में शामिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सेना में महिलाओं को पुरुष समकक्षों के साथ समानता प्रदान की है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि तीन महीने के अंदर सेना में सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि उन्हें कमांड में नियुक्त करने पर कोई पूर्ण पाबंदी नहीं होगी।महिला अधिकारियों को राहत देते हुए बेंच ने कहा कि सेना में महिलाओं के प्रवेश का 1992 से उतार-चढ़ाव वाला इतिहास रहा है, जब उन्हें 5 साल के लिए अनुबंधित शाखाओं और काडर में नियुक्त किया जाता था। शुरू में 1950 के सेना कानून के तहत महिलाएं सेना में नियमित रूप से...
कानून के लगभग 42 साल बाद सरकार ने जनवरी 1992 में अधिसूचना जारी कर महिलाओं को 5 शाखाओं में अधिकारियों के तौर पर नियुक्ति के लिए पात्र घोषित किया जिनमें सेना की डाक सेवा, जज एडवोकेट जनरल विभाग, सैन्य शिक्षा कोर , सेना आयुध कोर और सैन्य सेवा कोर शामिल हैं। इसी साल दिसंबर से ही महिलाओं को 5 और विभागों में नियुक्त किया जा सकता था जिनमें सिग्नल, खुफिया, इंजिनियरिंग, इलेक्ट्रिकल और मकैनिकल इंजीनियरिंग तथा आर्टिलरी रेजिमेंट शामिल हैं।चार साल बाद, दिसंबर 1996 में एक अधिसूचना जारी करके नियुक्ति पर पांच...
हालांकि डब्ल्यूएसईएस या बाद में एसएससी के तहत नियुक्ति से जुड़ी शर्तें महिलाओं के स्थाई कमीशन के लिए कभी पेश नहीं की गयीं। हालांकि उनकी सेवा का काल शुरूआती पांच साल से बढ़ाकर अधिकतम 14 साल तक कर दिया गया। फरवरी 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर सेना में एसएससी की महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन देने का अनुरोध किया गया। उसके बाद अक्टूबर 2006 में महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन देने के लिए याचिका दाखिल की गई। रक्षा मंत्रालय ने सितंबर 2008 में एक सर्कुलर जारी किया जिसमें जेएजी...
कोर्ट ने कहा कि सामाजिक और मानसिक कारण बताकर महिला अधिकारियों को अवसर से वंचित करना न सिर्फ भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह अस्वीकार्य है। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को अपने नजरिए और मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए।
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