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निर्भया के दोषियों के लिए तैयार तख्ते पर वजन के हिसाब से मिलेगी 'तकनीकी मौत'

जेल मैनुअल ये कहता है कि अगर शख्स का वजन 45.360 किलो से कम है, तो उसे 2.4440 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. वजन अगर 45.330 किलो से 60.330 किलो के बीच है, तो उसको 2.290 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. वजन अगर 60.330 से ज्यादा लेकिन 75.330 से कम है तो इसे 2.130 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा.

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निर्भया के दोषी
निर्भया के दोषी

  • जेल मैनुअल में वजन के अनुसार ड्रॉप का प्रावधान
  • कैपिटल पनिशमेंट कमीशन ने तय किया था वजन

फांसी यानी जुडिशल हैंगिंग को तकनीकी मौत इसलिए कहते हैं, क्योंकि इसमें शख्स को फांसी के जरिए ऐसा झटका दिया जाता है जिससे स्पाइनल कॉर्ड ही टूट जाए. ऐसा होते ही ब्रेन को खून की सप्लाई बंद हो जाती है. फॉरेंसिक एक्सपर्ट विजय धनखड़ ने बताया कि जुडिशल हैंगिंग के वक्त दबाव बढ़ने के साथ ही सारी नसें बंद हो जाती हैं. ब्लड सर्कुलेशन रुक जाता है. अगर ब्रेन को ब्लड सप्लाई नहीं मिलती है, तो किसी भी इंसान की जान जाने में  सिर्फ 5 मिनट का वक्त लगता है.

क्या कहता है जेल मैनुअल

जेल मैनुअल ये कहता है कि अगर शख्स का वजन 45.360 किलो से कम है, तो उसे 2.4440 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. वजन अगर 45.330 किलो से 60.330 किलो के बीच है, तो उसको 2.290 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. वजन अगर 60.330 से ज्यादा लेकिन 75.330 से कम है तो इसे 2.130 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. 75.330 किलो से ज्यादा लेकिन 90.720 किलो से कम वजन पर 1.980 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा. अगर वजन 90.720 किलो से ज्यादा है तो उसे 1.830 मीटर का ड्रॉप दिया जाएगा.

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कैपिटल पनिशमेंट कमीशन ने तय किया था वजन

यूके में बने कैपिटल पनिशमेंट कमीशन 1801 ने तय कर दिया था कि लटकाए जाने वाले 128 पाउंड वजन होना चाहिए. यह वजन कम हो तो रस्सी को फॉल ज्यादा देना पड़ेगा. जेल मैनुअल 2018 के मुताबिक फांसी के दिन चारो का वजन चेक होगा फिर वजन के हिसाब से ही उसको ड्रॉप किया जाएगा, जिससे गर्दन टूटने की घटना न हो. गर्दन ज्यादा लंबी न हो.

क्या कहते हैं पूर्व जेलर

रस्सी की लंबाई उतनी ही रखी जाती है, जिससे शख्स के प्राण निकल जाएं लेकिन उसकी गर्दन लंबी न हो. यह सभी चीजें न हों, इसके लिए जुडिशल हैंगिंग में बहुत सारे प्रावधान हैं. इसलिए शरीर के वजन के हिसाब से रस्सी की लंबाई दी जाती है. तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर सुनील गुप्ता ने बताया कि गर्दन का खिंचाव वजन पर निर्भर करता है. इंग्लैंड में जब फांसी को लेकर पॉलिसी बनाई गई थी तब वजन का क्राइटेरिया रखा गया था. 128 पाउंड वजन हो और गर्दन पर खिंचाव पड़ना चाहिए.

अगर किसी शख्स का वजन 60 किलो है तो उसकी जल्दी डेथ हो जाती है. जल्दी गर्दन में चोट लगती है.  इंसान तुरंत बेहोश हो जाता है. तड़पना नहीं पड़ता है और जल्दी से जल्दी उसकी जान निकल जाती है. वजन के हिसाब से जेल मैनुअल में चार्ट होता है कि कितनी हाइट से उसको फॉल देना है. उसी हिसाब से लंबी रस्सी ली जाती है. ऐसा बिल्कुल नहीं है. जेल मैनुअल के हिसाब से किसी को ज्यादा तड़पना पड़ता है तो किसी को कम.

मौत के बाद भी धड़कता है दिल

स्पाइल कार्ड का फैक्चर होते ही सिर वाले भाग से बॉडी के दूसरे भाग का कनेक्शन पूरी तरह से खत्म हो जाता है. पल्स करीब 20 मिनट तक चलती रहती है. हॉर्ट चलता रहेगा जब तक उसे ब्लड सप्लाई मिलती रहेगी दिमाग तो सिर्फ हॉर्ट का कंट्रोल देखता है कि उसे कितनी देर तक चलना है. कितना तेज चलना है. ऑक्सीजन आना जब धीरे- धीरे बंद हो जाता है, तो दिल भी धीरे-धीरे धड़कना बंद कर देता है. दिल 5 मिनट से लेकर 15 मिनट तक चलता रहता है.

फांसी की आधिकारिक मौत

ब्रेन डेथ होने पर इंसान की आधिकारिक मौत तय कर दी जाती है. शरीर के सारे अंग धीरे- धीरे डेड हो जाते हैं. दिमाग तो 5 मिनट में ही डेड कर जाता है, क्योंकि उसको लगातार फूड सप्लीमेंट और ऑक्सीजन चाहिए होती है. आंख का कॉर्निया तकरीबन 6 घंटे तक जिंदा रहता हैं.

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