियंका को आगे नहीं लाना चाहता. अगर ऐसा होता तो वो पहले ही राजनीति में आ चुकी होतीं.''
राहुल गांधी के नाम पर विवाद क्यों
जब कांग्रेस के पास राहुल गांधी ही एकमात्र विकल्प हैं और अब उनकी ज़रूरत भी महसूस होने लगी है तो भी उनके नाम के साथ विवाद क्यों खड़ा हो जाता है.
अर्पणा द्वेदी का मानना है कि राहुल गांधी के साथ समस्या ये है कि उनमें नेतृत्व क्षमता तो है लेकिन निरंतरता नहीं है. वो बड़े जोश से आते हैं और फिर अचानक गायब हो जाते हैं. पार्टी में और लोगों के बीच जगह बनाने के लिए आपको लगातार काम करना होता है भले ही चुनाव हारें या जीतें. राजनीति में तुरंत जीत की उम्मीद नहीं कर सकते.
वह कहती हैं, ''लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने सोचा था कि उन्होंने बहुत मेहनत की लेकिन उन्हें पार्टी के सभी नेताओं से पूरी तरह समर्थन नहीं मिला. इसलिए उन्होंने हार की ज़िम्मेदारी लेने की बात भी की थी. फिर जब ख़ुद हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफ़ा दिया था तो सोचा था कि उनके बाद पूरी कांग्रेस वर्किंग कमिटी इस्तीफ़ा दे देगी और फिर वो नए सिर से पार्टी का गठन करेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ.''
जतिन गांधी भी मानते हैं कि राहुल गांधी की अपनी प्रगति बहुत धीमी रही है उसके बावजूद भी कांग्रेस के नेता उन्हें वारिस के तौर पर ही देखते हैं. वो गांधी परिवार के बिना कांग्रेस को नहीं सोच पाते.
जतिन गांधी कहते हैं, ''नेताओं का कहना होता है कि गांधी परिवार देश में लोगों को आकर्षित करता है. लोग उन्हें सुनना और देखना चाहते हैं. लेकिन, जिस तरह कांग्रेस की हालत ख़राब हुई और वो लगातार चुनाव हारी है तो ये कारण अब ख़ास मायने नहीं रखता.''
''इससे बड़ा कारण है कि कांग्रेस को एकजुट रखने की क्षमता. अगर कांग्रेस का इतिहास देखें तो लगातार कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार के पास ही रहा है. राजीव गांधी के जाने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी से दूरी बनाने की कोशिश भी की थी लेकिन तब कांग्रेस में ही बिखराव हो गया. तब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली. दरअसल, कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के कमान में ही एकजुट रह पाती है वरना उसमें अलग-अलग धड़े बन जाते हैं. ''
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बिखर रही है कांग्रेस?
दिल्ली में भले ही कांग्रेस की हार रणनीतिक बताई जा रही है लेकिन फिर पार्टी के नेता दो धड़ों में बंटे दिखे.
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तनातनी सामने आती रहती है. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है.
क्या ये किसी भी पार्टी में होने वाले सामान्य मतभेद हैं या नेतृत्व ना होने से पार्टी बिखर चुकी है?
विश्लेषकों का मानना है कि इस वक़्त कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है. पार्टी में अंदरूनी मतभेद तो हैं हीं बल्कि ज़मीन स्तर पर भी जोश की कमी है.
अपर्णा द्विवेदी कहती हैं, ''ये सही है कि पार्टी सबसे ख़राब दौर में है और उसे एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो हमेशा उपलब्ध रहे और कड़े फैसले ले. जो कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाए कि हम आगे बढ़ेंगे और काम करेंगे. पर ये भी सच है कि पार्टी में विरोध के स्वर बार-बार उठते रहे हैं और फिर शांत भी हो जाते हैं. ''
''कांग्रेस को वो नेतृत्व नहीं मिल रहा है जिसका फ़िलहाल सख़्त ज़रूरत है. राहुल गांधी में वो नेतृत्व मिलेगा या नहीं ये तो समय ही बताएगा.''
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