#370InShaheenBagh: अब शाहीन बाग जाने के लिए वीजा लगेगा?
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#370InShaheenBagh: अब शाहीन बाग जाने के लिए वीजा लगेगा?

शाहीन बाग़ में मीडिया के एक हिस्से का भी प्रवेश वर्जित है. यानी शाहीन बाग़ एक ऐसे मोहल्ले में बदल चुका है. जहां ना देश की पुलिस जा सकती है और ना देश का मीडिया. 

#370InShaheenBagh: अब शाहीन बाग जाने के लिए वीजा लगेगा?

शाहीन बाग़ में मीडिया के एक हिस्से का भी प्रवेश वर्जित है. यानी शाहीन बाग़ एक ऐसे मोहल्ले में बदल चुका है. जहां ना देश की पुलिस जा सकती है और ना देश का मीडिया. शाहीन बाग़ जाकर सुप्रीम कोर्ट, लोकतंत्र और कानूनों की बात करना तो बिल्कुल बेइमानी है. ऐसा लगता है जैसे ये इलाका टुकड़े टुकड़े गैंग का नया मुख्यालय बन गया है. जहां सिर्फ एक खास विचारधारा वाले लोग ही जा सकते हैं.

अभी दो दिनों पहले ही मीडिया के हमारे एक साथी और News Nation चैनल के Consulting Editor दीपक चौरसिया शाहीन बाग में रिपोर्टिंग करने गए थे. लेकिन उन्हें वहां रोक दिया गया और आरोपों के मुताबिक उनके साथ धक्का-मुक्की भी की गई, मीडिया के एक छोटे हिस्से ने इस घटना के विरोध में Tweet करके अपनी जिम्मेदारी निभा दी.

इस घटना के बावजूद Editors Guild Of India और Press Council Of India ने चुप्पी साध ली. इसलिए ये प्रश्न उठ रहा है कि क्या शाहीन बाग़ में सिर्फ उन पत्रकारों को जाने दिया जाएगा जो टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ हैं. सवाल ये भी है क्या हम देश की सच्चाइयां सिर्फ Studio में बैठकर ही दिखाते रहेंगे ?.इसलिए आज मैंने और दीपक चौरसिया ने शाहीन बाग़ जाने का फैसला किया और गणतंत्र दिवस के 24 घंटे बाद ये पता लगाने की कोशिश की कि क्या भारतीय गणराज्य का संविधान और कानून शाहीन बाग़ में भी लागू होते हैं.

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जिन लोगों को कभी राष्ट्रगान गाने में दिक्कत होती थी. वो आज खड़े होकर राष्ट्रगान गा रहे हैं. जो लोग तिरंगे का सम्मान नहीं करना चाहते थे. आज उनके हाथों में भारत का झंडा है. जो लोग कभी संविधान को स्वीकार नहीं कर पाए. वो लोग आज संविधान की प्रस्तावना पढ़ रहे हैं. लेकिन आज शाहीन बाग़ में मैने जो कुछ देखा. उसे देखकर ऐसा लगा जैसे इन लोगों ने राष्ट्रगान, तिरंगे और संविधान का भी अपने फायदे के लिए राजनीति करण कर दिया है.

आज दोपहर करीब ढाई बजे मैं और हिंदी न्यूज़ चैनल News Nation के Consulting Editor दीपक चौरसिया शाहीन बाग़ पहुंचे. ये देश की मीडिया के इतिहास में शायद पहला ऐसा मौका था. जब दो चैनलों के संपादक या एंकर एक साथ एक ऐसी जगह पहुंचे. जहां सिर्फ एक विचारधारा के लोगों को ही Entry दी जा रही है.

मीडिया का जो हिस्सा शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों की जुबान बोल रहा है. उन्हें तो मंच पर बुलाकर सम्मानित किया जा रहा है. लेकिन मीडिया का जो हिस्सा शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों से सहमत नहीं है. या फिर इन विरोध प्रदर्शनों पर सवाल उठा रहा है उस हिस्से को ये लोग अंदर भी घुसने नहीं दे रहे हैं.

हमने आज प्रयास किया कि हम इन प्रदर्शनकारियों के बीच में जाएं और इनसे संवाद करें. मेरे हाथ में उस नए नागरिकता कानून की एक कॉपी भी थी. जिसके खिलाफ ये सारे विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. मैने प्रदर्शनकारियों को नए कानून के बारे में पढ़कर सुनाना चाहा. लेकिन इन लोगों को ये भी मंजूर नहीं था. हम बैरिकेड पार करते उस जगह पर जाना चाहते थे. जहां पिछले करीब डेढ़ महीने से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से इस इलाके की करीब 4 किलोमीटर लंबी सड़क को पिछले करीब 44 दिनों से बंद करके रखा गया है.

इससे दिल्ली के करीब 10 लाख लोगों को परेशानी हो रही है. इसलिए आज हमने कोशिश की कि हम इन प्रदर्शनकारियों से बात करें, उन्हें समझाने की कोशिश करें कि ये ठीक नहीं है और नया कानून किसी की नागरिकता छीनने नहीं जा रहा. लेकिन जैसे ही हम यहां पहुंचे प्रदर्शनकारी बाहर आ गए. लाउड स्पीकर से आने वाली आवाज़ें तेज़ हो गईं. और हमारी तरफ से संवाद की किसी भी पेशकश को इन प्रदर्शनकारियों ने स्वीकार नहीं किया.

शाहीन बाग़ पहुंचकर हमें ऐसा लग रहा था जैसे हमें प्रदर्शन स्थल तक जाने के लिए अपने ही देश में वीज़ा लेना पड़ेगा या पासपोर्ट दिखाना पड़ेगा. हम सारे कागज़ दिखाने को तैयार भी थे. लेकिन फिर भी इन प्रदर्शनकारियों ने पहली कोशिश में हमें अंदर नहीं जाने दिया. Go Back के नारे लगाते रहे .

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