Electric Vehicles: क्या भारत में इलेक्ट्रिक कारों का दौर आ गया है?

  • गुलशनकुमार वनकर
  • बीबीसी मराठी
इलेक्ट्रिक कार

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कुछ सालों पहले क्या आपने ये सोचा था कि कोई इलेक्ट्रिक कार दस लाख रुपए में आपकी हो सकती है?

हाल ही में हुए दिल्ली ऑटो एक्सपो में ऐसी कई कारें पेश की गई, जिससे आपका इलेक्ट्रिक कार का सपना अब संभव लग रहा है.

जैसे महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपनी मिनी एसयूवी KUV 100 का एक इलेक्ट्रिक अवतार लॉन्च किया, जिसकी क़ीमत 8 लाख 25 हज़ार रुपए या 11 हज़ार 600 डॉलर रखी गई है. निजी गाड़ियों के ख़रीदारों के लिए भारत में उपलब्ध ये सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार है.

इसके बाद नंबर आता है टाटा मोटर्स की नेक्सॉन ईवी का. नेक्सॉन के इलेक्ट्रिक मॉडल की क़ीमत क़रीब 14 लाख रुपए या 20 हज़ार डॉलर है. टाटा मोटर्स कंपनी, जो जगुआर लैंड रोवर ब्रैंड की भी मालकिन है, वो इलेक्ट्रिक कारों से जुड़ी अपनी योजना को लेकर बहुत उत्साहित हैं.

इसीलिए टाटा मोटर्स ने भी दिल्ली ऑटो एक्सपो में अपनी इलेक्ट्रिक एसयूवी सिएरा का कॉन्सेप्ट मॉडल भी प्रदर्शित किया था. इसके अलावा टाटा मोटर्स ने एक इलेक्ट्रिक हैचबैक कार, एक इलेक्ट्रिक बस और यहां तक कि एक इलेक्ट्रिक कॉमर्शियल ट्रक की भी नुमाइश की थी.

भारतीय कंपनियों के अलावा कोरियाई ऑटोमोबाइल कंपनी हुंडई और चीन के मालिकाना हक़ वाली ब्रिटिश कंपनी एमजी मोटर्स ने भी हाल ही में अपनी इलेक्ट्रिक एसयूवी को भारत के बाज़ार में उतारा है. जिनकी क़ीमत क़रीब 25 लाख या 35 हज़ार डॉलर के आस-पास है.

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और सिर्फ़ चार पहिया ही नहीं, भारत की दुपहिया वाहन कंपनियां हीरो मोटर्स, बजाज ऑटो और टीवीएस ने भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाज़ार में क़दम बढ़ाए हैं. भारत के इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार में कई छोटी स्थानीय कंपनियां और कुछ चीनी कंपनियों ने भारतीयों की पसंद को ध्यान में रख कर इलेक्ट्रिक वाहन उतारे हैं.

लेकिन, अभी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के ये खिलाड़ी कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं कर सके हैं.

लेकिन, हर दो साल में होने वाले दिल्ली ऑटो एक्सपो में कमोबेश हर कार निर्माता कंपनी ने इस बार अपनी नुमाइश में स्वच्छ ईंधन, ग्रीन कार या इलेक्ट्रिक कार का ज़ोर-शोर से प्रचार किया. ऐसे में हर शख़्स की ज़ुबान पर एक ही बड़ा सवाल है.

क्या भारत में इलेक्ट्रिक कारों का दौर आ गया है?

टाटा मोटर्स की इलेक्ट्रिक व्हीकल्स यूनिट के प्रेसीडेंट शैलेश चंद्रा
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टाटा मोटर्स की इलेक्ट्रिक व्हीकल्स यूनिट के प्रेसीडेंट शैलेश चंद्रा कहते हैं, "मैं अभी भी ये कहने से बचूंगा कि भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का ज़माना आ गया है. क्योंकि अभी भारत की सड़कों पर इन गाड़ियों का इम्तिहान होना बाक़ी है."

हालांकि, शैलेश चंद्रा आगे ये भी जोड़ते हैं, "मुझे यक़ीन है कि अगर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के कई विकल्प बाज़ार में आते हैं, फिर चाहे वो टाटा मोटर्स के हों या अन्य कंपनियों के, और शहरों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की चार्जिंग की सुविधाएं अगले दो-तीन बरसों में बढ़ती हैं, तो ये तय है कि आगे चल कर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग बढ़ेगी."

लोकल सर्किल्स-सीएनबीसी टीवी-18 के एक सर्वे के अनुसार, ''अगर आज भारतीय ग्राहक इलेक्ट्रिक वाहनों को तरज़ीह नहीं दे रहे हैं, तो इसकी सबसे बड़ी वजह है उनकी महंगी क़ीमतें.''

ये सर्वे भारत के 180 से ज़्यादा शहरी इलाक़ों के 32 हज़ार लोगों से बातचीत पर आधारित था. सर्वे का एक नतीजा ये भी निकला कि क़रीब 65 प्रतिशत लोग आज भी इलेक्ट्रिक कार ख़रीदने के लिए 15 लाख रुपए से कम ही रक़म ख़र्च करना चाहते हैं.

लेकिन, अब जबकि बाज़ार में नए और सस्ते विकल्प आ रहे हैं, तो क्या भारतीय ग्राहक इलेक्ट्रिक कारें ख़रीदना शुरू करेंगे?

टीवीएस का इलेक्ट्रिक स्कूटर लॉन्च करते केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी

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सरकार की भूमिका

भारत सरकार काफ़ी समय से स्वच्छ ईंधन पर आधारित गाड़ियों की ख़रीद को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है. लेकिन, इलेक्ट्रिक कारों को लेकर सरकार की नीति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है.

हाल ही में सरकार ने अपनी फ़ेम (FAME) योजना के दूसरे फ़ेज की घोषणा की थी. साथ ही सरकार ने 2019-2022 के दौरान इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अपने फंड को दस गुना बढ़ा कर दस हज़ार करोड़ कर दिया था.

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोटिव मैन्यूफैक्चरर्स (SIAM) के महानिदेशक राजेश मेनन कहते हैं, ''आज बहुत-सी कंपनियां इलेक्ट्रिक गाड़ियां बाज़ार में उतार रही हैं. इसकी प्रमुख वजह है सरकार की FAME-2 नीति की ख़ूबियां. इससे कॉमर्शिलयल सेक्टर में इलेक्ट्रिक वाहनों, जैसे बसों, ट्रकों और टैक्सियों को बढ़ावा मिलेगा. इससे धीरे-धीरे इनकी मांग बढ़ेगी.''

लेकिन, यही समस्या की असल जड़ है. FAME यानी फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्यूफैक्चरिग ऑफ़ हाइब्रिड ऐंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया, यह केंद्र सरकार की एक योजना है, जो केवल सार्वजनिक परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने वालों और इन्हें ख़रीदने वालों को प्रोत्साहन देती है.

एनआरआई कन्सल्टिंग ऐंड सॉल्यूशन्स के विश्लेषक आशिम शर्मा कहते हैं, ''सरकार की सोच अब काफ़ी व्यावहारिक हो गई है क्योंकि अब वो कुछ ख़ास सेगमेंट में ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों को प्रोत्साहन देने पर ज़ोर दे रहे हैं. जैसे कि दुपहिया वाहन, टैक्सी और बसें. ये सेगमेंट इलेक्ट्रिक गाड़ियों को जल्द अपना सकता है. तो इससे ज़्यादा तादाद में लोगों को फ़ायदा होगा और उम्मीद यही है कि बाक़ी के लोग भी बाद में इसका अनुसरण करेंगे.''

लेकिन, ये सेगमेंट गाड़ियों के कुल बाज़ार का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही है. तो, आख़िर इलेक्ट्रिक गाड़ियों तक हमारी पहुंच कब बनेगी? आख़िर निजी गाड़ियों के ख़रीदार इलेक्ट्रिक कारों या दुपहिया वाहनों को क्यों नहीं ख़रीद रहे हैं?

इलेक्ट्रिक बस

ख़रीदारों का डर

SIAM के राजेश मेनन कहते हैं कि निजी गाड़ियों के ख़रीदारों की अभी भी इलेक्ट्रिक कारों से जुड़ी तीन बड़ी आशंकाएं हैं. पहला तो ये है कि इलेक्ट्रिक कारों की क़ीमत ज़्यादा है. क्योंकि ये गाड़ियां पारंपरिक वाहनों के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा महंगी हैं.

दूसरी बात ये है कि इनके विकल्प बड़े सीमित हैं. हालांकि, अब इलेक्ट्रिक कारें बड़ी संख्या में बाज़ार में उतारी जा रही हैं. ग्राहकों की तीसरी चिंता इससे जुड़े बुनियादी ढांचे की कमी का होना है. मतलब ये कि शहरों में अभी भी इलेक्ट्रिक कारों को चार्ज करने की सुविधाएं बहुत कम हैं.

राजेश मेनन ने बीबीसी को बताया, ''आगे चल कर बहुत से बदलाव आने वाले हैं. ख़ास तौर से तकनीकी नज़रिए से. चार्जिंग की सुविधा की दृष्टि से काफ़ी प्रगति होगी. और बैटरियों की गुणवत्ता भी बेहतर होगी. अगर हम स्थानीय स्तर पर बैटरियां बनाने का काम शुरू करते हैं, तो आगे चल कर इलेक्ट्रिक कारों की क़ीमतों में गिरावट आएगी और इन्हें ख़रीदने का फ़ैसला करना और आसान हो जाएगा.''

इलेक्ट्रिक चार्जिंग नेटवर्क

चीन पर निर्भरता?

आम भारतीय हमेशा ही चीन के उत्पादों को हेय दृष्टि से देखते हैं. फिर चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान हों या शुरुआती इलेक्ट्रिक वाहन. इन गाड़ियों को भारत की सड़कों के लिहाज़ से बहुत हल्का माना जाता है.

लेकिन, 2019 में एमजी मोटर्स, भारत के बाज़ार में दाख़िल हुई और इसे लेकर बाज़ार में सकारात्मक माहौल देखने को मिला. इससे चीन की अन्य कंपनियों को भी भारत के बाज़ार में दाख़िल होने का हौसला मिला है.

कुछ दिन पहले ख़त्म हुए दिल्ली ऑटो एक्सपो में चीन की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी ग्रेट वॉल मोटर्स ने एलान किया कि वो अपनी एसयूवी हवाल और इलेक्ट्रिक वाहन जीडब्ल्यूएम EV को भारत के बाज़ार में उतारेगी. ग्रेट वॉल मोटर्स भारत में एक अरब डॉलर के निवेश का एलान पहले ही कर चुकी है.

इस साल की दूसरी छमाही में ग्रेट वॉल मोटर्स, अमरीकी कंपनी जनरल मोटर्स के पुणे के पास स्थित प्लांट का अधिग्रहण करने वाली है.

फिर, दिल्ली स्थित बर्ड इलेक्ट्रिक कंपनी भी है, जो अगले 15 से 18 महीनों में चीन से हैमा नाम की इलेक्ट्रिक कारें भारत में लाकर बेचने की तैयारी में है. कंपनी का दावा है कि ये कार एक बार चार्ज होने पर 200 किलोमीटर तक जा सकेगी.

इस इलेक्ट्रिक कार की क़ीमत 10 लाख या 14 हज़ार डॉलर से भी कम रहने की उम्मीद है. हैमा, FAW समूह का एक हिस्सा है जो चीन की सरकारी ऑटोमोटिव कंपनी है. इसका मुख्यालय चैंगचुन में है.

इसके अलावा, BYD की 120 से ज़्यादा इलेक्ट्रिक बसें पहले से ही भारतीय बाज़ार में हैं. बीवाईडी दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कंपनी है. BYD यानी बिल्ड योर ड्रीम्स का मुख्यालय चीन के शेनजेन में है. ये कंपनी ओलेक्ट्रा ग्रीनटेक नाम की कंपनी के साथ मिल कर चेन्नई में बसों को असेंबल करती है.

चीन, दुनिया भर में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का सबसे बड़ा बाज़ार है. अमरीका और यूरोप का नंबर इसके बाद आता है. ऐसे में ये भी तय था कि लीथियम-आयन बैटरी के कारोबार के मामले में भी चीन अव्वल है. दुनिया भर में इलेक्ट्रिक कारों की बैटरियों के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा चीन से ही आता है.

इलेक्ट्रिक कार

भारत बनेगा सबसे बड़ा बाज़ार

वहीं दूसरी तरफ़, भारत का बाज़ार इतना बड़ा है कि इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. साल 2025 तक भारत, जापान को पीछे छोड़ कर दुनिया का तीसरा बड़ा बाज़ार बन जाएगा. गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक़, तब तक भारत में क़रीब 74 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियां होंगी.

हालांकि, पिछले कुछ महीनों से भारत में गाड़ियों की बिक्री की रफ़्तार बेहद धीमी रही है. पिछले कुछ दशकों में भारतीय बाज़ार में गाड़ियों की बिक्री आज सबसे कम है. इसके लिए कई कारण ज़िम्मेदार हैं. घरेलू अर्थव्यवस्था इस वक़्त सुस्त है और आज ग्राहकों के ख़र्च करने की रफ़्तार ऐतिहासिक रूप से गिरावट की ओर जा रही है.

इसके अलावा बाज़ार से जुड़ी नीतियों में लगातार उठापटक और वैकल्पिक ईंधन की तरफ़ फ़िक्रमंदी से बढ़ते क़दम भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं.

सरकार चाहती है कि भारत दुनिया भर में इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र बन जाए. साथ ही सुज़ुकी और टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कंपनियों ने भी लीथियम-आयन बैटरी के निर्माण में भारी निवेश का एलान किया है.

हाल ही में टाटा मोटर्स ने एलान किया है कि वो अपनी सहयोगी कंपनियों टाटा केमिकल्स और टाटा मोटर्स के साथ मिलकर भारत में लीथियम-आयन बैटरियां बनाएगी और इनकी असेंबलिंग करेगी. लेकिन, ये काम दूसरे देशों से कोबाल्ट और लीथियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज के आयात की मदद से ही किया जा सकता है.

सरकार के आंकड़ों का क्लीन टेक्निका एनालिसिस करने से ये मालूम होता है कि भारत में लीथियम-आयन बैटरियों का आयात 2014-15 से 2018-19 के बीच छह गुना बढ़ गया. 2022 में लीथियम-आयन बैटरियों की मांग 10 गीगावाट और 2025 तक इसके 50 गीगावाट पहुंचने की संभावना है.

नीति विश्लेषक नितिन पाई ने लाइवमिंट में एक लेख में लिखा है, ''अगर भारत में लीथियम-आयन बैटरियां बनाने की क्षमता का विकास करके घरेलू मांग पूरी की भी जा सके, तो भी ये चीन से आने वाली सस्ती बैटरियों का मुक़ाबला नहीं कर सकेगी.''

भारत जैसे बाज़ार में जहां क़ीमतों को लेकर लोग बहुत संवेदनशील हैं, वहां पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग बढ़ने की राह में ये एक और बाधा है.

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