डोनल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर हेलिकॉप्टर की यह डील फ़ाइनल हो सकती है
- विशाल
- बीबीसी संवाददाता
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भारत पहुंचने से पहले बड़ी डिफेंस डील को मंज़ूरी दिए जाने की ख़बर है. मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक़ 19 फ़रवरी को भारत सरकार की सुरक्षा से जुड़ी कैबिनेट कमिटी ने अमरीका में बने MH-60 रोमियो मल्टी-रोल हेलिकॉप्टर्स ख़रीदने को मंज़ूरी दे दी है. भारतीय नौसेना के लिए ख़रीदे जा रहे इन 24 हेलिकॉप्टर्स की संभावित क़ीमत 1.86 खरब रुपए होगी.
भारत दौरे से पहले डोनल्ड ट्रंप एक वीडियो में ये कहते नज़र आए कि वह भारत के साथ कोई ट्रेड डील नहीं करेंगे. लेकिन, माना जा रहा है कि 24-25 फ़रवरी को उनके भारत दौरे पर यह डिफेंस डील फ़ाइनल हो सकती है.
क्या ख़रीदा जा रहा है?
भारत अमरीका से एंटी-सबमरीन यानी पनडुब्बियों पर हमले में उस्ताद हेलिकॉप्टर 'MH-60 रोमियो सी हॉक' ख़रीदना चाहता है. इसे अमरीकी डिफेंस कंपनी 'लॉकहीड मार्टिन' ने तैयार किया है. चौथी जेनरेशन का यह हेलिकॉप्टर आज की तारीख़ में पूरी दुनिया में नौसेना के काम आने वाला सबसे अडवांस हेलिकॉप्टर है.
जानकारों के मुताबिक़ भारतीय नौसेना कुछ वजहों से बीते दशकों में ख़ुद को अडवांस नहीं बना पाई. इसकी एक वजह यह भी रही कि नौसेना जहाज़ कहीं और से ख़रीदती है और हेलिकॉप्टर कहीं और से. अक्सर ऐसा भी होता है कि नौसेना को जहाज़ मिल जाते हैं, लेकिन हेलिकॉप्टर्स की डिलीवरी नहीं हो पाती. इन्हीं वजहों से आज इंडियन नेवी को MH-60R की सख्त ज़रूरत है.
MH-60R में क्या ख़ास है?
MH-60R बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन की वेबसाइट पर इस हेलिकॉप्टर की बारीकियां बताई गई हैं. कंपनी के मुताबिक़ यह मल्टी-रोल हेलिकॉप्टर है, जो हर मौसम में, दिन के किसी भी वक्त हमला करने में सक्षम है. इसकी दो सबसे बड़ी ख़ासियत हैं - छिपी हुई पनडुब्बियों पर हमला करना और एयर टू सरफेस यानी हवा से ज़मीन पर हमला करना.
इसमें एंटी-सबमरीन मार्क 54 टारपीडो दिया गया है, जो पानी में छिपी पनडुब्बियों को निशाना बनाता है. वहीं हेलफायर एयर टू सरफेस मिसाइल जहाज़ों को निशाना बनाती है. यानी दुश्मन चाहे समुद्र की सतह पर हो या पानी के अंदर, यह हेलिकॉप्टर उसे ख़त्म कर सकता है.
वैसे रूस और फ्रांस जैसे कई देशों ने नौसेना को ध्यान में रखते हुए हेलिकॉप्टर बनाए हैं, लेकिन इस मामले में अमरीका सबसे आगे है. इसकी एक वजह अमरीका में शिप बेस्ट हेलिकॉप्टर विकसित करने की परंपरा होना भी है.
MH-60R कॉम्पैक्ट हो सकते हैं, इसलिए ये कम जगह लेते हैं. इनका कॉकपिट सबसे अडवांस है. हमला करने के अलावा ये सैनिकों को लाने-ले जाने में भी सक्षम हैं. इसमें फ्यूल टैंक से लेकर सैटेलाइट से मिलने वाले इनपुट तक, सारी चीज़ें इंटरकनेक्टेड हैं यानी एक दूसरे से जुड़ी हुई.
अभी कौन से हेलिकॉप्टर इस्तेमाल हो रहे हैं?
MH-60R ख़रीदने का प्रस्ताव ख़ुद भारतीय नौसेना ने पेश किया था. साल 2003 से भारतीय नौसेना ब्रिटेन से ख़रीदे गए Sea King Mk.42B इस्तेमाल कर रही है, जो पुराने हो चुके हैं. नौसेना इन्हें रिटायर करना चाहती है.
अमरीका से ही हेलिकॉप्टर क्यों ख़रीदे जा रहे हैं?
इसका जवाब हमें विदेश-नीति पर निगाह रखने वाले प्रणय कोटस्थाने से मिलता है. वह कहते हैं, "सुरक्षा संबंधी कोई भी डील अपने रणनीतिक साझेदार के साथ करना बेहतर होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि दोनों देशों के हित और नुक़सान एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. भारत का यह फ़ैसला भी रणनीतिक ही है. उदाहरण के तौर पर, भारत और अमरीका दोनों ही चीन के प्रभाव को रोकना चाहते हैं. ऐसे में इस डील से दोनों ही देशों के हित सधेंगे."
प्रणय कहते हैं कि रणनीतिक साझेदार होने पर एक देश दूसरे देश को अमूमन डील या सप्लाई से मना नहीं कर पाता है. हालांकि, रक्षा संबंधी कोई भी डील किस देश या किस कंपनी से हो रही है, इसमें तमाम फ़ैक्टर्स शामिल हैं.
जैसे किसी हथियार की ज़रूरत सबसे पहले सेना ही पेश करती है. फिर सरकार उसे ख़रीदने का टेंडर निकालती है. टेंडर में दुनिया की तमाम कंपनियां बोली लगाती हैं. सरकार को जिस कंपनी की बोली सबसे मुफ़ीद लगती है, उससे डील होती है.
इस डील में चीन का ज़िक्र क्यों आया?
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हिंद महासागर में चीन का बढ़ता दख़ल भारत के लिए ख़तरे की घंटी है. जानकारों के मुताबिक़ 2003 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने एक शब्द उछाला था 'मलाका डिलेमा'. इसका संबंध समंदर के उस रास्ते से है, जिससे खाड़ी देशों से क़रीब 80% तेल और गैस सप्लाई होती है. इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच स्थित यह रास्ता हिंद और प्रशांत महासागर के बीच सबसे संकरा समुद्री रूट है. चीन इस पर क़ब्ज़ा जमाना चाहता है."
एशियाई देशों पर दबदबा बनाने और दुनिया में अमरीका का मुख्य प्रतिद्वंदी बनने के फेर में चीन हिंद महासागर में अपनी पनडुब्बियां तैनात कर रहा है. चीन की बढ़ती ताक़त से टक्कर लेने के लिए भारत को MH-60R जैसे संसाधनों की ज़रूरत है. वहीं अमरीका भी इस डील में चीन का प्रभाव कम करने का हित देख रहा है.
इस डील का एक और फ़ायदा यह भी है कि जब कोई अमरीकी उत्पाद भारत की सीमाओं के पास तैनात होगा, तो ज़रूरत पड़ने पर अमरीकी भी उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. अमरीका का मक़सद चीन को साउथ चाइन सी में रोकना है.
वहीं प्रणय का मानना है कि भारत के पास अमरीका और चीन के बीच तनाव का फायदा उठाते हुए ख़ुद को मज़बूत करने का यह अच्छा मौक़ा है.
इस डील की हिस्ट्री क्या है?
अगस्त 2018 में भारत की रक्षा अधिग्रहण समिति ने नौसेना की ज़रूरत और MH-60R की ख़रीद को मंज़ूरी दी थी. फिर नवंबर 2018 में अमरीका को रिक्वेस्ट भेजी गई. इस रिक्वेस्ट में भारत ने यह भी बताया था कि उसे हेलिकॉप्टर्स में क्या-क्या चीज़ें इनबिल्ट चाहिए.
2 अप्रैल 2019 को अमरीका के स्टेट डिपार्टमेंट ने भारत के साथ होने वाली इस संभावित डील को मंज़ूरी दी. अब इस डील को सिर्फ़ भारत की कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी की मंज़ूरी की ज़रूरत है, जो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ दी भी जा चुकी है.
उम्मीद जताई जा रही है कि ट्रंप के दौरे पर डील साइन भी हो जाएगी.
वैसे यह डील टेंडर में लगाई गई बोलियों के बजाय दो सरकारों के बीच हो रही है. यानी इसमें भारत सरकार लॉकहीड मार्टिन से नहीं, बल्कि अमरीकी सरकार से MH-60R ख़रीद रही है.
भारत को कब मिलेंगे MH-60R
अगर ये डील फाइनल हो जाती है तो भी भारत को सभी 24 हेलिकॉप्टर मिलने में क़रीब 5 साल का वक्त लग सकता है. हालांकि, पहला बैच 2022 में मिल सकता है. वहीं अगर अमरीकी नौसेना को ध्यान में रखकर बनाए गए हेलिकॉप्टर का अधिग्रहण किया गया, तो यह मियाद कम भी हो सकती है.
भारत ख़ुद ऐसे हेलिकॉप्टर क्यों तैयार नहीं कर सकता?
ऐसे हथियार बनाने की तकनीक के मामले में भारत अमरीका जैसे मुल्कों से क़रीब 40-50 साल पीछे है. चीन भी भारत से आगे है. भारत को एंटी-सबमरीन वॉरफेयर क्षमता विकसित करने में क़रीब 10 साल तक लग जाते हैं. ऐसे में अगर चीन से रिश्ते ख़राब होने की स्थिति में भारत को उन्नत हथियारों की ज़रूरत पड़ी, तो वह सिर्फ़ अपनी एजेंसियों के बूते बैठा नहीं रह सकता.
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