दिल्‍ली: हार के बाद नागरिकता कानून पर बीजेपी के रुख पर उठ रहे कई सवाल
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दिल्‍ली: हार के बाद नागरिकता कानून पर बीजेपी के रुख पर उठ रहे कई सवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) में बुरी तरह से हार के बाद नागरिकता कानून पर बीजेपी के रुख पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्‍ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) में बुरी तरह से हार के बाद नागरिकता कानून पर बीजेपी के रुख पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि दिल्ली की जनता ने CAA को नकार दिया है. शाहीन बाग में लगातार हुए धरने और प्रदर्शन पर दिल्लीवालों ने सही ठहराया है. अब बीजेपी को भी अपने स्टैंड पर विचार करना पड़ेगा.

लेकिन आपको हम बता दें कि दिल्ली में हार CAA पर बीजेपी के रुख के कारण हुई है या मुफ्त बिजली, पानी के कारण, ये बहस का विषय हो सकता है? लेकिन बीजेपी और मोदी सरकार CAA को एक बड़ी उपलब्धि मानती है और आगे भी मानती रहेगी. खुद प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा इसे लगातार उठाते रहे हैं. पूरे देश में इसको लेकर पार्टी ने जन जागरण कैंपेन चलाया.

पार्टी के बड़े नेताओं का मानना भी है कि दिल्ली में भले ही पार्टी की हार हुई है लेकिन मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है. उनका कहना है कि क्या जो हमें वोट दिए हैं, वो CAA पर मुहर नहीं है? जानकारी के अनुसार CAA को लेकर कैंपेन आगे भी जारी रहेगा.

रही बात है इस साल नवंबर में होने वाले आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की तो वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने CAA का पुरजोर समर्थन किया है. यहां तक कि इसका विरोध कर रहे पार्टी उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन वर्मा को जदयू से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है.

इसलिए बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी बीजेपी CAA को मोदी सरकार की उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेगी. वैसे बीजेपी-जदयू गठबंधन को देखते हुए उस समय की परिस्थितियों के अनुसार ही इसके तेवर और कितना जोर दिया जायेगा, वो तय होगा.

लेकिन 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में CAA को लेकर पार्टी का स्टैंड काफी कड़ा रहेगा. पार्टी नेताओं का मानना है कि उस समय तक 3 देशों से आए हुए लोगों में से काफी अच्छी संख्या में शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल चुकी होगी. जिसे पश्चिम बंगाल में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाने में आसानी भी होगी.

यानी मकसद साफ है. CAA को संसद से पारित कराकर पार्टी ने विचारधारा और अपने घोषणापत्र को लागू करने में जो मशक्कत की है, उसे दिल्ली में हार के बाद ठंडे बस्ते में नहीं डालने जा रही है. पीएम मोदी का एक बयान CAA को लेकर पार्टी के अविरल रुख पर सटीक बैठता है. पिछले सत्र में जब उन्होंने पार्टी संसदीय दल की बैठक में सांसदों से कहा था...'CAA से जिनको नागरिकता मिलने जा रही है, उनकी आंखों में जाकर आप देखिये. 70 साल की आंसू की जगह वहां आपको खुशी दिखाई पड़ेगी.'

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने का जिक्र करते हुए PM मोदी ने कहा था कि 70 साल की वेदना को, 70 घंटे में भुला दिया आप लोगों ने. इस पर बहस को ही बंद कर दिया. इसे दैवीय शक्ति से किया गया काम मान कर चुप बैठ गए. ऐसा CAA के साथ नहीं होना चाहिये. पूरे देश में इसको लेकर सम्मेलन और अन्य उपक्रम होना चाहिये. आप देश को बताइये, 'कैसे उनको (CAA के कारण जिनको नागरिकता मिलने जा रही है) आत्मविश्वास के साथ जीने का मौका मिल रहा है.'

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