महात्मा गांधी ने कई बार कहा कि वो कट्टर हिन्दू हैं: मोहन भागवत

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
मोहन भागवत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में सोमवार को एक नया अध्याय जुड़ा. मौक़ा था सरसंघचालक मोहन भागवत के गांधी स्मृति पहुँचने का.

गांधी स्मृति, 30 जनवरी मार्ग पर है. ये वही जगह है जहां 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी. आज तक आरएसएस का कोई सरसंघचालक अपने पद पर रहते हुए गांधी स्मृति नहीं गया था. लेकिन मोहन भागवत ने 17 फ़रवरी को इस परंपरा को तोड़ दिया.

मौक़ा था एनसीईआरटी के पूर्व प्रमुख जेएस राजपूत की किताब के विमोचन का. जेएस राजपूत ने एक नई किताब लिखी है "गांधी को समझने का यही समय". इस किताब के विमोचन के लिए सरसंघचालक मोहन भागवत को आमंत्रित किया गया था. इस मौक़े पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कई कारण भी गिनवाए कि गांधी को याद करने की ज़रूरत आज क्यों है?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, "गांधी को हिंदू होने पर कभी लज्जा नहीं हुई. गांधी जी ने कई बार कहा मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं. ये भी कहा कि मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं इसलिए पूजा के भेद मैं नहीं मानता. मैं ये मानता हूं कि सभी धर्मों में सत्य का अंश है. इसलिए अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो और दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करो और मिलजुल कर रहो."

गांधी

ग़ौर करने वाली बात ये है कि आज देश भर में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रदर्शन चल रहे है. यह क़ानून तीन पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान) के ग़ैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने के लिए है.

इस क़ानून को बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस पर बोलते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा था कि बापू की भी यही इच्छा थी. इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी संसद में बजट सत्र के अभिभाषण में सीएए पर बोलते हुए इस बात को दोहराया था. अब सरसंघचालक मोहन भागवत ने गांधी के हिंदू होने का ज़िक्र करके सीएएए पर उसी संदर्भ का ज़िक्र किया.

मोहन भागवत ने कहा, "गांधी ने कई बार ऐसे प्रयोग किए जो सफल नहीं हुए. लेकिन उन्होंने हमेशा सोचा कि मेरा तरीक़ा ग़लत होगा, मेरा सत्य ग़लत नहीं है. कई बार उन्होंने प्रायश्चित भी किए. आंदोलन भटक भी गया तो उन्होंने प्रायश्चित कर लिया."

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गांधी के बारे में ऐसा बोलते-बोलते मोहन भागवत सीधे वर्तमान में आ गए. उन्होंने कहा, "लेकिन क्या अभी ऐसा कोई है कि आंदोलन में कुछ ग़लत हो गया हो, क़ानून व्यवस्था में कुछ ग़लत हो गया हो तो उसके लिए प्रायश्चित करे? आंदोलन में लाठीचार्ज होता है, गोलीबारी होती है, तो जो लोग मारे जाते हैं उन्हीं को प्रायश्चित करना पड़ता है. जो पकड़े जाते हैं उनको कोर्ट जाना पड़ता है. जो कराने वाले हैं वो या तो जीतते हैं या तो हारते हैं."

गांधी के समय से सीधा वर्तमान को जोड़ने का उनका प्रसंग संयोगवश बिल्कुल नहीं था. दरअसल, इस वक़्त देश में कई जगह नागरिकता क़ानून के विरोध में लोग आंदोलन कर रहे हैं. इन आंदोलनों में कई लोगों की जान भी गई है. कई जगहों पर लाठीचार्ज भी हुआ है. दिल्ली में जिस शाहीन बाग़ में लोग सड़क पर बैठे हैं, उसे ख़ाली करवाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है.

इस बीच दिल्ली में विधानसभा चुनाव भी हुए, जिसमें बीजेपी ने शाहीन बाग़ को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन जीत आम आदमी पार्टी को ही मिली. मोहन भागवत के इस बयान को वर्तमान में इसी आंदोलन से जोड़ कर देखना अनुचित नहीं है.

मोहन भागवत

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क्यों गए मोहन भागवत गांधी स्मृति? गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर शक था और उस पर प्रतिबंध भी लगाया गया था. यही वजह है कि अब तक सभी आरएसएस प्रमुख गांधी स्मृति आने से बचते रहे. लेकिन सत्ता में आने के बाद आरएसएस और बीजेपी दोनों ने गांधी पर बात करने में संकोच नहीं किए.

हालांकि कई बार बीजेपी और आरएसएस को गांधी को लेकर असहज भी होना पड़ा. भोपाल से लोकसभा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कह दिया था कि गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे देशभक्त थे और देशभक्त रहेंगे. प्रज्ञा ने ये भी कहा था कि गोडसे को आतंकवादी कहने वालों को अपने गिरेबान में झांकने की ज़रूरत है.

प्रज्ञा की इस टिप्पणी पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वो उन्हें दिल से कभी माफ़ नहीं कर पाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी स्वच्छता अभियान को भी गांधी से ही जोड़ते हैं. गांधी स्मृति भवन के अध्यक्ष ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. गांधी स्मृति का सारा काम भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत आता है और संघ से जुड़े जेएस राजपूत ने जब गांधी पर किताब लिखी और मोहन भागवत से इसका विमोचन करवाया तो गांधी स्मृति से बेहतर दूसरी कोई नहीं हो सकती थी.

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