नॉन परफॉर्मेंस अकाउंट (एनपीए) की मार झेल रहे भारतीय बैंकों की स्थिति 31 मार्च के बाद और गंभीर हो सकती है। करीब 9.5 लाख करोड़ रुपए एनपीए के तौर पर पहले से ही फंसे हुए हैं, लेकिन 31 मार्च के बाद स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है। 31 मार्च को छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों (एमएसएमई) की परिसंपत्तियों से गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित करने पर लगी रोक हट सकती है। माना जा रहा है कि इसके बाद बैंकों की स्थिति और गंभीर हो सकती है।

मौजूदा समय में बैंक एनपीए के ‘टाइम बम’ पर बैठे हुए नजर आ रहे हैं। वहीं मुद्रा लोन पर लगातार बढ़ रहा एनपीए, राज्य बिजली वितरण कंपनियों का लोन भी चिंता का विषय है यह मार्च तक 80,000 करोड़ रुपए पहुंच जाएगा। इसके अलावा टेलिकॉम सेक्टर में सरकार का 92,000 करोड़ रुपए का बकाया भी मोदी सरकार के लिए चिंता का विषय है।

डेक्कन हेराल्ड में छपी एक खबर के मुताबिक सरकारी बैंक सबसे बड़ी मार झेलेंगे क्योंकि ये वह कर्जदाता हैं जिन्होंने पिछले साल सितंबर माह में वित्त मंत्रालय के आसान शर्तों पर कर्ज देने के फैसले को अमल में लाते हुए एमएसएमई को कर्ज मुहैया करवाया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डूबती अर्थव्यवस्था को उठाने के लिए एमएसएमई को आसान शर्तों पर कर्ज मुहैया करवाने के उपायों की घोषणा की थी। हालांकि इस फैसले का कितना असर हुआ यह लंबे समय की अवधि के बाद ही साफ हो सकेगा।

अगर 31 मार्च के बाद एनपीए को लेकर स्थिति गंभीर होती है तो यह भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार के बीते दिनों दिए गए उस आश्वासन के खिलाफ होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि मार्च तक एनपीए में सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े ऋणदाता एसबीआई पर 31 मार्च के बाद भी ज्यादा असर देखने को नहीं मिलेगा क्योंकि बैंक हाई प्रोफाइल एस्सार स्टील केस में रिकवरी हासिल करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ रहा है।

वहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़े से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में पीएसयू बैंकों का सकल एनपीए 2019 के मध्य तक 9.42 लाख करोड़ रुपए के कुल ऋण में से 1.04 लाख करोड़ रुपए था। इसमें कुल ऋण के सकल एनपीए का अनुपात 11 फीसदी था। कृषि ऋण माफी में अभूतपूर्व उछाल क्रेडिट में सामान्य गिरावट की मुख्य वजह में से एक है। बीते चार सालों में 10 राज्यों ने 2.5 लाख करोड़ रुपए की किसान कर्ज माफी की घोषणा की है। किसान कर्ज माफी भी बैंकों के लिए बड़ा ‘सिरदर्द’ बनती जा रही है।

वहीं एमएसएमई के लिए 5 करोड़ रुपए तक का लोन केवल 59 मिनट में पास करने वाला सरकार का फैसला एक्सपर्ट्स की नजर में सही नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 59 मिनट में किसी अज्ञात उधारकर्ता को लोन देकर रिकवरी रिस्क कई ज्यादा हो जाता है।