पिछड़ी जातियों का पता लगाने में अभी लगेगा और वक्त, सरकार ने बढ़ाया आयोग का कार्यकाल
सरकार ने ओबीसी आयोग के कार्यकाल को छह महीने का और विस्तार दिया है। अब 31 जुलाई 2020 तक काम करेगा । आयोग ओबीसी से जुड़ी जातियों के नामों की गड़बडि़यों को भी परखेगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरक्षण के बाद भी ओबीसी की पिछड़ी रह गई जातियों का पता लगाने और उन्हें आरक्षण का समुचित लाभ दिलाने के लिए गठित आयोग के कार्यकाल को सरकार ने एक बार फिर से छह महीने के लिए बढ़ा दिया है। अब वह 31 जुलाई 2020 तक इससे जुड़ी रिपोर्ट सरकार को देगा। हालांकि इसके साथ ही आयोग के कामकाज के दायरे को भी बढ़ा दिया है। अब वह ओबीसी जातियों के नामों की अशुद्धियों का पता लगाने और उन्हें सही करने से जुड़ी सिफारिशें भी देगा।
केंद्रीय कैबिनेट में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया कि आयोग को यह विस्तार उन्हें दिए गए नए कामों को देखते हुए लिया गया है। ओबीसी की कई जातियों के नामों में बिट्रिश काल से ही अशुद्धियां चली आ रही थी, जिसे अब ठीक करने का फैसला लिया गया है। फिलहाल इस काम का जिम्मा आयोग को सौंपा गया है। आयोग की सिफारिश मिलने के बाद इसे ठीक करने का काम किया जाएगा। आयोग का फिलहाल मौजूदा कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म हो रहा है। ऐसे में सरकार ने इससे पहले ही इसके कार्यकाल को विस्तार देने का काम किया है।
11 अक्टूबर 2017 को जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में आयोग का गठन
ओबीसी की पिछड़ी जातियों का पता लगाने और इसके उपवर्गीकरण को लेकर सरकार ने जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में 11 अक्टूबर 2017 में इस आयोग का गठन किया था। उस समय आयोग को सिर्फ 12 हफ्ते के भीतर ही इसे लेकर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। लेकिन यह काम पूरा नहीं हो पाया और सरकार उसके कार्यकाल को लगातार विस्तार देते चली आ रही है। हालांकि इस बीच आयोग ने सरकार को इसके लिए डोर-टू-डोर सर्वे का भी एक प्रस्ताव दिया था। साथ ही इसे लेकर दो सौ करोड़ की मांग भी की थी। बाद में आयोग ने अपने इस फैसले को वापस ले लिया था।