राज ठाकरे ने बेटे अमित ठाकरे को राजनीति में उतारा

  • मयुरेश कोण्णूर
  • बीबीसी मराठी संवाददाता
अमित ठाकरे

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राज ठाकरे ने नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने पार्टी के पहले महाधिवेशन में गुरूवार को पार्टी का नया झंडा लॉन्च किया. इसके साथ ही राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को राजनीति के मैदान में उतार दिया है.

ऐसी अटकलें थी कि मनसे के महाधिवेशन से अमित ठाकरे औपचारिक रूप से सक्रिय राजनीति में आ सकते हैं. गुरूवार को यह अनुमान सही साबित हुआ. अमित ठाकरे ने औपचारिक तौर पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) पार्टी की सदस्यता ग्रहण की.

नेता के रूप में लॉन्च किए जाने के बाद, महाधिवेशन में अमित ठाकरे ने शिक्षा का एक संकल्प पेश किया. महाधिवेशन में यह भी घोषणा की गई कि यह शिक्षा सम्मेलन अमित ठाकरे के नेतृत्व में आयोजित किया जाएगा.

मनसे के पुराने झंडे को बदल दिया गया है और झंडे को पूरी तरह भगवा रंग में रंग दिया गया है. इससे पहले इसमें पांच रंग थे. पार्टी की ओर से जारी किए गए झंडे में शिवाजी महाराज के शासनकाल की मुद्रा प्रिंट है. झंडे पर संस्कृत में श्लोक लिखा गया है.

अमित ठाकरे को राजनीति के मैदान में उतारने और पार्टी का नया झंडा लॉन्च करने के बाद ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या मनसे, शिव सेना के आक्रामक हिन्दुत्व के मुद्दे को हथियाने की दिशा में आगे बढ़ रही है? साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि क्या मनसे अमित ठाकरे के जरिए आदित्य ठाकरे के ज़रिए युवा मतदाताओं को आकर्षित करने की शिव​सेना के योजनाओं को चुनौती देने की कोशिश करेगी?

अमित ठाकरे

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क्या आदित्य ठाकरे को चुनौती देंगे अमित?

अमित ठाकरे को सक्रिय राजनीति में लेकर आने के फ़ैसले को सीधे तौर पर आदित्य ठाकरे को चुनौती देने से जोड़कर देखा जा रहा है. अमित, ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी से हैं जिन्होंने अब राजनीति में क़दम रखा है.

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ऐसा माना जा रहा है पार्टी को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए अमित को पार्टी में सक्रिय तौर पर लाया गया है. एक ओर जहाँ शिव सेना हिंदुत्व के मुद्दे से दूर जाती दिखाई दे रही है, वहीं राज ठाकरे हिंदुत्व की इस खाली जगह को भरना चाहते हैं.

शिव सेना में आदित्य ठाकरे युवा चेहरा हैं और मनसे उसी तर्ज पर अमित को पार्टी में शामिल करना चाहती थी. हालांकि यह एक महज़ इत्तेफ़ाक नहीं है.

जानकार मानते हैं कि पार्टी एक लंबे समय से अमित ठाकरे को सक्रिय तौर पर लॉन्च करने की तैयारी कर रही थी.

मनसे नेता संदीप देशपांडे के मुताबिक़ काफ़ी दिनों से मनसे कार्यकर्ता और समर्थको की मांग थी कि अमित ठाकरे को पार्टी में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाए.

हालांकि, इस पर अंतिम फ़ैसला राज ठाकरे को ही करना था.

वैसे अमित ठाकरे इससे पहले कई बार अपने पिता राज ठाकरे के साथ कई राजनैतिक मंचों पर दिखाई दिये थे. वह कई बार कार्यकर्ताओं के साथ भी चर्चाओं में शामिल रहे हैं. संदीप ठाकरे का कहना है कि अमित ठाकरे राजनीति में बहुत पहले ही आ गए थे. वो लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं. उनकी छवि काफ़ी अच्छी है. पार्टी की कई अहम बैठकों में वो शामिल रहे हैं.

वो कहते हैं, "समय की किल्लत की वजह से कई बार जब राज ठाकरे कहीं नहीं पहुंच पाते हैं तो वहां अमित ठाकरे की मौजूदगी लोगों में जोश भरने का काम करती है. इसलिए हमें पूरी उम्मीद थी कि इस महाधिवेशन में राज ठाकरे, अमित ठाकरे को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी ज़रूर देंगे."

अमित ठाकरे

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व्यक्तिगत जीवन

अमित ठाकरे की शादी 2019 में हुई. उनके विवाह की काफ़ी चर्चा हुई, जिसमें कई राजनीतिक हस्तियों ने हिस्सा लिया था. फ़िलहाल अमित ठाकरे के पास कोई पद नहीं है लेकिन वो पार्टी की कई बैठकों और आंदोलनों में शामिल रहे हैं.

जिस दिन अमित ठाकरे के चाचा, उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उसी दिन अमित ठाकरे नवी मुंबई में मज़दूर आंदोलन में शामिल थे.

इससे पहले रेलवे कर्मियों की कुछ मांगों को लेकर वे रेलवे अधिकारियों के पास भी गए थे.

ईवीएम मामले के संबंध में जब राज ठाकरे, ममता बनर्जी से मिले थे तब अमित ठाकरे भी उनके साथ थे.

हालांकि, पिछले कुछ सालों से अमित ठाकरे को सक्रिय राजनीति के लिए तैयार किया जा रहा था. राज ठाकरे को जब प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ के लिए बुलाया गया था तब अमित ठाकरे पूरे वक़्त ईडी ऑफ़िस के बाहर ही मौजूद थे.

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अमित ठाकरे के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं

अमित ठाकरे के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती तो यही होगी कि उन्हें मनसे की डूबती नैया को पार लगाना है. 2009 में 13 विधायकों वाली पार्टी की संख्या सिमटकर अब एक रह गई है.

साल 2019 में तो पार्टी चुनाव में ही नहीं उतरी. ऐसे में ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत है ताकि पार्टी का पुर्नगठन किया जा सके.

विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कई नीतियों में बदलाव किया. पार्टी ने खुलकर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की लेकिन अब एक बार फिर पार्टी बीजेपी की ओर जाती नज़र आ रही है.

बीते विधानसभा चुनाव में शिव सेना ने कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन किया लेकिन मनसे इससे दूर रही. ऐसे में अब क़यास ये लगाए जा रहे हैं कि मनसे हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी क्योंकि शिवसेना का रुख़ इसे लेकर नरम है.

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तुलना होना लाज़मी है

अमित ठाकरे के राजनीति में आने पर निश्चित तौर पर आदित्य ठाकरे से उनकी तुलना की ही जाएगी. हालांकि अमित ठाकरे को अब तक किसी बड़े मंच से किसी ने सुना नहीं है. उनके चचेरे भाई आदित्य ठाकरे, ठाकरे परिवार से चुनाव लड़ने वाले तीसरी पीढ़ी के पहले ठाकरे हैं और मौजूदा समय में मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं.

आदित्य ठाकरे आक्रामक नहीं हैं लेकिन उनकी अपनी स्टाइल है. वो राजनीति में बतौर युवा नेता सक्रिय रहे हैं और उन्होंने कई सारी ज़िम्मेदारियां भी संभाली हैं. बीजेपी से गठबंधन तोड़ना और महाविकास आघाड़ी दल में शामिल होना, इन दोनो बड़े फ़ैसलों के समय आदित्य पिता के साथ खड़े रहे.

उन्होंने अपनी एक राह चुनी और चुनाव भी लड़ा और अब अमित को भी इसी आधार पर आंका जाएगा.

राजनीतिक पत्रकार धवल कुलकर्णी कहते हैं,"अमित ठाकरे को मनसे पार्टी में लॉन्च करने के लिए काफ़ी दिनों से विचार किया जा रहा था. आदित्य ठाकरे के मंत्री बनने से पहले ही यह होना था लेकिन इसमें इतना समय क्यों लगा यह राज़ है."

कुलकर्णी आगे कहते हैं कि ठाकरे नाम का करिश्मा तो है ही, दूसरी ओर आज मनसे को ज़रूरत है, ज़मीन से जुड़े और गाँव की ज़रूरतों को समझने वाले नेतृत्व की.

एक तरफ़ जहाँ अमित ठाकरे की तुलना उन्हीं के भाई से होगी वहीं दूसरी तरफ़ राजनीति अमित को विरासत में मिली है.

अमित एक अच्छे चित्रकार हैं और फुटबॉल का भी शौक रखते हैं.

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