DNA ANALYSIS: बुलिंग का शिकार हो रहे बच्चों का दर्द समझिए, ऐसे करें इस खतरेे की पहचान
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DNA ANALYSIS: बुलिंग का शिकार हो रहे बच्चों का दर्द समझिए, ऐसे करें इस खतरेे की पहचान

देश के 15 अलग अलग क्षेत्रों में 5 वर्षों तक की गई एक स्टडी के मुताबिक भारत में चौथी क्लास से लेकर 12 वीं क्लास तक में पढ़ने वाले करीब 40 प्रतिशत बच्चे बुलिंग यानी मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं. बुलिंग (Bullying) का हिंदी में अर्थ होता है किसी को डराना, चिढ़ाना और उसे धौंस दिखाना. 

DNA ANALYSIS: बुलिंग का शिकार हो रहे बच्चों का दर्द समझिए, ऐसे करें इस खतरेे की पहचान

DNA एक परिवार की तरह है और परिवार के सदस्यों को कुछ मुद्दों पर खुलकर बात करनी चाहिए. आज हम भी आपसे एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करना चाहते हैं. अगर आपके घर में भी 18 से छोटे से बच्चे हैं तो आप उन्हें भी अपने पास बुला लीजिए क्योंकि ये विश्लेषण उन्हीं के वर्तमान और भविष्य से जुड़ा है. माता-पिता के तौर पर आप इस विश्लेषण की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं, इसलिए कुछ देर के लिए अपने सारे काम छोड़कर हमारी बातों को ध्यान से सुनिएगा.

देश के 15 अलग अलग क्षेत्रों में 5 वर्षों तक की गई एक स्टडी के मुताबिक भारत में चौथी क्लास से लेकर 12 वीं क्लास तक में पढ़ने वाले करीब 40 प्रतिशत बच्चे बुलिंग यानी मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं. बुलिंग (Bullying) का हिंदी में अर्थ होता है किसी को डराना, चिढ़ाना और उसे धौंस दिखाना. दुख की बात ये है कि ज्यादातर मामलों में इन बच्चों के साथ ये बुलिंग कोई और नहीं बल्कि इनके साथ पढ़ने वाले दूसरे बच्चे ही करते हैं. भारत में चौथी से लेकर 12वीं क्लास तक में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 20 करोड़ से ज्यादा है. यानी इनमें से करीब 8 करोड़ बच्चे कभी ना कभी इस मानसिक और शारीरिक हिंसा को झेलते हैं. 

अपने ही क्लासमेट की गुंडागर्दी का शिकार सिर्फ भारत के ही बच्चे नहीं होते बल्कि पूरी दुनिया में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. आज हम आपको ऑस्ट्रेलिया में बुलिंग का शिकार हुए एक 9 साल के बच्चे का वीडियो दिखाएंगे. ये बच्चा एक शारीरिक बीमारी से जूझ रहा है जिसकी वजह से इसका कद छोटा रह गया है. अंग्रेजी में इसे ड्वॉर्फिज्म (Dwarfism) यानी बौनापन कहते हैं. इस बच्चे का नाम केडन बेल्स (Quaden Bayles) है और ये ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के एक स्कूल में पढ़ता है. लेकिन बौनेपन की वजह से क्वादेन के साथ पढ़ने वाले बच्चे उसे लगभग हर दिन तंग करते हैं. इस बच्चे को बार-बार सताया जाता है और उसकी हाइट का मजाक उड़ाया जाता है.

हाल ही में जब इस बच्चे की मां उसे लेने स्कूल पहुंची तो वो बुरी तरह से रोने लगा. केडन ने अपनी मां को बताया कि स्कूल में बच्चों ने उसका फिर से मज़ाक उड़ाया है. इससे व्यथित इस बच्चे की मां ने अपनी कार से एक Facebook Live किया. इस लाइव के दौरान ये बच्चा बार-बार कह रहा था कि वो जीना नहीं चाहता और वो खुद को मार डालना चाहता है. इस बच्चे की मां भी ये वीडियो बनाते समय रोने लगीं और उन्होंने लोगों से पूछा कि ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा ? सबसे पहले आप बुलिंग के शिकार इस 9 साल के बच्चे और उसकी मां का ये दर्द सुनिए.

अब आप सोचिए कि उस मां पर क्या गुज़र रही होगी जिसका बेटा उसके सामने आत्महत्या की बात कर रहा था. सिर्फ 9 साल की उम्र में ये बच्चा अपना जीवन समाप्त करने की बात कर रहा था. केडन की मां ने भी इस वीडियो में बताया कि उनके बच्चे के साथ बुलिंग की ये घटनाएं लगभग हर रोज होती है. वो स्कूल प्रशासन से, प्रिंसिपल से और टीचर्स से इसकी कई बार शिकायत कर चुकी है लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा. आज हम आपको ऑस्ट्रेलिया से आई ये खबर इसलिए दिखा रहे हैं ताकि आप भी अपने बच्चों को लेकर सावधान हो जाएं. हो सकता है कि आपके घर में भी कोई केडन को लेकिन आपको इसकी खबर भी ना हो. इस वीडियो के वायरल हो जाने के बाद इस बच्चों को अब पूरी दुनिया से समर्थन मिल रहा है.

मशहूर सुपर हीरो फिल्म X Men में Wolverine का किरदार निभाने वाले अभिनेता ह्यू जैकमैन (Hugh Jackman) ने केडन को अपना समर्थन दिया है और कहा है कि वो केडन के दोस्त हैं और उसके साथ खड़े हैं. अमेरिका के कॉमेडियन ब्रैड विलियम्स ने भी इस बच्चे के समर्थन में एक मुहिम चलाकर 1 करोड़ 20 लाख रुपये जमा किए हैं और वो अब केडन को इन पैसों से डिज्नीलैंड भेजना चाहते हैं. ब्रैड विलियम्स खुद भी इस बच्चे की तरह ड्वॉर्फिज्म से पीड़ित रहे हैं. अब दुनियाभर के माता-पिता और बुलिंग का शिकार रहे बच्चे केडन का हौसला बढ़ा रहे हैं और सोशल मीडिया पर उसके समर्थन में वीडियो पोस्ट कर रहे हैं. 95 प्रतिशत बच्चे इस मानसिक शोषण को चुपचाप सहते रहते हैं और उन्हें स्कूल में या कहीं और परेशान किया जाता है. इस बारे में वो अपने माता-पिता को भी नहीं बताते.

भारत में द टीचर फाउंडेशन (The Teacher Foundation) द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक चौथी से आठवी क्लास में पढ़ने वाले 69 प्रतिशत बच्चों ने माना कि उन्हें ऐसे बच्चों के साथ पढ़ने में परेशानी होती है जो शारिरिक रूप से अलग हैं या जिनका पहनावा और खानपान बाकियों से अलग होता है. हालांकि 53 प्रतिशत बच्चे ऐसे भी थे जिन्हें शारीरिक रूप से अलग बच्चों के अच्छे गुणों और टैलेंट के बारे में पता है. इस स्टडी के मुताबिक स्कूलों में शारीरिक हिंसा और लड़ाई झगड़े का शिकार होने वाले लड़कों की संख्या 54 प्रतिशत है जबकि 46 प्रतिशत लड़कियों के साथ कभी ना कभी ऐसी हिंसा की जाती है. लेकिन ये बुलिंग सिर्फ स्कूलों में या घर के बाहर ही नहीं होती बल्कि इंटरनेट पर भी बड़ी संख्या में बच्चे हिंसा का शिकार हो रहे हैं. इसे साइबर बुलिंग कहते हैं. यानी सोशल मीडिया पर बच्चों के साथ होने वाली गुंडागर्दी. 

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Compari-tech.com की एक रिसर्च के मुताबिक पूरी दुनिया में भारत के बच्चे सबसे ज्यादा साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं. भारत के 37 प्रतिशत बच्चों ने माना है कि उन्हें कभी ना कभी इंटरनेट पर तंग किया गया है. भारत के बाद ब्राज़ील अमेरिका और बेल्जियम का नंबर आता है जबकि सबसे कम साइबर बुलिंग रूस में होती है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि इतनी बड़ी संख्या में भारत के बच्चे साइबर बुलिंग से पीड़ित क्यों है. हाल ही में child rights और You यानी CRY द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक भारत में 3 में से 1 बच्चा कभी ना कभी इंटरनेट पर नकारात्क अनुभव झेलता हैं. ये सर्वे दिल्ली और आसपास के शहरों में 13 से 18 वर्ष की उम्र के बच्चों पर किया गया था. इनमें से 60 प्रतिशत लड़कों और 40 प्रतिशत लड़कियों के पास खुद का मोबाइल फोन था. और इनमें से 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों ने बताया कि वो इंटरनेट का प्रयोग दो से ज्यादा मोबाइल डिवाइस पर करते हैं. इस सर्वे में शामिल 80 प्रतिशत लड़के और 59 प्रतिशत लड़कियां सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं.

37% बच्चे अनजान लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट कर लेते हैं एक्सेप्ट
37 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि वो सोशल मीडिया पर अंजान लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट भी एक्सेप्ट कर लेते हैं. इनमें से 10 प्रतिशत बच्चे ऐसे थे जिनका सोशल मीडिया अकाउंट कभी ना कभी हैक हो चुका है या उसके साथ छेड़छाड़ हुई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 48 प्रतिशत बच्चों तो किसी ना किसी प्रकार से इंटरनेट की लत है. लेकिन चौकाने वाला आंकड़ा ये है कि ऐसे 59 प्रतिशत बच्चों के पास खुद का मोबाइल फोन है जिनके माता-पिता पूरे दिन घर पर नहीं रहते हैं. ऐसे 71 प्रतिशत बच्चों के पास खुद का मोबाइल फोन है जिनके पास रहने के लिए अपना अलग कमरा. यानी सेपरेट रूम है. जो बच्चे अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं, उनमें से 72 प्रतिशत के पास खुद का मोबाइल फोन है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त परिवारों में रहने वाले बच्चों में इंटरनेट की लत न्यूक्लियर परिवारों में रहने वाले बच्चों के मुकाबले कम है.

बच्चों की इंटरनेट और मोबाइल फोन की लत से बचाएं
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जो बच्चे एक्स्ट्रा सर्कुलर एक्टिविटीज में ज्यादा समय बिताते हैं, उनमें भी इंटरनेट की लत कुछ कम होती है. लेकिन यहां आपको जो बात समझनी चाहिए वो ये है कि जैसे जैसे बच्चों का संबंध का जुड़ाव माता-पिता और परिवार से कम होता है, वैसे-वैसे उनमें इंटरनेट और मोबाइल फोन की लत बढ़ने लगती है. ये बात ठीक है कि आज के दौर में बहुत सारे पैरेंट्स कामकाजी होते हैं और इसलिए वो अक्सर दिन भर घर से बाहर रहते हैं. लेकिन बहुत से पैरेंट्स ऐसे भी हैं जो छोटी उम्र में ही मोबाइल फोन और इंटरनेट का प्रयोग करने वाले बच्चों पर गर्व करने लगते हैं. ये लोग दूसरों के सामने अक्सर कहते हैं कि इनका तीन या चार साल का बच्चा बहुत अच्छे तरीके से मोबाइल फोन चलाना जानता है, या उसे youtube पर वीडियो देखना आता है या फिर दूसरी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को भी इस्तेमाल कर लेता है. जबकि कुछ पैरेंट्स इसलिए बच्चों को इंटरनेट की लत का शिकार होने देते हैं ताकि उन्हें अपने लिए थोड़ा समय मिल जाए या फिर उनके काम में किसी तरह की बाधा ना आएं. 

यानी कई बार माता-पिता अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने छोटे-छोटे बच्चों को इंटरनेट के नशे का आदी बनने देते हैं. कुल मिलाकर अगर बच्चा इकलौता हो, उसका अपना कमरा हो और मां-बाप घर पर ना हो तो उसके पास मोबाइल फोन होने की संभावना और उसे इंटरनेट की लत लगने की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन बच्चों की ये अनदेखी उसके भविष्य पर भारी पड़ सकती है और वो स्कूल से लेकर साइबर दुनिया तक बुलिंग और शोषण का शिकार हो सकता है. ये आपके बच्चे के लिए कितना बड़ा खतरा है.  

ऐसे करें बुलिंग के शिकार बच्चे की पहचान
अब सवाल ये है कि अगर कोई बच्चा स्कूल में या इंटरनेट पर बुलिंग का शिकार हो रहा है तो उसकी पहचान कैसे करें और उसकी मदद कैसे करे. इसके लिए पहला काम आपको ये करना है कि आपको अपने बच्चे के बर्ताव पर नज़र रखनी है. यानी अगर उसका व्यवहार बदल रहा है, वो चिढ़चिढ़ा या परेशान लग रहा है तो उससे बात ज़रूर करें. जब कोई बच्चा आपको ये बताएं कि वो हिंसा या बुलिंग का शिकार हुआ है तो उस पर विश्वास करें. आपके बच्चे के साथ ही बुलिंग या हिंसा हो ये जरूरी नहीं है. ये भी हो सकता है कि वो खुद दूसरों के साथ मिलकर किसी बच्चे को तंग करता हो. इसलिए समय समय पर अपने बच्चे से बात करते रहिए और जानने की कोशिश कीजिए कि वो शारीरिक रूप से अलग दिखने वाले लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है. इसके साथ ही स्कूलों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चे बिना किसी डर या झिझक के बुलिंग की शिकायत कर सकें. साबइर बुलिंग के बारे में अपने बच्चे से खुलकर बात कीजिए और उसे इंटरनेट के खतरों के बारे में बताइए. बच्चा सोशल मीडिया और इंटरनेट का कितना इस्तेमाल कर रहा है. इस पर भी नज़र रखिए और ज़रूरत पड़ने पर आप उसे मोबाइल फोन और इंटरनेट से दूर भी कर सकते हैं. साइबर बुलिंग की शिकायत आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन से भी कर सकते हैं और स्कूल में होने वाली हिंसा की शिकायत सबसे पहले आपको स्कूल प्रशासन से करनी होगी.

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