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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद बकाया चुकाएंगी एयरटेल-वोडा आइडिया, जियो ने किया 195 करोड़ का भुगतान

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला Published by: paliwal पालीवाल Updated Thu, 23 Jan 2020 06:18 PM IST
सार

  • 23 जनवरी की समयसीमा बीती, जियो ने चुकाए 195 करोड़ रुपये
  • 88,624 करोड़ रुपये चुकाने हैं वोडा आइडिया और एयरटेल को

jio pays agr dues worth 195 crore rupees, airtel, voda idea to pay later after sc ruling

विस्तार
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दूरसंचार कंपनियों के लिए 1.47 लाख करोड़ रुपये के समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के भुगतान की समयसीमा बृहस्पतिवार को बीत गई। इससे पहले भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने दूरसंचार विभाग (डॉट) को सूचित कर दिया कि वे 88,624 करोड़ रुपये का एजीआर बकाया नहीं चुकाएंगी। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि दोनों कंपनियों ने अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में संशोधन याचिका पर होने वाली सुनवाई का इंतजार करने की बात कही है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर बकाये के लिए 23 जनवरी की समयसीमा तय की थी।



वहीं जियो ने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) की मद में दूरसंचार विभाग को गुरुवार को 195 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। यह जानकारी आधिकारिक सूत्रों ने दी है। दूरसंचार विभाग के फॉर्मूले के अनुसार रिलायंस जियो को 23 जनवरी तक बकाया के रूप में 177 करोड़ रुपये का भुगतान करना था। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि अब जियो ने 31 जनवरी 2020 तक के लिए सभी प्रकार के बकाया का भुगतान कर दिया है।


दोनों कंपनियों ने डॉट से सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के नतीजों के आधार पर भुगतान के उन्हें समय देने का अनुरोध किया है। उधर तीन साल पहले बाजार में आगाज करने वाली रिलायंस जियो ने संभवत: अपनी 195 करोड़ रुपये का एजीआर बकाया चुका दिया है। रिलायंस जियो ने एक बयान में कहा कि उसने 31 जनवरी, 2020 तक के लिए 195 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान डॉट को कर दिया है। हालांकि, कंपनी ने अदालत के आदेश के क्रम में 177 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था।

एक सूत्र ने कहा, ‘वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल ने डॉट को भेजे संदेश में पहले सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई का इंतजार करने की बात कही है।’ दूरसंचार कंपनियों को सांविधिक बकायों के रूप में सरकार को लगभग 1.47 लाख करोड़ रुपये चुकाने हैं। वहीं सरकार की 26.12 फीसदी हिस्सेदारी वाली टाटा कम्युनिकेशंस ने भी डॉट की 6,633 करोड़ रुपये की एजीआर मांग के लिए कोई प्रावधान नहीं किया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका को सुनवाई के लिए शामिल नहीं किया है। कंपनी ने कहा कि उसने सितंबर तिमाही में डॉट से मिले मांग नोटिस का जवाब दे दिया है, लेकिन विभाग की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

दूसंचार कंपनियों को लाइसेंस शुल्क के 92,642 करोड़ रुपये, स्पेक्ट्रम शुल्क के 55,054 करोड़ रुपये सरकार को चुकाने हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर में कहा था कि गैर दूरसंचार राजस्व के आधार पर सांविधिक बकायों यानी एजीआर की गणना की जानी चाहिए। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 24 अक्तूबर के आदेश के क्रम में लाइसेंसी कंपनियों से बकाया वसूलने के निर्देश दिए थे।

दूरसंचार कंपनियों पर कार्रवाई नहीं करेगा डॉट 

डॉट की लाइसेंसिंग फाइनेंस पॉलिसी विंग ने कहा कि सभी संबंधित विभागों को सुप्रीम कोर्ट के अग्रिम आदेश तक एजीआर का भुगतान नहीं करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं। एक आधिकारिक सूत्र ने बताया, ‘लाइसेंसिंग विंग के निदेशक ने इस संबंध में सभी विभागों को निर्देश दे दिए हैं।’ सदस्य (वित्त) की मंजूरी के बाद ही यह निर्देश जारी किया गया है, जो राजस्व से जुड़े डॉट के विभागों के प्रमुख हैं।

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संवाद की कमी से डॉट ने पीएसयू से मांगे 3 लाख करोड़: प्रधान

तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ‘संवाद की कमी’ के चलते डॉट ने गेल, ऑयल इंडिया और पावरग्रिड जैसी गैर दूरसंचार कंपनियों से लगभग 3 लाख करोड़ रुपये की मांग की है। इन कंपनियों के ऊपर ऐसी किसी धनराशि की देनदारी नहीं बनती है। डॉट गेल इंडिया से 1.72 लाख करोड़ रुपये, ऑयल इंडिया से 48 हजार करोड़ रुपये, पावरग्रिड से 40 हजार करोड़ रुपये और रेल व एक अन्य सरकारी कंपनी से ऐसी ही मांग कर रहा है। 

डॉट की यह मांग सरकारी कंपनियों की कुल नेटवर्थ से काफी ज्यादा है। प्रधान ने कहा, ‘हम दूरसंचार मंत्रालय से बातचीत कर रहे हैं। हमने मांग पर अपना जवाब दे दिया था। संभवत: संवाद की कमी के चलते भारत सरकार का एक विभाग, दूसरे विभाग के अंतर्गत आने वाली पीएसयू से ऐसी मांग कर रहा है।’

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