नए साल की शुरुआत के साथ ही रेल किराए और रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी महंगाई की मार का सामना कर रहे लोगों की चुनौतियों को और बढ़ाने वाली है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बीते काफी समय से बाजार में रोजमर्रा के जरूरी सामान की कीमतें औसत आय वर्ग के लोगों के सामने किस तरह की समस्याएं पैदा कर रही हैं। ऐसे में भारतीय रेलवे ने बुधवार से यात्री ट्रेनों में एक पैसे से लेकर चार पैसे प्रति किलोमीटर तक की बढ़ोतरी कर दी है। गैर-वातानुकूलित और वातानुकूलित ट्रेनों में अलग-अलग श्रेणियों में सफर के लिए एक से चार पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से प्रथम दृष्ट्या यह बढ़ोतरी बहुत ज्यादा नहीं लगती है। लेकिन यह राशि दरअसल एक हजार किलोमीटर की यात्रा के लिए दस रुपए से चालीस रुपए तक होगी। माल भाड़े में फिलहाल कोई इजाफा नहीं किया गया है, लेकिन यात्री किराए के बारे में ताजा फैसले को लेकर कोई सकारात्मक संदेश नहीं गया है।

इसी तरह एलपीजी सिलेंडरों पर भी प्रति सिलेंडर उन्नीस रुपए की बढ़ोतरी कर दी गई। पिछले पांच महीनों में एलपीजी सिलेंडरों की कीमतों में एक सौ चालीस रुपए का इजाफा हो चुका है। हालांकि ट्रेनों के किराए में वृद्धि को लेकर संकेत कुछ हफ्ते पहले ही मिल गए थे, लेकिन उम्मीद की जा रही थी कि लोग अभी बाजार में लगभग सभी वस्तुओं की कीमतों में उछाल से उपजी जिस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं, ऐसे में सरकार शायद थोड़ा इंतजार करे। लेकिन इस घोषणा से लोगों के बीच निराशा ही फैली है।

दरअसल, पिछले कुछ समय से रेलवे के परिचालन में खर्च और आमदनी के अनुपात को लेकर कई तरह की व्याख्याएं सामने आ रही थीं। यह बताया जा रहा था कि अगर खर्च के मुकाबले आमदनी संतोषजनक नहीं है या कम है, तो किराए में वृद्धि ही एकमात्र उपाय है। लेकिन घाटे की भरपाई के लिए अन्य व्यवस्थागत कमियों को दूर करने के बजाय क्या किराया बढ़ाना ही एकमात्र उपाय है? अगर किन्हीं वजहों से ट्रेनों की लेटलतीफी या बड़ी संख्या में उनके रद्द किए जाने के मामले बढ़ रहे हों, तो इस समस्या का समाधान किराए में बढ़ोतरी से कैसे निकाला जा सकता है? जब लगभग सभी ट्रेनों में आरक्षित टिकटों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा हो या फिर टिकट मिलना मुश्किल हो गया हो, फ्लैक्सी या प्रीमियम टिकटों में निर्धारित से ज्यादा पैसा चुकाना पड़ता हो, साधारण डिब्बों में क्षमता से काफी ज्यादा यात्री सफर कर रहे हों, तो ऐसे समय में आमदनी में कमी होने और इसकी भरपाई के लिए यात्रियों पर बोझ बढ़ाने की तुक समझना मुश्किल है।

पिछले कुछ सालों से लगातार यह दावा किया जा रहा है कि भारतीय रेलवे की यात्रा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जाएगा। लेकिन यात्रा के दौरान लोगों की सहूलियतों और सुरक्षा के सवालों से लेकर आरक्षित टिकट मिल पाने की स्थितियों को देख कर ऐसा नहीं लगता है कि सरकार यात्रा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कोई बड़ी इच्छाशक्ति रखती है। सवाल है कि अगर निजी कंपनी के संचालन में किसी ट्रेन को सुव्यवस्थित तरीके चलाया जा सकता है, तो रेल महकमे के पास इतना व्यापक तंत्र होने के बावजूद आम ट्रेनों का परिचालन बेहतर क्यों नहीं हो सकता! हो सकता है कि ताजा किराया बढ़ोतरी को सरकार की ओर से किसी बड़ी वृद्धि के तौर पर नहीं देखा जा रहा हो। लेकिन पिछले कुछ समय से आम लोग जिस तरह पहले ही कई स्तरों पर महंगाई, रोजगार, आमदनी और क्रयशक्ति की जिस समस्या से जूझ रहे हैं और बाजार इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, उसमें रेल किराया और रसोई गैस की महंगाई लोगों की परेशानी को और बढ़ाएगी।