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Indian Railway: खतरे में यूनियनों से जुड़े 50 हजार कर्मचारियों का भविष्य, सुविधाएं घटाने पर विचार

रेलवे का कर्मचारियों पर होने वाला खर्च 60 फीसद से ज्यादा है जो कि किसी भी प्रतिष्ठान के लिए अत्यधिक है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 09:22 PM (IST)Updated: Wed, 11 Dec 2019 01:14 AM (IST)
Indian Railway: खतरे में यूनियनों से जुड़े 50 हजार कर्मचारियों का भविष्य, सुविधाएं घटाने पर विचार
Indian Railway: खतरे में यूनियनों से जुड़े 50 हजार कर्मचारियों का भविष्य, सुविधाएं घटाने पर विचार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रेलवे में यूनियनों से जुड़े हजारों पदाधिकारियों का भविष्य खतरे में है। रेल मंत्रालय द्वारा हाल ही में आयोजित परिवर्तन संगोष्ठी में यूनियन पदाधिकारियों के पर कतरने पर सहमति बनी है।

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संगोष्ठी में ये तथ्य रखा गया कि रेलवे के हर डिवीजन में विभिन्न यूनियनों के कोई ढाई सौ पदाधिकारी हैं जिनका कर्मचारी के रूप में योगदान बहुत कम है। जबकि सुविधाएं जबरदस्त हैं। पूरे देश में इस प्रकार के पदाधिकारियों की संख्या 50 हजार के आसपास आंकी गई है। इनके बारे में मंत्रालय का आकलन है कि ये रेलवे पर बोझ बने हुए हैं और इनसे काम कराना दुष्कर कार्य है। इनकी वजह से रेलवे की उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। लिहाजा इनकी सुविधाओं में कटौती के अलावा 55 वर्ष की उम्र पार कर चुके पदाधिकारियों को वीआरएस देने पर विचार किया जाना चाहिए।

खासकर उन सुपरवाइजरों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है जो किसी यूनियन के पदाधिकारी हैं। सुपरवाइजरों को किसी यूनियन का पदाधिकारी नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को यूनियन का पद या सुपरवाइजरी में से किसी एक को चुनना होगा, अन्यथा वीआरएस लेना होगा। इससे रेलवे की कार्यकुशलता में वृद्धि होगी तथा कर्मचारियों का बोझ कम होने से खर्चो पर अंकुश लगेगा।

30 फीसद घटाने होंगे कर्मचारी

परिवर्तन संगोष्ठी में कर्मचारियों के बोझ से रेलवे के वेतन व पेंशन के खर्च में लगातार बढ़ोतरी का मुद्दा छाया रहा। कहा गया कि रेलवे का कर्मचारियों पर होने वाला खर्च 60 फीसद से ज्यादा है जो कि किसी भी प्रतिष्ठान के लिए अत्यधिक है। इसलिए कर्मचारियों में कटौती आवश्यक हो गई है। लेकिन इसे चरणों में लागू करना चाहिए। पहले चरण में 3 साल के अंदर 10 फीसद कर्मचारी कम किए जाने चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे इस संख्या को बढ़ाते हुए 30 फीसद तक ले जाना चाहिए। खासकर अकुशल कर्मचारियों का कम से कम होना जरूरी है। संगोष्ठी में कर्मचारियों की संख्या को पचास फीसद तक घटाने का प्रस्ताव भी सामने आया।

कारखानों की उत्पादकता

रेलवे कारखानों व कार्यशालाओं की कम उत्पादकता पर भी चिंता प्रकट की गई। मंत्रालय का प्रस्ताव था कि उत्पादन इकाइयों और वर्कशॉप में जरूरत से ज्यादा ओवरटाइम भुगतान किया जाता है, जिसमें कटौती की आवश्यकता है। इसके अध्ययन के लिए बाहरी एजेंसियों से उत्पादकता और ओवरटाइम की समीक्षा कराई जानी चाहिए।

आउटसोर्स कार्यो पर भी भारी खर्च

रेलवे में आउटसोर्सिग की व्यवस्था खर्चो में कटौती के लिए की गई थी। लेकिन देखने में आया है कि न्यूनतम वेतन भुगतान के कारण खर्च घटने के बजाय बढ़ रहे हैं। इसलिए आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या के बजाय उनकी उत्पादकता के आधार पर भुगतान की कोई प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। ट्रेनों, खासकर रात्रिकालीन ट्रेनों की ऑनबोर्ड हाउसकीपिंग सेवाओं पर हो रहे खर्च को भी सीमित करने को कहा गया है।

फिलहाल विचार के स्तर पर विषय

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस विषय में कहा कि अभी ये विषय विचार के स्तर पर हैं। इन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। जबकि रेलवे की सबसे प्रमुख यूनियन एआइआरएफ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने इन प्रस्तावों के बाबत पूछे जाने पर कहा कि इन प्रस्तावों को देखकर लगता है कि उक्त संगोष्ठी रेलवे की परिवर्तन संगोष्ठी न होकर 'समापन संगोष्ठी' थी। क्योंकि यदि इन्हें लागू किया गया तो परिवर्तन तो नहीं होगा, परंतु रेलवे बंद अवश्य हो जाएगी।


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